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Mahashivratri 2024: सृष्टि के प्रारंभ का उत्सव है महाशिवरात्रि महापर्व, सौभाग्य शाली संयोग में होगी देवाधिदेव महादेव की पूजा

Mahashivratri 2024: फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है, उसी को 'शिवरात्रि' कहते हैं. ऐसे तो प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हम शिवरात्रि पर्व के रूप में मनाते हैं.

डॉ मौसम ठाकुर
Mahashivratri 2024: प्रत्येक वर्ष के फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अति विशेष संयोग के कारण इसे महाशिवरात्रि के रूप में पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है-
शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्‌याख्याम्‌।
आनंद प्रदायिनी रात्रि जिससे भगवान शिव का विशेष संबंध है. महाशिवरात्रि से संबंधित अनेक धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथाएं हैं – जगत जननी मां पार्वती का विवाह इसी शुभ तिथि में जगत के पालनहार देवाधिदेव महादेव से हुई और वैराग्य जीवन से भोलेनाथ गृहस्थ जीवन में आये है . ज्योतिष के अनुसार इस दिन चंद्रमा का सूर्य के नजदीक होना एक सौभाग्य शाली संयोग है. सृष्टि प्रारंभ के दिन को हम शिवरात्रि महापर्व के रूप में मनाते है. माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ. पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि का आरम्भ देवाधिदेव महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग के साथ हुआ है. शिव पुराण के ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:!!
शिवपुराण की ईशान संहिता के अनुसार:
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका।।

अर्थात-
फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रयकर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है, उसी को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं. ऐसे तो प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हम शिवरात्रि पर्व के रूप में मनाते हैं, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर पड़ने वाली शिवरात्रि को हम महाशिवरात्रि के रूप में अति विशिष्ट रुप में और भक्ति भाव, पवित्रता के साथ मनाते है. क्योंकि विशेष संयोग के कारण इस विशेष तिथि को देवाधिदेव महादेव शिवतत्व से घनिष्ठ संबंध रहने के कारण यह रात्रि भगवान शिव को अति प्रिय है, इस दिन होने वाली शिवोपासना से भक्ति एवं मुक्ति दोनों मिलने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा विष्णु ने शिवलिंग की पूजा सृष्टि में पहली बार की थी और महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी हुई था.

अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे भगवान शिव

भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए. प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में भी ग्रहण किया जाता है. नारद संहिता के अनुसार जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है. जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी मानी गई है. ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं, जो जीवनशक्ति में वृद्धि करती हैं. यद्यपि चतुर्दशी का चंद्रमा क्षीण रहता है, लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं. मारक या अनिष्ट की आशंका में महामृत्युंजय शिव की आराधना ग्रहयोगों के आधार पर बताई जाती है. बारह राशियां, बारह ज्योतिर्लिगों की आराधना या दर्शन मात्र से सकारात्मक फलदायिनी हो जाती है.

शिव आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है…

यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है. ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है. यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है. भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के सबसे समीप होता है. इसलिए इस समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है. अत: इस चतुर्दशी को भगवान भोलेनाथ की अराधना करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि महापर्व को परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व जाना जाता है. वस्तुतः भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है जो हम सांसारिक जीवों को काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते है.

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साधना और समर्पण का दिन है महाशिवरात्रि

‘रात्रि’ का अर्थ है- रात या विश्राम करने का समय. महाशिवरात्रि के समय, हम अपनी चेतना में विश्राम करते हैं. यह समय है अपनी अंतरात्मा और चेतना के साथ उत्सव मानाने का, महाशिवरात्रि के दिन साधना के माध्यम से हम दिव्य चेतना की शरण में चले जाते हैं. दिव्य चेतना की शरण में जाने के दो तरीके हैं. ध्यान (साधना) और समर्पण. समर्पण अर्थात विश्वास रखना कि कोई शक्ति है जो हर पल, हर घड़ी हमारा ख्याल रख रही है और हमारी रक्षा भी कर रही है. साधना और समर्पण के माध्यम से हमारे भीतर शांति रहती है, जिससे महाशिवरात्रि का सार अनुभव करने में हमें मदद प्राप्त होती है.

भगवान शिव हर जगह व्याप्त हैं. हमारी आत्मा में और शिव में कोई अंतर नहीं है, इसीलिए हम यह गाते हैं भजते हैं – ‘शिवोहम शिवोहम…’ मैं शिव स्वरुप हूं. शिव सत्य के, सौंदर्य के और अनंतता के प्रतीक हैं. हमारी आत्मा का सार हैं- शिव जब हम भगवान शिव की पूजा करते हैं तो उस समय हम, हमारे भीतर उपस्थित दिव्य गुणों को सम्मान कर रहे होते हैं.
महाशिवरात्रि, शिव तत्त्व का उत्सव मनाने का दिन है. इस दिन सभी साधक और भक्त मिलकर उत्सव मनाते है. शिव तत्व यानी वह सिद्धांत या सत्य जो हमारी आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है. यह वही परम सत्य है, जिसकी हम खोज कर रहे हैं. मान्यता है कि महाशिवरात्रि साधना, शरीर, मन और अहंकार के लिए गहन विश्राम का समय है, जो भक्त को परम ज्ञान के प्रति जागृत करता है.

शिवपुराण की ईशान संहिता के अनुसार —
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति मां ध्रुवम्।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत:।।

देवाधिदेव महादेव स्वयं कहते हैं-

इस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है. उस दिन उपवास करने से मैं जो प्रसन्न होता हूं. वैसा स्नान, वस्त्र, धुप और पुष्प अर्पण करने से भी नहीं होता है. गरुड़पुराण, स्कन्दपुराण , पद्मपुराण, अग्निपुराण आदि पुराणों में इसका विस्तृत वर्णन है, जो व्यक्ति उस दिन उपवास करके बिल्व पत्तियों और जल से शिव की पूजा करता है और रात्रि भर ‘जारण’ (जागरण) करता है. शिव उसे नरक से बचाते हैं और आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं , व्यक्ति स्वयं शिवमय हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार दान, यज्ञ, तप, तीर्थ यात्राएं, व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं हैं.

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