शिव की पूजा से ज्यादा फल शिवलिंग पूजन से, जानें वैद्यनाथ क्यों कहलाएं देवो के देव

शिव के बिना जगत की परिकल्पना संभव नहीं. शिव की पूजा से ज्यादा फल शिवलिंग के पूजन से आस्तिाकों को मिलते है, यह जगजाहिर है. इस देव को वैद्यों के नाथ वैद्यनाथ कहा गया है आखिर क्यों?

By Prabhat Khabar News Desk | July 19, 2023 3:05 PM

Lord Shiva. हिंदू धार्मिक ग्रंथों में आदिदेव महादेव को सर्वशक्तिमान देव माना गया है. इन्हें शिव की संज्ञा आख्यानों में दी गयी है. शिव जगत के लोगों के प्राणधार हैं. शिव ने ही सृष्टि की है. जगत के सर्जक, पालक और संहारक माने गये हैं. एक साथ तीनों गुणों का समवेत संगम ही शिव है. पौराणिक ग्रंथों में शिव पुराण है जिनमें शिव की महिमा को विशद रुप में आख्यायित की गयी है.

देवो गुणत्रयातीतश्चतुव्यूहो महेश्वर:

सकल: सकलाधार: शक्तेरुत्पतिकारणम्।

-शिवपुराण

कहने का तात्पर्य है कि शिव के बिना जगत की परिकल्पना संभव नहीं. गुणत्रयातीत से भगवान शिव चार व्यूहों में विभक्त हैं-ब्रह्मा, काल, रुद्र और विष्णु, ये चारों शिव के आधार हैं. शक्ति की जन्मस्थली है. धार्मिक ग्रंथों की माने तो शिव सत्य है, सुंदर हैं. इनकी एक से एक क्रियाएं मानवों के हित में हैं. वैसे कहा जाता है कि शिव ने ही सभी विद्याओं को जन्म दिया. चाहें मंत्र विधा हों या तंत्र, चाहे नाट्य विधा हों या वैद्य विधा, सबों को शिव ने ही जगत में अवतरित किया है. शिव की परिकल्पना एक ऐसी मूर्ति के रूप में है जो मूर्त भी हैं और अमूर्त भी. निराकार भगवान के तौर पर कोई भजते हैं तो कोई साकार मूर्ति के तौर पर खैर जो भी हो शिव शाश्वत देव हैं. शिव की पूजा लिगवत होती है.

देश का एकमात्र ज्योतिर्लिंग जहां शिव-शक्ति दोनों एक साथ हैं विराजमान

शिव ही एक ऐसे देव हैं, जिनके शक्ति संग शिव की अर्चना एक साथ होती रही है. तार्किक तौर पर देखें तो जगत में जो भी मानव हैं, उनकी शक्ति की पूछ है. निर्बल होना शाप माना जाता है. किसी भी मनुष्य मात्र के लिए सृष्टि की गति को आगे बढ़ाने के लिए शिव प्रदत शक्ति न रहे तो वह समाज के कोने का आदमी बन जाता है. निरोग होना प्रकृति का उत्तम विधान है. 12 ज्योतिर्लिंगों में झारखंड का बाबा बैद्यनाथ धाम ही ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां और शिव-शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यानी यहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है.

वैद्यनाथ क्यों कहलाएं शिव

शशिवलिंगे अपि सर्वेसां देवानां पूजनं भवेत्।

सर्वलोकमये यस्माच्छिवषक्तिर्विभु: प्रभु:॥

-शिवपुराण

शिव की पूजा से ज्यादा फल शिवलिंग के पूजन से आस्तिाकों को मिलते है, यह जगजाहिर है. इस देव को वैद्यों के नाथ वैद्यनाथ कहा गया है आखिर क्यों? यह एक अहम प्रश्न हर भक्तों के मन में हमेषा उत्सुकता वस उठता है. कथाओं के अनुसार शिव से बढ़कर कोई वैद्य इस दुनिया में नहीं हुए हैं. मानव के देह में हाथी का मस्तक सफलता पूर्वक जोड़ने का कथा आयी है. कथा के अनुसार एक बार शिव और माता पार्वती भूलोक में विहार करने के लिए आयी थी. एक सुंदर वन में उमा संग शिव कुछ दिनों के लिए वास किये थे. पार्वती सानंद रह रही थी. एक दिन देवाधिदेव शिव जी फल लाने के लिए दूर चले गये जहां पर विहंगम दृष्य देख कर कुछ दिनों के लिए रह गये. इधर पार्वती एक दिन नहाने के लिए जा रही थी. अपने देह में उबटन लगायी और मन में कौतूहलता हुई कि उबटन को संग्रहित कर एक आकृति का रुप दे दूं. बस क्या था माता पार्वती ने भगवान हरि का स्मरण कर एक पुत्र के रूप में आकृति बना डाली. पुनश्च उसमें जान फूंकी तो वह मानव जीवंत हो उठा.

अपना बालक समझ पार्वती ने घर के बाहर नगर रक्षार्थ तैनात कर दी. वह अपनी सखियों के संग विहार करने लगीं. इस दौरान तरह-तरह की जलक्रीड़ा कर रही थीं. इधर शिव को अपनी नगरी याद आयी तो वे वापस आये. नगर में एक बालक को देख वे आश्चर्यचकित हो गये. अपने घर में प्रवेश करने का प्रयास किये तो मासूम बालक ने मार्ग रोका और मना किया. शिव जी आग बबूला हो गये और अपने शूल से बालक का सिर कत्ल कर दिये. मस्तक कहां चला गया इसका भी पता नहीं चल पाया. कहा गया है कि सिर भस्मीभूत हो गया. वह जब अपने घर में प्रवेश किया तो पार्वती को जलक्रीड़ा स्थल पर देखे पार्वती के पूछने पर सारी घटना बता दी. पार्वती कुपित हो गयीं और विलाप करने लगी कि आपने मेरे पुत्र की यह दशा क्यों कर दी. इस पर शिव जी ने कहा कि मैं जान नहीं रहा था कि यह तुम्हारी संतान है.

अज्ञात्वा ते सिरष्छिन्नं शूलेनानेन यन्म्या।

तेनाहं सापराधोस्मि सत्यं सत्यं जनार्दन॥

शिव को पार्वती ने सख्त हिदायत दी कि जल्द ही मेरे पुत्र को जीवित कर दें नहीं तो मैं अपनी शक्ति का प्रभाव दिखा दूंगी. जब सबों के भोलेनाथ हैं तो कैसे नहीं मानते. शिव जी राजी हो गये, वे जंगल की ओर चल दिये. पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे एक जंगल में गये जहां पर एक गजराज उतर दिशा की ओर पांव करके सोया था. शिव ने वध करना उचित समझा.

ततोरण्ये समालोक्य गजराजं महाबलम्।

उदकषिरसमेकत्र श्यानं स महेश्वर: ॥

अपने पाणि में लिये त्रिशूल से गजराज का मस्तक काटा और सिर कटे बालक के देह में प्रतिरोपित कर दिया. इस प्रकार से शिव ने जिस प्रकार के कार्य कर लोक में दिखाये वह एक कुशल चिकित्सक आज भी नहीं कर पा रहा है. भले ही दुनिया आगे बढ़ी हो पर शिव जो वैद्य थे, वैद्यों के नाथ -वैद्यनाथ कहे जाते हैं के सामने तुच्छ हैं.

Also Read: शिव की आराधना से दांपत्य जीवन में आती हैं खुशियां, 16 श्रृंगार से भर जाएगा वैवाहिक जीवन, ऐस करें पूजा

Next Article

Exit mobile version