Margshirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मार्गशीर्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इसे अगहन अमावस्या और पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या का महत्व कार्तिक मास की अमावस्या के समान है. यह महीना माता लक्ष्मी के लिए अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस दौरान लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन और व्रत करने से पापों का नाश होता है. इस वर्ष मार्गशीर्ष अमावस्या 1 दिसंबर को मनाई जा रही है.
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मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व क्या है?
हिंदू धर्म में अमावस्या की तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह दिन पितरों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर होता है. इस दिन लोग अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं. इसके अतिरिक्त, इस अमावस्या पर पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए तर्पण और पिंडदान का आयोजन किया जाता है. अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा का भी विशेष महत्व है, जिससे शनि के नकारात्मक प्रभावों से छुटकारा पाने की आशा की जाती है. कई लोग इस पवित्र दिन पर व्रत रखते हैं ताकि उनका मन और शरीर पवित्र बना रहे. अमावस्या के अवसर पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ का आयोजन भी किया जाता है.
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन सत्यनारायण पूजा का पाठ करना शुभ
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन सत्यनारायण भगवान की आराधना करने से सभी प्रकार के संकट समाप्त हो जाते हैं.
व्रत और पूजा: विधिपूर्वक व्रत करने और कथा सुनने से व्यक्ति के जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. सत्यनारायण भगवान की पूजा में विशेष रूप से केले के पत्ते, नारियल, पंचफल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम और तुलसी की आवश्यकता होती है. इन्हें प्रसाद के रूप में फल, मिष्ठान और पंजरी अर्पित की जाती है.
मंत्र- ‘ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः’ का 108 बार जाप करें.
सत्यनारायण व्रत-पूजन की विधि
इसके पश्चात नारद जी ने भगवान श्रीहरि विष्णु से व्रत की विधि बताने का निवेदन किया. तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी ने कहा कि सत्यनारायण व्रत करने के लिए व्यक्ति को दिनभर उपवास रखना चाहिए. श्री सत्यनारायण व्रत करने वाले को स्नान करके स्वच्छ या धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए.
सत्यनारायण भगवान का पूजन शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए. इसके बाद सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना आवश्यक है. संध्या समय में किसी विद्वान पंडित को आमंत्रित करके सत्यनारायण की कथा सुनवानी चाहिए.
भगवान को भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें. इससे सत्यनारायण देवता प्रसन्न होते हैं. सत्यनारायण व्रत का आयोजन पूर्णिमा के दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह दिन सत्यनारायण का प्रिय दिन माना जाता है. इस दिन चंद्रमा पूर्ण कलाओं के साथ प्रकट होता है और पूर्ण चंद्र को जल से अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में पूर्णता आती है.
घर के वातावरण को शुद्ध करके चौकी पर कलश रखकर भगवान श्री विष्णु की मूर्ति या सत्यनारायण की तस्वीर स्थापित कर पूजन करें. परिवार के सदस्यों को एकत्रित करके भजन, कीर्तन का आयोजन करें.