Kalashtami 2021: आज है कालाष्टमी व्रत, काल भैरव की पूजा के समय जरूर पढ़ें ये पौराणिक कथा, जानें क्या है इसका महत्व

Kalashtami 2021: आज कालाष्टमी का पर्व है. आज का दिन काल भैरव को समर्पित है. आज 4 फरवरी दिन गुरुवार को कालाष्टमी पर भक्तों ने भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए व्रत रख पूजा-पाठ कर रहे हैं. काल भैरव को भगवान शिव का पांचवा अवतार माना गया है. काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 4, 2021 9:59 AM

Kalashtami 2021: आज कालाष्टमी का पर्व है. आज का दिन काल भैरव को समर्पित है. आज 4 फरवरी दिन गुरुवार को कालाष्टमी पर भक्तों ने भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए व्रत रख पूजा-पाठ कर रहे हैं. काल भैरव को भगवान शिव का पांचवा अवतार माना गया है. काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई है.

हिंदू धर्म में आठ भैरव माने गए हैं

1.असितांग भैरव, 2. रुद्र भैरव, 3. चंद्र भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव. भगवान काल भैरव को शत्रुओं का नाश करने वाले और मनोकामनाएं पूरी करने वाला और दुखों को दूर करने वाला बताया गया है.

कालाष्टमी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली. इस बात पर बहस बढ़ गई. इसके बाद सभी देवताओं बैठक हुई. बैठक में सभी देवताओं से पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा. सभी देवताओं का समर्थन शिवजी और विष्णु ने किया, लेकिन ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए. इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा.

मान्यता है कि शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया. इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए इन्हें दंडाधिपति कहा गया है. शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए. भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया. ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए.

भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला. इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा. इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है. इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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