सद्गुरुश्री स्वामी आनंद जी, आध्यात्मिक गुरु
सू र्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में लंगर डालेंगे, खरमास का आगाज होगा. बड़ी अनोखी बात यह है कि देवगुरु कहे जानेवाले बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब जब सूर्य चरण रखते हैं, वह काल खंड सृष्टि के लिए सोचनीय हो जाता है और वक्त के थपेड़ों की तपिश प्रणियों को बेचैन कर देती है. जिंदगी की बिसात पर समय का यह पन्ना जीव और जीवन के लिए उत्तम नहीं माना जाता.
शुभ कार्य इस काल में वर्जित कहे जाते हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है और इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय और अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है. मनुष्य ही नहीं, हर प्राणी की आंतरिक स्थिरता नष्ट होती है और चंचलता घेर लेती है. अंतर्मन में नकरात्मकता प्रस्फुटित होने लगती है. दैहिक और मानसिक विकार खर-पतवार की तरह परवान चढ़ने लगते हैं.
खरमास और आतंकवादी घटनाएं : मार्गशीर्ष को अर्कग्रहण भी कहते हैं. अर्कग्रहण का अपभ्रंश अर्गहण है और अर्कग्रहण एवं पौष का संगम है खरमास. इस दरम्यान सूर्य की रश्मियां दुर्बल होकर शक्तिहीन हो जाती हैं तथा नाना प्रकार के झमेलों का सूत्रपात करती हैं. सविता अर्थात सूर्य के धनु राशि के दरीचों से झांकते ही राशि के मालिक बृहस्पति अपने मूल स्वभाव के विपरीत आचरण करने लगते हैं और जैसे ही इस राशि में भास्कर के कदम पड़ते हैं, बंटाधार का आगाज होने लगता है.
मस्तिष्क में नाना प्रकार की खुराफातें अंगड़ाई लेने लगती हैं. गुरु तेजहीन होकर बेअसर दृष्टिगोचर होने लगता है. परिणाम स्वरूप बृहस्पति आचरण विचित्र हो जाता है और मानव सृष्टि में आतंक, भय और अजीब परिस्थितियों का सृजन होता है. कई बड़े कांड जैसे कंधार हाइजैक और विदेशों में गोलाबारी जैसी कई आतंकवादी घटनाएं इसी दरम्यान हुई हैं. कहते हैं कि इस माह में मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है.
आत्म कल्याण के लिए है अनूठा महीना : मार्गशीर्ष महीना स्वयं में बेहद विशिष्ट है. यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है. मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल खरमास के आगोश में बीतता है. इस दौरान यदि बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निर्मुक्त होकर, स्वयं में प्रविष्ट होकर खुद को तराशा जाये, निखारा जाये, संवारा जाये, तो व्यक्ति जीवन में उत्कर्ष का वरण करता है.
अमांगलिक फल देते हैं मांगलिक कार्य : धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब-सी उग्रता के कारण यह माह नकारात्मक कर्मों को प्रोत्साहित करता है, इसीलिए इसे कहीं-कहीं ‘दुष्ट माह’ भी कहा गया है. बृहस्पति के आचरण में उग्रता, अस्थिरता, क्रूरता एवं निकृष्टता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया है.
सूर्य उपासना बदल सकती है आपका जीवन : ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, सूर्य अकेले ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने का सामर्थ्य रखते हैं. दक्षिणायन होने पर सूर्य के आंतरिक बल में कमी परिलक्षित होती है. अतएव ढेरों अवांछित झमेलों का सूत्रपात होता है, पर उत्तरायण होते ही सूर्य नारायण समस्त ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं. अतः दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए दिनकर की उपासना असरदार मानी गयी है. ऐश्वर्य और सम्मान के अभिलाषियों को खरमास में ब्रह्म मुहूर्त में भास्कर की आराधना करनी चाहिए.
Posted by : Pritish Sahay