कथा वाचक जया किशोरी jaya kishori की कथा व भजनों को काफी ज्यादा सुना जाता है. वो अपने भजनों से तो कभी कथाओं से लोगों को जगाने का काफी प्रयास करती रहती हैं. कथा वाचक और भजन गायिका जया किशोरी जी (jaya kishori ) ने अपने एक कथा वाचन (jaya kishori katha ) के दौरान एक बेहद ही भावनात्मक और चिंताजनक विषय पर अपनी चिंता जाहिर की और इसको लेकर लोगों को नसीहत दी जिसे समझने की जरूरत आज के दौर में काफी ज्यादा है. जया किशोरी जी (Jaya kishori ji) एक कथा वाचक और भजन गायिका (jaya kishori bhajan ) है. जो बहुत कम उम्र में ही आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़ी और बहुत कम समय के अंदर भारत के अलावा विदेशों में भी उनके लाखो श्रोता हो गए जो उनके कथा वाचन को काफी पसंद करते हैं.
जया किशोरी का भजन इन दिनों यूट्यूब पर धूम मचा रहा है. जब जया किशोरी भजन सुना रही है, इस दौरान सभी भक्त इस भजन पर झूम रहे है. इस भजन पर सभी भक्तों ने जमकर नृत्य किया. वहीं, भक्त जया किशोरी के साथ सूर में सूर मिलाकर साथ दे रहे हैं. जया किशोरी ने बताया कि जो भी जीव भगवान श्रीकृष्ण को भक्ति के साथ पुकारता है, भगवान वहा जरूर जाते हैं. जया किशोरी ने कहा कि रसखान जी की आदत थी कि वह काम करने से पहले एक पान के दुकान पर जाते थे.
पान की दुकान पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का एक फोटो लगा था. एक दिन की बात है कि रसखान जी उस पान की दुकान पर एक बालक की फोटो देखते हैं. उस फोटो में भगवान श्रीकृष्ण नंगे पैर थे. नंगे पैर भगवान की फोटो देखकर रसखान जी ने दुकानदार को कहने लगे कि इस बालक को जुतिया पहना दो, नहीं तो बच्चे के पैरों में कांटे चुभ जाएंगे.
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दुकानदार रसखान जी को ही जुतिया पहनाने की बात कहता है. इसके बाद रसखान जी दुकानदार से पूछते हैं कि यह बालक कहां मिलेगा, इस पर दुकानदार कहता है कि आप वृंदा वन चले जाइए, वहीं, पर यह बालक मिल जाएगा. इसके बाद इस बालक को खोजते-खोजते रसखान जी वृंदावन पहुंच जाते है. वृंदावन में लोगों से इस बालक का पता पूछते है.
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रसखान जी वृंदा वन पहुंच कर बार-बार पूछ रहे है, कि यह बालक कहा मिलेगा. इसके बाद वृंदा वन के लोग उनसे पूछते है कि आप जिस बालक को खोज रहे है वह दिखता कैसा है. तब रसखान जी बताते है कि वह सांवले रंग का छोटा बालक है, जिसके बाल घुंघराले है, माथे पर मोर मुकुट लगा हुआ है. आंखों में काजल लगा हुआ है. उसकी मुस्कान बहुत प्यारी है.
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इतना सुनने के बाद वृदा वन के लोग उन्हें श्रीकृष्ण भगवान के मंदिर के पास पहुंचा देते है और उनसे कहते है कि यहीं उस बालक का घर है. इसके बाद रसखान जी वहीं बैठकर उस बालक के आने का इंतजार करने लगते है. इसके बाद श्रीकृष्ण भगवान रसखान को उसी बाल रूप में दर्शन देते है. जिसकी कल्पना रसखान जी ने की थी.