Janmashtami 2023 Date: भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना के लिए भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि अत्यंत ही शुभ मानी गयी है, क्योंकि धार्मिक मान्यतानुसार, इसी दिन भगवान विष्णुने कृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था. उस समय रोहिणी नक्षत्र था. इस साल की जन्माष्टमी बहुत खास है. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि और बुधवार के दिन हुआ था और इस बार कान्हा का जन्मदिवस बुधवार को ही मनाया जायेगा. धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि कृष्णावतार के समय पृथ्वी से अंतरिक्ष तक समूचा वातावरण सकारात्मक हो गया था. प्रकृति, पशु पक्षी, देव, ऋषि, किन्नर आदि सभी हर्षित और प्रफुल्लित थे. चहुंओर सुरम्य वातावरण बन गया था.
श्रीकृष्ण ने योजनाबद्ध रूप से मानवजाति के कल्याण हेतु पृथ्वी पर मथुरापुरी में अवतार लिया. भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में असीम शक्ति है. यह श्रीकृष्ण की भक्ति का ही फल था कि उनके गरीब मित्र सुदामा की दयनीय स्थिति को देखकर श्री कृष्ण ने उन्हें बिना बताये धनवान बना दिया. यह विदुर जी के श्री कृष्ण भक्ति का ही परिणाम था कि श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध आरंभ होने के पूर्व उनके घर जाकर रुखा-सूखा भोजन किया, जबकि उनके लिए 56 प्रकार के भोग कौरवों ने अपने घर पर बनाये हुए थे. यह भी श्री कृष्ण की भक्ति का ही फल था कि द्रौपदी ने उन्हें केवल एक चावल का दाना और साग खिला कर भाई बना लिया और श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय भक्त की रक्षा की. यह श्री कृष्ण की भक्ति का ही परिणाम था कि मीरा ने अंततः उन्हें प्राप्त कर लिया. ऐसे कितने ही उदाहरण और कितने ही प्रकरण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि श्रीकृष्ण की भक्ति में असीम शक्ति है.
ज्योतिषाचार्य डॉ श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि इस दिन सबसे पहले मध्याह्न रात्रि के समय काला तिल जल में डालकर स्नान करें. अब घर के मंदिर में श्री कृष्ण भगवान या फिर ठाकुर जी की मूर्ति को पहले गंगाजल में स्नान करा कर फिर मूर्ति को दूध-दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के पंचामृत से स्नान कराएं. अब शुद्ध जल से स्नान करा कर 12:00 रात्रि में भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजा- अर्चना करें और फिर आरती करें. बाल गोपाल को केसर-मेवा, मिश्री, साबूदाने या तुलसी दल डालकर खीर का भोग लगाएं. साथ ही सफेद मिठाई भी अर्पित करें. ऐसा करने से कान्हा की कृपा मिलती है और भाग्य भी मजबूत होता है.
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जन्माष्टमी पर भक्त श्रद्धानुसार उपवास रखते हैं. साथ ही भगवान कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. भगवान कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में हुआ था. अत: लोग अपने घर में लड्डू गोपाल का भी जन्मोत्सव मनाते हैं. उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर फूल अर्पित करते हैं. इसके बाद कृष्ण जी को भोग लगाया जाता है और उस भोग को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. तत्पश्चात् व्रत का पारण किया जाता है.
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष बुधवार, 6 सितंबर की रात्रि 07:57 बजे के बाद से अष्टमी तिथि लग जायेगी एवं दिन में 02:39 बजे से रोहिणी नक्षत्र भी प्रारंभ हो जायेगी. इस प्रकार इसी दिन अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के संयोग से ‘जयंती’ नामक योग में स्मार्त्त गृहस्थ तथा अन्य सभी लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनायेंगे. वहीं वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले उदय कालिक अष्टमी तिथि यानी गुरुवार, 7 सितंबर को जन्माष्टमी का व्रत-पर्व मनायेंगे. इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनेगा.
भगवान की पूजा के दौरान ‘क्लीं कृष्णाय वासुदेवाय हरि:परमात्मने प्रणत:क्लेशनाशाय गोविंदय नमो नम:’ का जप अधिक से अधिक करें. प्रभु की कृपा से जीवन में आनेवाली बाधा दूर हो जाती है.
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धूप बत्ती, अगरबत्ती, पंच मेवा, गंगाजल, शहद, शक्कर, तुलसी दल, शुद्ध घी, दही, दूध,कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे, तुलसीमाला, खड़ा धनिया, सप्तमृत्तिका, सप्तधान, कुशा व दूर्वा, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न, छोटी इलायची, लौंग मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन, बाजोट या झूला (चौकी, आसन), पंच पल्लव, पंचामृत, केले के पत्ते, औषधि, श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर, गणेशजी की तस्वीर, अम्बिका जी की तस्वीर, भगवान के वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने के लिए वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने के लिए वस्त्र, जल कलश, सफेद कपड़ा, लाल कपड़ा, पंच रत्न, नारियल, चावल, गेहूं, दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, ताम्बूल, गुलाब और लाल कमल के फूल, दूर्वा, अर्घ्य पात्र आदि.
मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. साथ भी भगवान की कृपा भी बनी रहती है. विधिपूर्वक यशोदा नदंन की पूजा करने से सुख-समृद्धि का व संतान सुख का आशीर्वादमिलता है.
माई री! मै तो लियो गोविन्दो मोल। कोई कहे चान, कोई कहे चौड़े, लियो री बजता ढोल।। कोई कहै मुन्हंगो, कोई कहे सुहंगो, लियो री तराजू रे तोल। कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो, लियो री आख्या खोल।। याही कुं सब जग जानत हैं, रियो री अमोलक मोल। मीराँ कुं प्रभु दरसन दीज्यो, पूरब जन्म का कोल।।
इस पद में मीरा बाई अपनी सखी से कहती हैं- ‘‘माई मैंने श्री कृष्ण को मोल ले लिया है. कोई कहता हैं, अपने प्रियतम को चुपचाप बिना किसी को बताये पा लिया है. कोई कहता है, खुल्लम-खुला सबके सामने मोल लिया है. मै तो ढोल बजा-बजाकर कहती हूं, बिना छिपाव-दुराव सभी के सामने लिया है. कोई कहता हैं, तुमने सौदा महंगा लिया है, तो कोई कहता है सस्ता लिया है. अरे सखी मैंने तो तराजू से तोलकर गुण-अवगुण देखकर मोल लिया है. कोई काला कहता है, तो कोई गोरा, मगर मैंने तो अपनी आंखों को खोलकर यानी सोच-समझकर कृष्ण को खरीदा है.