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महिलाएं बाएं हाथ में क्यों बांधती हैं कलावा, क्या हैं इसे पहनने के नियम

Kalawa Rules: कलावे को मौली या रक्षासूत्र के नाम से भी जाना जाता है. यह माना जाता है कि धार्मिक अनुष्ठानों के समय कलावा बांधने से उन कार्यों की पवित्रता बनी रहती है. इसके अतिरिक्त, यह विश्वास भी है कि रक्षा सूत्र हमारी सुरक्षा करता है और नकारात्मकता को हमसे दूर रखता है. आइए, इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण नियमों के बारे में जानते हैं.

Kalawa Rules: कलावा, जिसे मौली के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण है. इसे पूजा-पाठ के समय हाथ में बांधने की परंपरा है. इसे एक पवित्र धागा माना जाता है. कलावा आमतौर पर लाल और पीले रंग के धागों से निर्मित होता है. इसे देवताओं की कृपा, सुरक्षा और शुभता का प्रतीक माना जाता है.

केवल विवाहित महिलाओं के लिए रक्षा सूत्र बायें हाथ में बांधा जाता है, जबकि अन्य सभी व्यक्तियों, जैसे पुरुष, कन्याएं, अविवाहित महिलाएं या जिनके जीवन साथी का निधन हो चुका है, के लिए यह दाएं हाथ में बांधा जाता है.

योगसूत्र और आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर में 72 हजार नाड़ियां (सूक्ष्म धमनियां) होती हैं, और महिलाओं के दाएं हाथ की नाड़ी गर्भावस्था पर प्रभाव डाल सकती है. दाएं हाथ की नाड़ी पर विशेष दबाव डालने से गर्भस्थ शिशु और मां दोनों को नुकसान हो सकता है. इस कारण विवाहित महिलाओं के स्वास्थ्य और गर्भधारण की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनके बाएं हाथ में कलावा या रक्षा सूत्र नहीं बांधा जाता है.

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प्राचीन काल में रक्षा सूत्र बांधने के लिए विशेष प्रशिक्षण और अभ्यास को अत्यधिक महत्व दिया जाता था, क्योंकि इसका धार्मिक महत्व के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी.

विशिष्ट स्थान पर विशेष तरीके से गांठ बांधने से व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी स्थिति, आवश्यकता और शरीर की प्रकृति पर प्रभाव डाला जा सकता है.

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में कलाई की नाड़ी का परीक्षण और उसे संतुलित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. रक्षा सूत्र भी कलाई की उसी नाड़ी पर बांधा जाता है, जिस नाड़ी का परीक्षण वैद्य या नाड़ी चिकित्सक कलाई के विशेष बिंदु पर करते हैं.

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