Kokila Vrat 2024: शादी-विवाह में आ रही बाधाएं तो आज करें कोकिला व्रत पूजा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

Kokila Vrat 2024: कोकिला व्रत आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है. कोकिला व्रत पूजा पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में करने का विधान है. आइए जानते है कोकिला व्रत पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

By Radheshyam Kushwaha | July 20, 2024 9:52 AM

Kokila Vrat 2024: आज कोकिला व्रत है. आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को व्रत रखा जाता है. आषाढ़ माह में आने वाला कोकिला व्रत केवल सुहागिनों के लिए ही नहीं, बल्कि कुंवारी कन्याओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं, ये व्रत भगवान शिव और माता सती को समर्पित है. इस दिन माता सती यानि आदिशक्ति के कोयल स्वरूप का पूजन किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत रखने से महिलाओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति हेाती है और शादी-विवाह में आ रही बाधाएं भी दूर होती हैं.

कोकिला व्रत 2024 डेट और मुहूर्त

कोकिला व्रत का पूजन शाम के समय किया जाता है, इसलिए यह व्रत 20 जुलाई 2024 को रखा जाएगा. आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई 2024 को शाम 05 बजकर 09 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 21 जुलाई 2024 को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट समाप्त होगी. वहीं आज पूजा मुहूर्त रात 07 बजकर 19 मिनट से रात 09 बजकर 22 मिनट तक है. आज पूजा करने की अवधि 2 घंटे 4 मिनट है.

रवि योग

कोकिला व्रत पर आज रवि योग दिन भर रहेगा. वहीं, भद्रावास संध्याकाल से है. पंचांग के अनुसार रवि योग आज 5 बजकर 36 मिनट से 21 जुलाई को देर रात 1 बजकर 49 मिनट तक है. आज पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र है.

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कोकिला व्रत की पूजा-विधि

पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें, इसके बाद मंदिर जाकर भगवान शिव का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें. विधि-विधान से भांग, धतूरा, बेलपत्र, फल अर्पण कर शिवजी और सती माता का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. पूजा के दौरान भगवान शिव को सफेद फूल और माता सती को लाल रंग के फूल चढ़ाएं. इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर आरती करें और कथा पढ़ें.

कोकिला व्रत कथा
सती राजा दक्ष की पुत्री थीं. राजा दक्ष को भगवान शिव बिल्कुल भी पसंद नहीं थे, लेकिन वह श्रीहरि के भक्त थे. जब माता सती ने शिव जी से विवाह करने की बात पिता दक्ष से कही तो वह इसके लिए तैयार नहीं हुए. लेकिन सती ने हठपूर्वक शंकर जी से ही विवाह किया. इस बात से नाराज होकर राजा दक्ष ने सती से सभी रिश्ते तोड़ दिए. राजा दक्ष ने एक बार बड़े यज्ञ का आयोजन किया. लेकिन उसमें सती जी और शिवजी को नहीं बुलाया, जब सती जी को इस यज्ञ की जानकारी हुई तो उन्होंने भगवान शिव से इस यज्ञ में उन्हें जाने की अनुमति देने का हठ किया. शिव ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन सती के हठ के कारण उन्होंने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. सती जब यज्ञ स्थल पर पहुंची तो वहां सती का अपमान किया गया. इसके साथ ही भगवान शिव के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल किया. भगवान शिव के प्रति वहां बोले गए अपमानजनक शब्दों से वह अत्यंत कुंठित हुई और यज्ञ की वेदी में ही अपनी आहुति दे दी. जब शिवजी को माता सती के सतीत्व का पता चला तो उन्होंने गुस्से में आकर उन्हें यह श्रॉप दे दिया कि मेरी इच्छाओं के विरुद्ध अपनी आहुति देने के लिए आपको 10 हजार साल तक कोयल बनकर वन में भटकना होगा, जिसके बाद माता सती को करीब 10 हजार सालों तक कोयल बनकर वन में रहना पड़ा. इस दौरान कोयल रूप में उन्होंने भोलेनाथ की आराधना की. जिसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और शिवजी को एक बार फिर से पति के रूप में प्राप्त किया.

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