Jitiya Vrat 2023: हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक महिलाएं जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखकर पूजा करती हैं. इस साल 6 अक्टूबर 2023 को जितिया का पर्व मनाया जाएगा. जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत के पुण्य प्रताप से संतान की आयु लंबी होती है. वहीं, जितिया व्रत करने से नवविवाहित महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है. आइए ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री से जानते है जितिया व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और पूरी जानकारी
जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस साल यह व्रत 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है. जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला होता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं.
इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को रखा जाएगा. अष्टमी तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर की सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगी. वहीं अष्टमी तिथि का समापन 7 अक्टूबर 2023 को सुबह 08 बजकर 10 मिनट पर होगा. यह पर्व तीन दिनों का होता है, जो की 5 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा. इसबार 5 अक्टूबर को नहाय खाय और 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को निर्जल व्रत रखा जाएगा. वहीं 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को व्रत का पारण किया जायेगा. व्रत का पारण नवमी की सुबह किया जाता है, जिउतिया व्रत का पारण 7 अक्टूबर दिन शनिवार को 08 बजकर 10 मिनट से लेकर दोपहर तक किया जा सकता है. पारण के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है.
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जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत भी कहा जाता है. महिलाएं ये व्रत अपने बच्चों की समृद्धि, सुख-शांति और उन्नत जीवन के लिए रखती हैं. यह सबसे कठिन उपवासों में से एक माना जाता है, जो 3 दिन तक नियमों से चलता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 06 अक्टूबर 2023 को रखा जाएगा.
जितिया व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन माना गया है. जो महिलाएं जितिया व्रत रखती हैं, उन्हें एक दिन पहले अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तथि की शाम को आठ तरह की सब्जियां, अरुआ का चावल और मड़ुआ की रोटी खाते हैं. इसके बाद अष्टमी तिथि को उपवास करती हैं. अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आंगन या अखरा में जितिया (पवित्र अंजीर) की एक शाखा लगाती हैं. वे पुआ, ढूसका बनाते हैं और एक टोकरी में आठ प्रकार की सब्जियां, फूल और फल रखते हैं.
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छठ के व्रत की तरह ही जितिया व्रत से एक दिन पूर्व नहाय-खाय किया जाता है. इसमें व्रती स्नानादि और पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करती है और अगले दिन निर्जला उपवास रखती हैं. इसीलिए नियम के तहत नहाय-खाय के दिन भूलकर भी लहसुन-प्याज, मांसाहार या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए.
जितिया व्रत सामग्री में मीठा, पान, लौंग, दूर्वा, सुपारी, श्रृंगार का सामान, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई, फल और गाय का गोबर आदि शामिल हैं. सुबह निवृत्त होकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं. फिर पूजा की सामग्री को इकट्ठा किया जाता है. भगवान जीमूतवाहन की विधि-विधान से पूजा होती है और कथा सुनी जाती है.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिनको लंबे समय से संतान नहीं हो रही है, उनके लिए जितिया का व्रत (Jitiya Vrat) तप के समान माना जाता है. संतान की आयु बढ़ाने और उन्हें हर तरह का सुख उपलबध कराने की कामना वाली भावना के साथ महिलाएं यह व्रत करती हैं. यह निर्जला व्रत होता है.
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यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख समृद्धि के लिए रखती हैं. कई महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा के साथ भी यह व्रत करती हैं. इतना ही नहीं जिनकी संतान के जीवन में कुछ स्वास्थ्य, रोग जैसी परेशानी हो तो इसे दूर करने की कामना के साथ भी महिलाएं जितिया व्रत करती हैं.
जिऊतिया की परंपरा में एक कथा गन्धर्वराज जीमूतवाहन (Bhagvan Jimootvahan) की भी है. कहते हैं कि वे बड़े ही धर्मात्मा व्यक्ति थे. युवावस्था में ही उन्होंने राजपाट छोड़ दिया और वन में पिता की सेवा करने लगे. एक दिन वह जंगल से गुजर रहे थे तो देखा कि एक सुनसान स्थान पर नागमाता विलाप कर रही हैं.