Krishna Janmashtami 2020: राधे व्यक्तिगत और श्याम जीवन का अनंत स्वरूप है, भगवान कृष्ण की तरह जीवन जीएं: गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
Krishna Janmashtami Vrat 2020: जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म दिन मनाया जाता है. अष्टमी, अर्द्धचंद्र की बहुत महत्ता है, क्योंकि यह दृश्य एवम दृष्टा अर्थात् दिखने वाले भौतिक जगत एवम् अदृश्य आध्यात्मिक जगत के वास्तविक पहलुओं के बीच उत्तम प्रकार के संतुलन को दर्शाता है.
Krishna Janmashtami Vrat 2020: जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म दिन मनाया जाता है. अष्टमी, अर्द्धचंद्र की बहुत महत्ता है, क्योंकि यह दृश्य एवम दृष्टा अर्थात् दिखने वाले भौतिक जगत एवम् अदृश्य आध्यात्मिक जगत के वास्तविक पहलुओं के बीच उत्तम प्रकार के संतुलन को दर्शाता है. अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का जन्म इस बात को दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक एवम् भौतिक दोनों जगत में आधिपत्य था. भगवान कृष्ण द्वारा दी गयी शिक्षा आज के समय के अनुसार प्रासंगिक है.
गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का अर्थ है कि आप बिल्कुल विपरीत, लेकिन फिर भी एक-दूसरे के पूरक गुणों को ग्रहण करें तथा उन्हें अपने जीवन में लागू करें. कृष्ण का अर्थ है, सबसे अधिक आकर्षक- जो आपकी आत्मा है, आपका अस्तित्व है. राधे-श्याम अनंत को दर्शाता है. राधे व्यक्तिगत जीवन है और श्याम जीवन का अनंत स्वरूप है. कृष्ण प्रत्येक जीव की आत्मा है और जब हमारा सच्चा स्वाभाविक स्वरूप चमकता है, तब हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है, हमें कुशलताएं प्राप्त होती हैं और जीवन में समृद्धि आती है. ऐसा कहा जाता है कि कृष्ण मक्खन चुराते थे. यह कहावत किस बात को दर्शाती है.
मक्खन एक प्रक्रिया में प्राप्त होने वाला अंतिम उत्पाद होता है. सबसे पहले दूध से दही बनाया जाता है और फिर दही को मथ कर मक्खन बनता है. दूध या दही की तरह जीवन भी मंथन की एक प्रक्रिया है, जो बहुत सारी घटनाओं से होकर गुजरता है. अंततः मक्खन ऊपर आ जाता है, जो आपके भीतर की पवित्रता है. इस प्रक्रिया का सार यही है कि आपके जीवन में संतुलन, आनंद, प्रसन्नता बनी रहे और आपका मन केंद्रित रहे. जब जीवन में सबकुछ ठीक प्रकार से चल रहा हो, तो आपके चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान होती है, लेकिन यदि आप विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुरा सकते हैं, तब आपने जीवन में कुछ प्राप्त किया है.
जब भी आपका मन अशांत हो, तब यह सोचने के बजाय कि ऐसा नहीं होना चाहिए था, आप समर्पण कर दीजिए. भगवद्गीता में भगवान कहते हैं- ‘‘ऐसा क्यों है कि बहुत सारे लोग मुझे नहीं जान पाते? कारण यह है कि वे लगातार अपने राग और द्वेषों में उलझे रहते हैं.’’ वह व्यक्ति, जिसमें किसी के प्रति बहुत अधिक अनुराग या अधिक घृणा है, मोह में फंस जाता है. वह धन या रिश्तों आदि समस्याओं में उलझा रहता है. रात-दिन, वर्षों तक उसी के बारे में चिंता करता रहता है, लेकिन वह उससे बाहर नहीं निकल पाता.
भगवान कृष्ण कहते हैं- ‘‘जिनके पुण्य कर्म फलीभूत होने लगते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मेरी ओर बढ़ने लगते हैं. जिनके पाप कर्मों का अंत नहीं हुआ है, वे अज्ञान और माया में उलझे रहते हैं.’’ जब आप प्रकाश की ओर चलते हैं, तब अज्ञान का अंधकार स्वतः ही मिटने लगता है, लेकिन पाप वह है, जो आपको प्रकाश की ओर चलने नहीं देता. और यही दुख और पीड़ा का कारण है. जन्माष्टमी वह दिन है, जब आपकी चेतना में कृष्ण का विराट स्वरूप पुनः जागृत हो जाता है. अपने दैनिक जीवन, अपने वास्तविक स्वभाव में रहना ही, कृष्ण के जन्म का सच्चा रहस्य है.