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Karwa Chauth 2024: जानें करवा माता के बारे में, ऐसे पड़ा करवा चौथ का नाम

Karwa Chauth 2024, Karwa Mata Puja Vidhi: करवा चौथ के व्रत का हिंदू धर्म में अहम महत्व है. करवाचौथ पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और मजबूत संबंधों का प्रतीक है. आइए जानें इसका नाम करवा चौथ कैसे पड़ा

By Shaurya Punj | October 18, 2024 8:54 AM
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Karwa Chauth 2024, Karwa Mata Puja Vidhi: दांपत्‍य जीवन में मिठास और संबंधों को और अधिक दृढ़ बनाने वाला त्‍योहार करवा चौथ इस वर्ष 20 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और शाम को चांद को अर्घ्‍य देकर तथा छलनी से अपने पति का चेहरा देखकर अपना व्रत समाप्त करती हैं.

करवा चौथ के नाम का अर्थ क्या होता है ?

‘करवाचौथ’ शब्द ‘करवा’ अर्थात ‘मिट्टी का बर्तन’ और ‘चौथ’ अर्थात ‘चतुर्थी’ से मिलकर बना है. इस पर्व पर मिट्टी के करवे का विशेष महत्व होता है. सभी विवाहित महिलाएं पूरे वर्ष इस त्योहार की प्रतीक्षा करती हैं और इसकी सभी रस्मों को श्रद्धा के साथ निभाती हैं. करवाचौथ का यह पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और मजबूत संबंधों का प्रतीक है.

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करवा चौथ का व्रत

महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत का पालन करती हैं और सोलह श्रृंगार करके शिव, पार्वती, करवा माता, गणेश तथा चंद्रमा की पूजा करती हैं. इस अवसर पर महिलाएं व्रत के सभी नियमों का सख्ती से पालन करती हैं और करवा माता से अपने पति और परिवार की समृद्धि की प्रार्थना करती हैं. लेकिन क्या आपने कभी यह विचार किया है कि करवा माता वास्तव में कौन हैं और इस त्योहार का नाम करवा चौथ क्यों रखा गया है? आइए, करवा माता के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें.

प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ रहती थी, जो उम्र में काफी बड़े थे. एक दिन, जब उनका पति स्नान के लिए नदी में गए, तो अचानक एक मगरमच्छ ने उनके पैर को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी की ओर खींचने लगा. करवा के पति ने उन्हें पुकारा और मदद की गुहार लगाई. करवा, जो अपने पतिव्रता धर्म के प्रति अडिग थी, तुरंत वहां पहुंची. उन्होंने अपनी सूती साड़ी से एक धागा निकालकर अपने तपोबल से मगरमच्छ को बांध दिया. इसके बाद, करवा उस मगरमच्छ को लेकर यमराज के पास गई. यमराज ने उनसे पूछा कि देवी, आप यहां क्यों आई हैं और आपकी क्या इच्छा है.


करवा ने कहा कि इस मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर को पकड़ लिया था, इसलिए इसे मृत्युदंड दिया जाए और नरक में भेजा जाए. यमराज ने उत्तर दिया कि मगरमच्छ की आयु अभी समाप्त नहीं हुई है, इसलिए उसे समय से पहले नहीं मार सकते. करवा ने कहा कि यदि आप मगरमच्छ को मृत्युदंड नहीं देंगे और मेरे पति को दीर्घायु का वरदान नहीं देंगे, तो मैं अपने तपोबल से आपको समाप्त कर दूंगी. करवा की बात सुनकर यमराज और चित्रगुप्त आश्चर्यचकित हो गए और विचार में पड़ गए कि क्या किया जाए. अंततः यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेजने का निर्णय लिया और करवा के पति को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया.


चित्रगुप्त ने करवा को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुमने अपने पति की जान की रक्षा की है, जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूं. मैं यह वरदान देता हूं कि जिस दिन की तिथि पर कोई महिला श्रद्धा और विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत करेगी, उसके सौभाग्य की रक्षा मैं स्वयं करूंगा. उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि थी, जिसके कारण करवा और चौथ के मिलन से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने इस व्रत को किया, जिसका उल्लेख वराह पुराण में मिलता है.

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