Maha Kumbh 2025 Kalpvaas: महाकुंभ का आरंभ 13 जनवरी, सोमवार को होगा. इस दिन पौष माह की पूर्णिमा भी है, जिससे इस तिथि का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. महाकुंभ का समापन 26 फरवरी, बुधवार को महाशिवरात्रि के साथ होगा. इस दौरान लोग कल्पवास का नियम अपनाते हैं और इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं. सनातन धर्म में महाकुंभ, कुंभ या माघ मास में कल्वास का अत्यधिक महत्व माना गया है. इसे आत्मिक विकास और आत्म शुद्धि का सर्वोच्च साधन माना जाता है.
यह माना जाता है कि जो व्यक्ति महा कुंभ के अवसर पर कल्पवास का पालन करता है, उसे भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य, संपन्नता और सकारात्मकता का निवास होता है.
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कल्पवास का महत्व
कल्पवास के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि इसका अर्थ क्या है. कल्पवास का तात्पर्य है संगम के तट पर एक महीने तक रहकर वेदों का अध्ययन और ध्यान साधना करना. इस समय प्रयागराज में कुम्भ मेले का आयोजन भी हो रहा है, जिससे कल्पवास का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है. यह पर्व पौष माह के 11वें दिन से शुरू होकर माघ माह के 12वें दिन तक मनाया जाता है. मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ आरंभ होने वाले इस एक महीने के कल्पवास से उतना पुण्य प्राप्त होता है, जितना कि ब्रह्मा के एक दिन के बराबर एक कल्प में मिलता है.
कल्पवास के नियम क्या हैं?
पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा वर्णित कल्पवास के नियमों के अनुसार, जो व्यक्ति 45 दिनों तक कल्पवास करते हैं, उन्हें 21 नियमों का पालन करना अनिवार्य है. ये 21 नियम निम्नलिखित हैं: सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना, सभी जीवों के प्रति दया भाव रखना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, व्यसनों से दूर रहना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना, प्रतिदिन तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना, त्रिकाल संध्या का ध्यान करना, पितरों के लिए पिण्डदान करना, और दान करना.