Jivitputrika Vrat 2020 Date, Jitiya Puja 2020, Jivitputrika Vrat Katha: संतान की खुशहाली के लिए रखे जानेवाले व्रत जितिया में सप्तमी यानी नहाय-खाय के दिन से ही नियमों का पालन शुरू कर दिया जाता है. इस व्रत को शुरू करने से पहले अलग-अलग क्षेत्रों में खान-पान अपनी क्षेत्रीय परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि इन चीजों के सेवन से व्रत शुभ और सफल होता है. संतान की खुशहाली और उसकी लंबी कामना की लिए जितिया का व्रत किया जाता है. उत्तर प्रदेश, बिहार के मिथलांचल सहित, पूर्वांचल और नेपाल में काफी लोग इस व्रत को करते हैं. क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर किए जाने वाले इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे या कई बार उससे भी ज्यादा समय के लिए महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं.
संतान की खुशहाली और उसकी लंबी कामना के लिए जीवित्पुत्रिका या जितिया का व्रत किया जाता है. बिहार के मिथलांचल सहित, पूर्वांचल और कुछ हद तक नेपाल में काफी लोग इस व्रत को करते हैं. क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर किए जाने वाले इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे या कई बार उससे भी अधिक समय के लिए महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. इस व्रत को जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत भी कहा जाता है.
जितिया व्रत प्रतिवर्ष अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है और नवमी तिथि को इस व्रत का पारण के साथ इसका समापन किया जाता है. इस व्रत को शुरू करने को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में खानपान की अपनी अलग-अलग परंपरा है. यह परंपरा बेहद दिलचस्प है, तो आइए जानते है कि जितिया व्रत से जुड़ी परंपराओं की पूरी जानकारी…
जितिया व्रत से एक दिन पहले नहाय खाय के दिन मछली खाने की परंपरा है. मछली खाना वैसे तो पूजा-पाठ के दौरान मांसाहार को वर्जित माना गया है, लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में, जैसे कि मिथलांचल में जितिया व्रत के उपवास की शुरुआत मछली खाकर की जाती है, इसके पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा है. इस कथा के आधार पर मान्यता है कि मछली खाने से व्रत की शुरुआत करनी चाहिए. और यहां मछली खाकर इस व्रत की शुरुआत करना बहुत शुभ माना जाता है.
मड़ूआ की रोटी इस व्रत से पहले नहाय-खाय के दिन गेंहू की बजाय मड़ूआ के आटे की भी रोटी बनाने का भी प्रचलन है. और इन रोटियों को खाने का भी प्रचलन है. मड़ूआ के आटे से बनी रोटियों का खाना इस दिन बहुत शुभ माना गया है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
झिंगनी इस व्रत और पूजा के दौरान झिंगनी की सब्जी भी खाई जाती है. झिंगनी आमतौर पर शाकाहारी महिलाएं खाती हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भी खाई जाती है.
नोनी का साग इस व्रत में नोनी का साग बनाने की परंपरा और खाने की परंपरा है. नोनी में केल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है. ऐसे में इसे लंबे उपवास से पहले खाने से कब्ज आदि की शिकायत नहीं होती है. और पाचन भी ठीक रहता है. इसलिए नहाय-खाय के दिन ही नोनी का साग खाया जाता है. पारण के दिन भी नोनी का साग खाया जाता है.
इस व्रत के पारण के दिन महिलाएं लाल रंग का धागा गले में धारण करती हैं, जितिया व्रत का लॉकेट जिसमें जीमूतवाहन की तस्वीर लगी होती है, उसे भी धारण करती हैं. इस व्रत में किसी-किसी क्षेत्र में सरसों के तेल और खली का भी प्रयोग होता है. जीमूतवाहन भगवान की पूजा में सरसों का तेल और खली चढ़ाई जाती है. व्रत समाप्त होने के बाद इस तेल को बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के रूप में लगाया जाता है.
News Posted by: Radheshyam kushwaha