तन-मन की शुद्धि से जुड़ा है मौनी अमावस्या का माहात्म्य
Mauni Amavasya 2025 snaan: मौनी अमावस्या के दिन यदि कोई व्यक्ति पूरे दिन मौन नहीं रह सकता, तो उसे स्नान के समय तक मौन रहने का प्रयास अवश्य करना चाहिए. मौन के समय में ईश्वर के विषय में चिंतन करते हुए अपने भीतर सद्गुणों के विकास की कोशिश करनी चाहिए. संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि मौन रहकर पवित्र नदियों में स्नान करने, विशेषकर मौनी अमावस्या और कुंभ महापर्व की मौनी अमावस्या को त्रिवेणी संगम में स्नान करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है.
छह महत्वपूर्ण स्नान पर्वों में श्रेष्ठ माना गया है मौनी अमावस्या का अमृत स्नान
महामहोपाध्याय आचार्य डॉ सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय
आइएएस (सेवा-निवृत्त), प्रयागराज
(लेखक पूर्व आइएएस हैं और प्रयागराज में कुंभ व अर्धकुंभ में बतौर अपर मेलाधिकारी प्रशासक की जिम्मेवारी संभाल चुके हैं)
Mauni Amavasya 2025: इस वर्ष मौनी अमावस्या पर संगम और अन्य पवित्र नदियों में मौन रहकर स्नान का पुण्य काल 29 जनवरी को सूर्योदय से लेकर पूरे दिन भर है. स्नान के पश्चात् इस दिन किया गया जप और दान का अनंत गुना फल प्राप्त होता है. माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. इस दिन भुवन भास्कर सूर्य और चंद्रमा एक साथ मकर राशि में रहते हैं. वैसे तो प्रत्येक अमावस्या का स्नान, पूजा-पाठ, व्रत, जप, दान और साधना की दृष्टि से महत्व है, परंतु मौनी अमावस्या का साधना और मन की शुद्धि हेतु अतिशय महत्व शास्त्रों में वर्णित है.
प्रयागराज कुंभ महापर्व पर माघ मास में आने वाली मौनी अमावस्या में सर्वातिशायी महत्व की हो जाती है. यह प्रयागराज कुंभ महापर्व के छह महत्वपूर्ण स्नान पर्वों में श्रेष्ठ मानी गयी है. इस दिन भी अखाड़ों का अमृत स्नान (शाही स्नान) होता है. पूरे कुंभ के अंतर्गत श्रद्धालुओं की सर्वाधिक भीड़ इसी दिन होती है. अनुमानित रूप से इस वर्ष कुंभ महापर्व के अवसर पर मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में 7-8 करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान का पुण्य अर्जित करेंगे.
शास्त्रों में प्रयागराज में कुंभ महापर्व और मौनी अमावस्या के योग के विषय में अधोलिखित श्लोक पठनीय है –
माघे वृषगते जीवो मकरे चन्द्रभास्करौ ।
अमावस्या तदा योग: कुम्भाख्यं तीर्थनायके ।।
अर्थात् जब माघ महीने में वृष राशि में जीव अर्थात् बृहस्पति और मकर राशि में सूर्य और चंद्र का सुयोग होता है, तब तीर्थराज प्रयागराज में कुंभ की अमावस्या होती है. इस वर्ष यह ज्योतिषीय योग दिनांक 29 जनवरी बुधवार को मिल रहा है. इस दिन प्रयागराज के गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम में मौन रहकर स्नान करने की महिमा और उससे प्राप्त होने वाले पुण्य का वर्णन शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. इस वर्ष मौनी अमावस्या पर संगम और अन्य पवित्र नदियों में मौन रहकर स्नान का पुण्य काल 29 जनवरी को सूर्योदय से लेकर पूरे दिन भर है. स्नान के पश्चात् इस दिन किया गया जप और दान का अनंत गुना फल प्राप्त होता है.
