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Jagannath Rath Yatra 2024 : प्रकृति, धर्म और कला से परिपूर्ण है नीलांचल तीर्थ

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने में पुरी में आयोजित पवित्र पुनीत श्री जगन्नाथ रथ यात्रा संसार भर के धर्म यात्राओं में अनूठा और अद्वितीय है, जिसमें शामिल होना ‘अहो भाग्य’ की बात है. इस युगयुगीन परंपरा को यह नगर आज भी पौराणिक परंपरा और ओड़िया सभ्यता-संस्कृति के आदर्श के अनुरूप निर्वहन कर रहा है.

मानव मन में खासकर हम उत्तर भारतीयों को समुद्र देखने का शौक बालपन से ही बना रहता है और अपने देश में समुद्री किनारा, जो धर्म तत्व से समृद्ध हो, जहां के कण-कण में कला और संस्कृति का वास हो, ऐसा ही बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में विराजमान ‘भारत का फ्लोरिंग’ के रूप में ओडिशा राज्य का नाम लिया जाता है, जिसकी राजधानी भुनेश्वर को मंदिरों का नगर, तो इसी के पास अवस्थित पुरी को भारतीय धर्म-साहित्य में जगन्नाथ पुरी के रूप में अभिहित किया गया है.

डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
Jagannath Rath Yatra 2024 : भारत के चार प्रमुख तीर्थ धाम में एक जगन्नाथ पुरी पुरुषोत्तम क्षेत्र, नीलाद्रि, श्री क्षेत्र, नंदपुर, एकाग्र क्षेत्र, उत्कल वाराणसी, गुप्तकाशी, शंख क्षेत्र और नीलांचल तीर्थ के रूप में भी प्रसिद्ध रहा है. पुरी का सबसे बड़ा आकर्षण जगन्नाथ जी का मंदिर है. ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार, वर्तमान जगन्नाथ मंदिर को राजा अनंग भीमदेव ने 1199 ई में बनवाया था, जो 13-14 वर्षों में बनकर तैयार हुआ. मंदिर 192 फीट ऊंचा और 80 फीट चौड़ा है. शिखर पर सुदर्शन चक्र, तो नीचे गर्भगृह में काष्ठ का बना भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां देखी जा सकती हैं. ऐसे इस पूरे परिसर में तकरीबन तीन दर्जन मंदिर हैं. जगन्नाथ जी के मंदिर से समुद्र की ओर का सीधा मार्ग जाता है. यह स्थान मंदिर से लगभग ढाई किलोमीटर तक दूर है. इस स्थान से पहले स्वर्गद्वार नामक तीर्थ है.

चैतन्य महाप्रभु ने यहीं त्यागा था शरीर

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पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, कूर्म पुराण, नरसिंह पुराण के साथ श्री जगत्गुरु शंकराचार्य और भक्त प्रवर चैतन्य महाप्रभु के विवरण में जगन्नाथ पुरी की चर्चा स्पष्ट रूप से मिलती है. यह स्थान 52 शक्तिपीठों में एक है, जहां सती के दोनों चरण पतीत हुए थे. आदि गुरु शंकराचार्य ने पूरे देश के चार दिशाओं में जो धार्मिक सांस्कृतिक एकता सूत्र से संबद्ध मठ की स्थापना की थी, उसमें गोवर्धन मठ की स्थापना यहीं की गयी थी और पद्मपाद आचार्य को मठाधीश बनाया था. भक्ति आंदोलन के जनक चैतन्य महाप्रभु ने अपनी शरीर यहीं त्यागा था, तो श्रीश्री विजय कृष्ण गोस्वामी की इहलीला यहीं समाप्त हुई थी.

