Kali Puja 2022 : काली पूजा पर बोकारो के काली मंदिर में ये है परंपरा, संतान की मुराद होती है पूरी

हर साल काली पूजा पर विशेष पूजा होती है. इस मौके पर बकरे की बलि दी जाती है. ऐसे अनेक गांव हैं, जहां माघ अमावस्या को भी माघी काली के नाम से काली पूजा की परंपरा है. बताया जाता है कि संतान के इच्छुक हर दंपती की मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है.

By Guru Swarup Mishra | October 20, 2022 9:27 PM
an image

Kali Puja 2022: बोकारो के बेरमो अनुमंडल के काली मंदिर भक्तों की आस्था के केंद्र हैं. इनमें से कई मंदिर 200 वर्ष, तो कई मंदिर 50 साल से ज्यादा पुराने हैं. गोमिया, साडम, बोकारो थर्मल, गांधीनगर, कथारा, फुसरो, चंद्रपुरा, अंगवाली, पिछरी आदि क्षेत्रों में कई काली मंदिर हैं, जहां हर साल काली पूजा के दिन विशेष पूजा होती है. इस मौके पर बकरे की बलि दी जाती है. ऐसे अनेक गांव हैं, जहां माघ अमावस्या को भी माघी काली के नाम से काली पूजा की परंपरा है, परंतु कार्तिक मास में अमावस्या की रात दिवाली में काली पूजा काफी प्रसिद्ध है. बताया जाता है कि संतान के इच्छुक हर दंपती की मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है.

200 साल से हो रही है बरवाडीह में काली पूजा

बिरनी पंचायत अन्तर्गत बरवाडीह गांव में स्थापित मां काली की पूजा का इतिहास 200 साल पुराना है. यहां संतान के इच्छुक हर दंपती की मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. मुराद पूरी होने पर कार्तिक माह की अमावस्या को होनी वाली मां काली की पूजा पर बकरे की बलि दी जाती है. पूजा के अगले दिन एक दिवसीय मेला का आयोजन किया जाता है. पूजा को लेकर यहां के ग्रामीणों, महिलाओं एवं युवाओं में विशेष उत्साह देखा जाता है. काली मंडप के मुख्य पुजारी ॠषिकेश पाण्डेय व सीताराम पाण्डेय ने बताया कि लगभग 200 वर्ष पूर्व गांव के अन्तराम पाण्डेय को संतान नहीं हो रही थी. उन्होंने मां काली से मन्नत मांगी कि संतान होने पर वह पूजा करेंगे. मां काली के आशीर्वाद से लगभग 50 वर्ष की उम्र में वह पिता बने. तब उन्होंने मां काली की प्रतिमा की स्थापना कर पूजा-अर्चना शुरू की.

Also Read: बिना नक्शा के बने भवनों को रेगुलराइज करने की मांग, सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड चैंबर को दिया ये आश्वासन

काली पूजा को लेकर विशेष तैयारी

इसके बाद से गांव के लोगों के सहयोग से काली पूजा की जा रही है. यहां आज भी संतान के इच्छुक दंपती मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर पूजा कर बकरे की बलि देते हैं. हर वर्ष यहां लगभग 250-300 बकरे की बलि दी जाती है. मंदिर के पुजारी के अनुसार पूजा को लेकर हर वर्ष विशेष तैयारी की जाती है. पिछले दो वर्ष कोरोना काल को लेकर सादगी व भक्तिमय वातावरण में पूजा-अर्चना की गई. इस वर्ष कोरोना के बाद त्योहार रहने के कारण ग्रामीणों की भीड़ उमड़ने की संभावना को देखते हुए तैयारी की जा रही है. झूमर, चत्रिहार, नृत्य, भक्ति जागरण आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होगा. रविवार को स्नान कर सोमवार को दिनभर उपवास करने के बाद रात्रि में मां काली की आराधना की जाएगी. मंगलवार की अहले सुबह बकरे की बलि तथा संध्या में मेले का आयोजन कर प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा.

रिपोर्ट : राकेश वर्मा, बेरमो, बोकारो

Exit mobile version