Kumbh Mela 2021 : 83 साल के बाद बन रहा ऐसा संयोग, जानें शाही स्नान की तिथियां और कुंभ में गंगा स्नान का महत्व…

Kumbh Mela 2021: माघ पूर्णिमा पर 27 फरवरी से कुंभ मेले की शुरुआत होगी. इसकी तैयारी जोरों पर की जा रही है. 20 फरवरी के बाद इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. माघ मेला 27 फरवरी से 27 अप्रैल तक रहेगी. इस बार कुंभ मेला में चार शाही स्नान होंगे. कुंभ मेला का आयोजन 12 साल बाद होता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 21, 2021 1:50 PM

Kumbh Mela 2021: माघ पूर्णिमा पर 27 फरवरी से कुंभ मेले की शुरुआत होगी. इसकी तैयारी जोरों पर की जा रही है. 20 फरवरी के बाद इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. माघ मेला 27 फरवरी से 27 अप्रैल तक रहेगी. इस बार कुंभ मेला में चार शाही स्नान होंगे. कुंभ मेला का आयोजन 12 साल बाद होता है. वहीं, इस बार 11 साल पर ही कुंभ मेला का आयोजन किया जा रहा है, क्योंकि साल 2022 में बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होंगे. इसलिए इस बार 11वें साल यानि कि एक साल पहले ही महाकुंभ पर्व का आयोजन किया जा रहा है.

83 साल बाद बन रहा है ऐसा संयोग

83 साल के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है जब 12 साल की जगह 11 साल पर ही कुंभ मेला का आयोजन किया जा रहा हो. कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है. शास्त्रों के अनुसार हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में प्रत्येक 12वें साल में कुंभ मेला का आयोजन होता है. इससे पहले इस तरह की घटना साल 1760, 1885 और 1938 में हुई थी.

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इस साल कुंभ मेले की शुरुआत 14 जनवरी यानि कि मकर संक्रांति से हो गई है. कुंभ मेला हिन्दुओं का सबसे बड़ा शुभ और सबसे बड़े अनुष्ठानों में से एक है. ऐसा अवसर 83 साल बाद आ रहा है जब 11 साल पर महाकुंभ का अयोजन किया जा रहा है. शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति कुंभ मेले के दौरान गंगा में स्नान करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता हैं कि उस व्यक्ति के सभी पापों और रोगों का नाश हो जाता है.

हरिद्वार कुंभ 2021 शाही स्नान की तिथियां

पहला शाही स्नान 11 मार्च 2021, शिवरात्रि के दिन पड़ेगा.

दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल 2021, सोमवती अमावस्या के दिन पड़ेगा.

तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल 2021, मेष संक्रांति पर पड़ेगा.

चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल 2021, को बैसाख पूर्णिमा के दिन पड़ेगा.

देवताओं और दानवों में हुआ था संघर्ष

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस तरह की परंपरा समुद्र मंथन के बाद से शुरू हुई थी. समुद्र मंथन के दौरान अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गये. दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ लिया. तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों के बीच बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा.

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इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गीरी थीं. प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं. उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की. कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बांटकर पिला दिया. इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया. इसलिए प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.

निकाली जाएंगी झाकियां

वहीं इस साल कुंभ मेले के दौरान चार शाही स्नान होंगे और इस बार कुंभ मेले में 13 अखाड़े भाग लेंगे. इन अखाड़ों से झाकियां निकाली जाएगी. इन झाकियों में सबसे आगे नागा बाबा चलेंगे. महंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडेलश्वर नागा बाबाओं का अनुसरण करेंगे. वहीं, उत्तराखंड राज्य सरकार की ओर से इस कुंभ महापर्व को सफल बनाने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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