ब्रिटिश काल में भी ‘पुरुषोत्तम क्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध

जगन्नाथ पुरी का सबसे बड़ा आकर्षण जगन्नाथ मंदिर है. इसे पुरुषोत्तम मंदिर भी कहते हैं. इसी पुरुषोत्तम मंदिर के कारण इस नगर को सल्तनत काल, मुगल काल, मराठा काल और आगे कुछ वर्षों तक ब्रिटिश काल में भी पुरुषोत्तम क्षेत्र के नाम से संबोधित किया जाता रहा. बाद में ब्रिटिश काल में ही इसका नाम पुरी कर दिया गया और चूंकि यहां के नगर अधिष्ठाता श्री जगन्नाथ हैं, इसलिए नगर का पूरा नाम जगन्नाथ पुरी हुआ.

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मंदिर, मठ, सरोवरों की नगरी है पुरी

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इसके साथ ही नगर में कितने ही देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जिनमें गुड्डिचा मंदिर बड़ा ही प्रसिद्ध है. इसके साथ ही साथ गोपाल मंदिर, वीर हनुमान मंदिर, माता दुर्गा मंदिर, कपाल मोचन मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, रामेश्वर मंदिर, शनि देव मंदिर, काल भैरव मंदिर, माता तारिणी मंदिर लोकनाथ मंदिर, मार्कंडेश्वर मंदिर, योगमाया मंदिर, मां काली मंदिर आदि का सुनाम है. मंदिर में बनी अनेकानेक मूर्तियों में बौद्ध-कला की झलक मिलती है. संपूर्ण पुरी नगरी में समृद्ध और प्राचीन मठों की भी कोई कमी नहीं है और आज की तारीख में उनकी संख्या दो दर्जन से अधिक है, जो किसी ने किसी साधक, महात्मा चाहे प्राचीन भारतीय उपासक के स्थान के रूप में आज भी शिष्य-प्रशिक्षियों की कर्म-कृपा से गुलजार बने हुए हैं.

जगन्नाथ पुरी को पवित्र सरोवरों की नगरी भी कहा जाता है, जहां के सप्त सरोवरों का विशेष मान है. उनके नाम रोहिणी कुंड, इंद्रधूम्न सरोवर, मार्कंडेय सरोवर, चंदन तालाब, श्वेत गंगा सरोवर, लोकनाथ सरोवर और चक्र तीर्थ है. यहां की खासियत है कि साल भर जगन्नाथ पुरी देसी-विदेशी पर्यटकों से गुलजार रहता है.


हावड़ा-चेन्नई रेल मार्ग से संबंधित जगन्नाथ पुरी रेल मार्ग से देश के किसी भी स्थान से जाना संभव है. दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, रांची, भोपाल आदि बड़े नगरों से यहां तक सीधे रेल मार्ग का संपर्क जुड़ा है. हवाई सेवा राजधानी भुनेश्वर से सुविधाजनक है. संपूर्ण राज्य में और पड़ोसी राज्यों के नगरों से आरामदायक बस सेवा है. नगर दर्शन के लिए स्थानीय बस सेवा भी सुविधाजनक है.
आसपास के दर्शनीय स्थल :
जगन्नाथ पुरी से आप कोणार्क और भुवनेश्वर तो जा ही सकते हैं. इसके साथ ही साथ आसपास धौली, उदयगिरि-खंडगिरि पहाड़ियां, अत्रि, चिल्का झील आदि प्रमुख स्थानों पर घूमने जा सकते हैं.
क्या खरीदारी करें :
जगन्नाथ पुरी घूमने के साथ-साथ खरीदारी के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां आने वाले लोग यादगार के रूप में कुछ न कुछ अवश्य लेते हैं, जिनमें ओडिया कला-संस्कृति से प्रभावित कपड़े, हैंड बैग, सजावटी सामान, सिल्क सामग्री, पत्थर के समान, पत्थर की मूर्तियां, सीप की वस्तुएं, शंख से बने सामान और समुद्री चीजों से बने सजावटी सामान के साथ-साथ स्थानीय मिट्टी के बने सामान लेना यादगार हो सकता है.

कुल मिलाकर जगन्नाथ पुरी के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सही है कि आप कितने बार भी यहां की यात्रा क्यों न कर लें, पुरी दर्शन की अभिलाषा कभी खत्म नहीं होती.

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