Masik Shivratri 2024: ज्येष्ठ मास की मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत कब है? मनचाहा वर पाने के लिए पूजा के समय करें ये स्तुति
Masik Shivratri 2024: मासिक शिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती जी को समर्पित है. इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने हर मनोकामनाएं पूरी होती है.
Masik Shivratri 2024: ज्येष्ठ मास की मासिक शिवरात्रि देवों के देव महादेव को समर्पित है. मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन देवों के देव भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है. मासिक शिवरात्रि व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. वहीं, अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं. मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा करने पर मनचाहा जीवनसाथी मिलता है.
कब रखा जाता है प्रदोष व्रत
पंचांग के अनुसार, जिस दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के समय व्याप्त होती है, उसी दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 4 जून 2024 को सुबह 12 बजकर 18 मिनट से होगा. त्रयोदशी तिथि का समापन 4 जून की रात 10 बजकर 1 मिनट पर होगा. प्रदोष व्रत 4 जून को रखा जाएगा. इस दिन लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने से सभी कष्टों का अंत होता है.
प्रदोष व्रत कितने करने चाहिए ?
धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत लगातार 11 या 26 त्रयोदशी तक रखना चाहिए, इसके बाद इसका विधि विधान उद्यापन कर दें. वहीं बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो प्रदोष व्रत कई सालों तक रखते हैं. अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं तो एक समय बाद इसका उद्यापन भी जरूर करें.
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मनचाहा वर पाने के लिए पूजा के समय करें शिवरात्रि स्तुति
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।