Madhushravani: जलती बाती से घुटने व पांव दागने की जिन्दा है परंपरा, जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का साहस भरती है मधुश्रावणी
Madhushravani 2020: मधुश्रावणी का महत्व मैथिल नवविवाहिता के दाम्पत्य जीवन में विशेष स्थान रखता है. मिथिला में प्रचलित पारंपरिक पर्व मधुश्रावणी के लिए विशेष रूप से चुने जानेवाले फूल-पत्तियों के बीच कांटां की चुभन विवाहित युवतियों को जीवन में आसन्न विघ्न बाधाओं का पूर्वाभास भी कराती है. इसके साथ ही नवविवाहिता को जलती बाती (टेमी) से घुटने सहित दोनों पांवों के ऊपरी भाग को दागकर उसे औरस पुत्रों की माता होने के योग्य बताये जाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही हैं.
Madhushravani 2020: दरभंगा, मधुश्रावणी का महत्व मैथिल नवविवाहिता के दाम्पत्य जीवन में विशेष स्थान रखता है. मिथिला में प्रचलित पारंपरिक पर्व मधुश्रावणी के लिए विशेष रूप से चुने जानेवाले फूल-पत्तियों के बीच कांटां की चुभन विवाहित युवतियों को जीवन में आसन्न विघ्न बाधाओं का पूर्वाभास भी कराती है. इसके साथ ही नवविवाहिता को जलती बाती (टेमी) से घुटने सहित दोनों पांवों के ऊपरी भाग को दागकर उसे औरस पुत्रों की माता होने के योग्य बताये जाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही हैं. इस परंपरा के बारे में विस्तार से बता रहे हैं डॉ कृष्ण कुमार…
इस बारे में प्रसिद्ध दार्शनिक प्रो. बौआनंद झा केएसडीएसयू, दरभंगा के कहते हैं कि ऐसी माताएं ही औरस पुत्रों को जन्म दे सकती हैं. वैसे इस अमानवीय प्रथा के बारे में कई तरह की किंवदंतियां भी प्रचलित हैं, कहा जाता है कि विवाहिता के दोनों घुटनों तथा पांवों के ऊपर टेमी से दागने पर कम से कम दो फफोले पड़ेंगे. इस बारे में मिथिलांचल की बुजुर्ग महिलाओं का मानना है कि यह साबित करता है कि विवाह से पूर्व उक्त युवती का आचरण निष्कलंक होगा. मिथिला में विवाह की प्रचलित प्रथाओं के बारे में प्रो. झा कहते हैं कि क्षत्रिय समाज में विवाह-मंडप पर लड़के-लड़की के अंगूठों को चीरकर दोनों के बहे खून को मिलाकर रक्त संबंध स्थापित किये जाने का भी प्रथा है.
मैथिल ब्राह्मण में अग्नि को साक्षी रखकर युवक-युवतियों के परिणय-सूत्र में बांधने की सदियों से प्रथा चली आ रही है जो अवध रूप से आज भी बदस्तूर जारी है. भू-मंडलीकर के मौजूदा दौर में भी मिथिला ने मधुश्रावणी जैसी अनोखे पारंपरिक वैवाहिक अनुष्ठान को अक्षुण्ण रखा है. इधर कई वर्षों से देश के विभिन्न भागों से नौकरी से अवकाश लेकर नव विवाहित युवक मधुश्रावणी में शरीक होने के लिए अपनी ससुराल चाहकर भी नहीं आ जा पाते थे. अब निजी कंपनियों की सेवा-शर्त्त ही ऐसी कठिन हो गई हैं, जिससे विवहोपरांत होनेवाले पर्वों में उनका शरीक होना नामुमकिन है.
ऐसे में पति की अनुपस्थिति में ही किसी तरह नवविवाहिताएं इस तरह की विवाहपूर्व रस्म निभाने के लिए विवश होती हैं. मिथिला की नवविहातिएं 10 जुलाई 2020 से 23 जुलाई यानी 13 दिनों तक इस पर्व को संपन्न करने की विधि में लगी रहती है. इस दौरान पंचमी तिथि से मधुश्रावणी तक रोजाना बगीचे में जाकर नवविहता अपनी अन्य सहेलियों के साथ रंग-बिरंगे परिधान में सुसज्जित होकर झुंड में डाला लेकर फूल-पत्तियां चुनती है और अहले सुबह पूजा-अर्चना में वे लग जाती हैं.
प्रो. झा के अनुसार इस अवधि में ससुराल से आये अरबा चावल का ही वे सेवन करती हैं. प्रो. झा आगे बताते है कि सतीत्व की रक्षा के लिए भी इस पारंपरिक पर्व का विशेष महत्व हो जाता है. मधुश्रावणी के दिन यदि पति वहां उपस्थित हों तो वे अपनी पत्नी को सिंदूरदान भी करते हैं. फिलहाल कोविड-19 जैसी महामारी में जबकि विश्वव्यापी लोक डाउन के चलते विभिन्न तरह की बाधाओं से देशवासी जूझ रहे हैं ऐसे में मिथिला के इस पारंपरिक पर्व को संपनन कराने की दिशा में कई तरह की चुनौतियां आड़े आ रही हैं फिर भी अपनी परंपराओं के प्रति अडिग मिथिलावासी बगैर उनकी परवाह किये ही उनके समक्ष चट्टान की तरह खड़े हैं और इस पर्व को निष्ठापूर्वक सम्पन्न कराने में लगे हैं.
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