Magh Purnima 2025: हिंदू धर्म के मुताबिक पूर्णिमा तिथि जगत के पालनहार प्रभु श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है माघ पूर्णिमा के पर्व को बसंत ऋतु के आगमन के समय मनाया जाता है.धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और आराधना – उपासना करने से पापों से मुक्ति प्राप्त होता है साथ ही जीवन खुशहाल और पितरों दोष से मोक्ष मिलता है.और बैकुंठ की प्राप्ति होती है क्या आप जानते हैं कि माघ पूर्णिमा के त्योहार को क्यों मनाया जाता है.
माघ पूर्णिमा 2025 का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा की तिथि का आरंभ 11 फरवरी 2025 को संध्या 06 बजकर 55 मिनट पर होगा वहीं अगले दिन 12 फरवरी 2025 को संध्या 07 बजकर 22 मिनट पर सम्पन्न होगा.सनातन धर्म में उदया तिथि का अत्यधिक महत्व माना जाता है, ऐसे में 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा मनाया जाएगा.
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- ब्रह्म मुहूर्त – प्रातः 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 10 मिनट तक रहेगा.
- गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 07 मिनट से शाम 06 बजकर 32 मिनट तक रहेगा.
- अभिजीत मुहूर्त – कोई नहीं हैं.
- अमृत काल मुहूर्त- शाम 05 बजकर 55 मिनट से रात 07 बजकर 35 मिनट तक रहेगा.
माघ पूर्णिमा के पीछे छुपी जाने पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे, तो उस समय नारद जी प्रकट हुए.नारद जी को देख प्रभु श्री हरि विष्णु ने कहा कि हे महर्षि आपके आने की क्या कारण है,तब नारद जी ने बताया कि मुझे ऐसा कोई उपाय या सुझाव बताएं, जिसे करने से लोगों का कल्याण हो सके तब श्री हरि विष्णु जी ने कहा कि जो साधक संसार के सुखों को भोगना चाहता है और मृत्यु के बाद परलोक या बैकुंठ की प्राप्ति का वरदान चाहता है. तो वह पूर्णिमा तिथि के दिन पूरी श्रद्धा और आराधना से सत्यनारायण कि पूजा-अर्चना और कथा करनी होगी. इसके बाद नारद मुनि जी ने प्रभु श्री हरि विष्णु ने व्रत विधि के बारे में विस्तार से ज्ञान दिया.साथ ही विष्णु जी ने कहा कि इस व्रत में दिन भर उपवास रखना शुभ माना जाता है और शाम को भगवान सत्य नारायण की कथा और पाठ करना चाहिए और प्रभु को भोग अर्पित करें,ऐसा करने से सत्यनारायण देव प्रसन्न हो कर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
इस दिन विष्णु स्वरूप के इन मंत्रों का जाप करें
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर, भूरि घेदिन्द्र दित्ससि
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्, आ नो भजस्व राधसि