साधु, संत का ऐसे होता है अंतिम संस्कार, जानें क्यों दी जाती है समाधि

Last Rites of Sadhu Sant: भारतीय संस्कृति में साधु-संतों को मोक्ष और तपस्या का अनूठा प्रतीक माना जाता है. उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें सामान्य व्यक्तियों की भांति दाह संस्कार नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें समाधि में समर्पित किया जाता है.

By Shaurya Punj | February 14, 2025 4:45 PM
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Last Rites of Sadhu Sant: सनातन धर्म में साधु-संन्यासियों को बहुत सम्मान दिया जाता है.उन्हें देवताओं के बराबर समाज मे सम्मान देते हैं. ये लोग भगवान की आराधना और समाज के कल्याण के लिए हमेशा लगे रहते हैं और हमारे संस्कृति और सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं.इनका जीवन अधिक शुद्ध और पवित्र और माना जाता है, लेकिन इनके जीवन के कुछ कार्य हमारे आम जीवन से अलग होती हैं.जैसे हिंदू धर्म में जब कोई मनुष्य की मृत्यु होती है, तब उसका दाह संस्कार करने की मान्यता है, लेकिन वहीं साधु-संन्यासियों का दाह संस्कार की जगह समाधि दी जानें कि मान्यता होती है.

क्यों नहीं होता है साधु-संतों का दाह संस्कार

शास्त्रों के अनुसार साधु-संन्यासी अपना जीवन सांसारिक सुखों को त्याग कर के व्यतीत करते हैं.ये सभी जन्म और मृत्यु के मोह से बाहर होते हैं क्योंकि वे पहले ही मोक्ष के रास्ते को अपना लिए होते हैं.इसलिए, उन्हें अपने पार्थिव शरीर का दाह संस्कार की कोई आवश्यकता नहीं होती. जिसके जरिए वे तपस्या और साधना कर प्रभु का दर्शन पहले ही कर लेते हैं.उनके लिए शरीर केवल आत्मा का एक वाहन है.जिसे संतो के शरीर को समाधि दी जाती है, इसे जमीन में दफन किया जाता जिसे समाधि कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से उनका शरीर पूरी तरह से प्रकृति में समा जाता है.

साधुओं का क्रियाक्रम कितने दिनों पर होता हैं?

शास्त्रों के आधार पर जब कोई व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके सभी उत्तर कार्यक्रम 13 दिनों पर किया जाते हैं. लेकिन वहीं अखाड़ों में या आश्रम के साधुओं का ऐसा नहीं किया जाता हैं. इनमें मृतक साधुओं के पार्थिव शरीर को उत्तर कार्यक्रम 16 दिनों तक चलते हैं. 16वें तिथि को जो भी मुख्य कार्यक्रम होता है उसे सोलसी कहते हैं. क्योंकि संन्यासियों में समाधि से लेकर सोलसी तक के कार्यक्रमों को पूर्ण करने के लिए एक अखाड़ा अलग होता है, जिसे गोदड़ अखाड़ा कहते हैं.वहीं पूरे देश में कहीं भी किसी संन्यासी-संतो की मृत्यु होती है तो, उसके 16 दिन तक के कार्यक्रम में इसी अखाड़े के लोगों का रहना आवश्यक माना जाता है.

भोग 16 दिनों तक रोज लगाते हैं

गोदड़ अखाड़े के साधु-संत मृतक साधु की समाधि पर 16 दिनों तक रोज भोग लगाते हैं और अन्य विधि पूर्वक कार्यक्रम करते हैं.16 दिन के बाद अन्य सभी रीति-रिवाज से मृतक संत के शिष्य विधि को पूर्ण करते हैं.और 16 वें दिन सोलसी कार्यक्रम के बाद संतों का भंडारा आयोजित करते है. फिर उसके बाद ही मृतक संत के उत्तर कार्य समाप्त होते हैं.

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