Papmochani Ekadashi 2020: जानिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पापमोचनी एकादशी की कौन सी कथा सुनाई थी.
Papmochani Ekadashi 2020: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, 19 मार्च 2020 दिन बुधवार को पापमोचनी एकादशी papmochani ekadashi march 2020 का व्रत रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा की जाएगी. इस एकादशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पापमोचनी एकादशी की एक कथा सुनाई थी.
Ekadashi in march 2020
इस साल 2020 में यह 19 मार्च को गुरूवार के दिन है. हिन्दु धर्म के अनुसार हर एक इंसान से जाने अंजाने में पाप हो ही जाता है और ईश्वरीय विधान के अनुसार पापमोचनी एकादशी का व्रत रखकर पाप के दंड से बचा जा सकता हैं. इसे पाप नष्ट करने वाली एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है.इस एकादशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पापमोचनी एकादशी की एक कथा Papmochani ekadashi vrat katha सुनाई थी.
पौराणिक संदर्भ :-
हिंदु धर्म में एकादशी व्रत की काफी मान्यता रही है. पुराणों के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसे अर्जुन से कहा है कि चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पाप मोचिनी है अर्थात पाप को नष्ट करने वाली है. पापमोचनी एकादशी व्रत papmochani ekadashi 2020 के बारे में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से बताया गया है. इसलिए लोगों की इसमें काफी आस्था रहती है.
जानिये भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पापमोचनी एकादशी papmochani ekadashi 2020 की कौन सी कथा papmochani ekadashi vrat katha का किया था जिक्र-
हिन्दु कैलेंड़र वर्ष के अनुसार पापमोचनी एकादशी papmochani ekadashi 2020 साल की अंतिम एकादशी होती है. जिसे पापमोचिनी एकादशी papmochani ekadashi भी कहते हैं .जो इस साल 2020 में 19 मार्च गुरुवार को है.
इस एकादशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है.
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि एक बार राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर कर्म करता है उससे उसे मुक्ति कैसे मिल सकती है?
राजा के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि उन्हें एक कहानी सुनाते हैं कि कैसे चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि एक बार तपस्या में लीन थे. तभी वहां मंजुघोषा नामक अप्सरा आई जो ऋषि पर मोहित होकर उन्हे सम्मोहित करने का प्रयास करने लगी. ऋषि घोर तपस्या में लीन थे और अप्सरा तमाम जतनों के बाद इसमें सफल नहीं हो पा रही थी. तभी कामदेव उस रास्ते से गुजर रहे थे और उनकी नजर उसपर पड़ी. अप्सरा की मनोस्थिति को समझते हुवे उन्होने उसकी मदद की. जिससे अप्सरा ऋषि के तपस्या को भंग कर पाने में सफल हो गयी और ऋषि उस अप्सरा मंजुघोषा पर मोहित हो गये .अपनी तपस्या को त्याग ऋषि ने शिव भक्ति छोड़कर उस अप्सरा के साथ ही रहने लगे. कई सालों के बाद ऋषि को अपनी इस गलती का एहसास हुआ और उन्हे खुद पर काफी ग्लानि हुई. इस पाप का कारण अप्सरा मंजुघोषा को मानकर उन्होने उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया.श्राप से दु:खी अप्सरा इससे मुक्त होने के लिए प्रार्थना करने लगीं. ठीक उसी समय नारद मुनि वहां आए और ऋषि व अप्सरा दोनों को इससे मुक्ति के लिए पापमोचनी एकादशी करने का सुझाव दिया.दोनों ने विधि-विधान से पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और पाप से मुक्त हो गये.इसलिए इस पापमोचनी एकादशी व्रत को पापमुक्ति के लिए काफी लाभदायक बताया गया है.