कृष्ण हैं परम सत्य और सर्वशक्तिमान
कृष्णावतार के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने एक संपूर्ण मानव के रूप में जगत की तात्कालिक आवश्यकताओं को देखते हुए अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी
राधारमण दास
इस्कॉन, कोलकाता
हर कोई कृष्ण की तलाश कर रहा है, लेकिन किसी को यह एहसास नहीं कि वह हैं और वह हैं कृष्ण भगवान. वह, जिनका अस्तित्व था, है और हमेशा रहेगा. वह सभी के स्रोत हैं. वह सभी के कारण हैं.
कृष्ण शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘सर्व-आकर्षक’ है. वह देवत्व के सर्वोच्च शिखर हैं. दूसरे शब्दों में, कृष्ण भागवान हैं, क्योंकि वह सर्व आकर्षक हैं. व्यावहारिक अनुभव से हम समझ सकते हैं कि सभी में आकर्षण के मूल कारण (1) धन, (2) शक्ति, (3) प्रसिद्धि, (4) सुंदरता, (5) ज्ञान और (6) त्याग होते हैं. वैदिक साहित्य व वेदों के ज्ञाता पराशर मुनि कहते हैं कि जिनके पास एक साथ इन सभी छह वैभव व विभूतियों को धारण करने की क्षमता है, वही ईश्वर की सर्वोत्तम सत्ता है.
कृष्णावतार के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने एक संपूर्ण मानव के रूप में जगत की तात्कालिक आवश्यकताओं को देखते हुए अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. हमारे वैदिक धर्मग्रंथों में लाखों-करोड़ों-अरबों वर्षों पहले तक उनके अवतार की अनंत कथाएं समाहित हैं. भगवद्गीता के चौथे अध्याय में कृष्ण कहते हैं कि उन्होंने कुछेक लाख वर्ष पहले सूर्य-देवता, विवस्वान को भगवद्गीता सुनाया था. दरअसल उनके पास असीमित ज्ञान है.
वह ज्ञान के भंडार हैं, ज्ञान के स्रोत हैं. भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से निकली भगवद्गीता को दुनिया ने उनकी दार्शनिकता और उनके दिव्य निर्देशों के साथ अंगीकार किया है. सारा संसार प्रेम के क्षय की प्रवृत्ति को संतुष्ट और नियंत्रित करने के लिए बहुत उत्सुक है. हालांकि, अगर कोई कृष्ण में अपने क्षय होने वाले प्रेम को समर्पित करता है, तो उसका जीवन सफल हो जाता है. यह कोई कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि कृष्ण प्रेम से जीवन पर पड़नेवाले प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है. हर किसी में जीवन की किसी भी स्थिति में कृष्ण और उनकी कथाओं को सुनने के प्रति रुचि होनी चाहिए, क्योंकि वही सर्वोच्च परम सत्य हैं, सर्वशक्तिमान हैं. वह सर्वव्यापी हैं. सदा जपिये और सदा प्रसन्न रहिए : ‘हरे कृष्ण-हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे,
हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे ’…