मिलता है शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ
वैसे तो वृद्धमनु ने सदैव स्नान के समय बोलने का निषेध किया है, और लिखा है कि स्नान करते समय बोलने वाले के तेज को वरुण हर लेते हैं और हवन करते समय बोलने वाले की श्री को अग्निदेव हरण कर लेते हैं –
स्नातश्च वरुणो तेजो जुह्वतोsग्नि: श्रियं हरेत्।
मौन रहना एक तप है, एक साधना है. मुनेर्भावो मौनम् अर्थात् मुनि का भाव ही मौन है. इस प्रकार मौन रहने से मुनि संबंधी अनेक गुण मनुष्य में स्वतः आ जाते हैं. वाणी -विषयक मन के संयम का नाम मौन है. मौन व्रत व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है. मौन स्वयं से संवाद का साधन है. यह हमें आत्मावलोकन और आत्मविश्लेषण का अवसर प्रदान करता है. यह आंतरिक शक्तियों का संरक्षण, मन का निग्रह और दुर्वृत्तियों का शमन करता है. मन को शुद्ध करने के लिए मानसिक तप आवश्यक होता है और मानसिक तप का प्रधान अंग मौन व्रत है. मौन के अप्रतिम महत्व को देखते हुए हमारे शास्त्रों में छह कार्यों के समय मौन का विधान किया गया है –
उच्चारे मैथुने चैव प्रस्रावे दन्तधावने ।
स्नाने भोजनकाले च षट्सु मौनं समाचरेत् ॥
अर्थात्- जप, मैथुन, मल-मूत्र-विसर्जन के समय, दंतधावन के समय, स्नान के समय और भोजन के समय मौन रहना चाहिए. इन अवसरों पर मौन का वैज्ञानिक महत्व भी सिद्ध है.
शास्त्र कहते हैं कि यदि मौनी अमावस्या के दिन सोमवार हो और उस दिन व्यक्ति मौन रहकर हरि -चिंतन करें, तो उसे एक सहस्र अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. इसमें अर्थवाद भले हो, किंतु यह मौन के अतिशय महत्व और उस पर बल देना प्रदर्शित करता है. मौन से व्यक्ति का चित्त एकाग्र होता है. एकाग्र मन से ही धर्म का धारण और ध्यान किया जाता है –
धारणान्मनसा ध्यानाद् यं धर्मकवयो विदुः। महाभारत ।
महाभारत उद्योगपर्व में सनत्सुजात युधिष्ठिर से कहते हैं कि जहां मन के सहित वाणी रूप वेद नहीं पहुंचते, उस परमात्मा का नाम ही मौन है. यहां परमात्मा को मौन स्वरूप बताया गया है.
ग्रंथों में बताये गये हैं मौन के अनेक गुण
मौन दो प्रकार का होता है- वाणी से और मन से. कम बोलना और सत्य बोलना यह भी मौन का एक प्रकार है. दूसरा मन से मौन रहकर. मौन के समय मन में सद् और शुभ चिंतन ही करना चाहिए. अशुभ और दुष्ट चिंतन से मौन का उद्देश्य नष्ट हो जाता है.
कभी-कभी वाणी और विचारों दोनों से व्यक्ति को मौन धारण करना चाहिए. यह ध्यान से संभव होता है.
सांसारिक जीवन में भी मौन के अनेक लाभ हैं. मौनेन कलहो नास्ति अर्थात् मौन से कलह नहीं होता. मौन से आपके ऊर्जा का सरंक्षण होता है. मौन से आप अनावश्यक विवाद में नहीं पड़ते हैं.
हमारे ग्रंथों में मौन के अनेक गुण बताये गये हैं, जैसे- पर-निंदा से बचे रहेंगे, असत्य भाषण से बचेंगे, अंत: करण की शांति भंग नहीं होगी, किसी से क्षमा नहीं मागनी नहीं पड़ेगी, आदि-आदि. रघुवंश महाकाव्य में कविकुल गुरु कालिदास राजा दिलीप के अनेक सद्गुणों का वर्णन करते हुए सर्वप्रथम उनके मौन गुण का उल्लेख करते हैं –
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्यय:।
अर्थात्- दूसरे की बात जानकर भी (दूसरे के गुप्त रहस्यों को जानकर भी) मौन रहना, यह राजा दिलीप का प्रथम गुण था. इससे व्यक्ति के धैर्य और गांभीर्य का पता लगता है. मौन में अपरिमित शक्ति होती है. मौन से व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है. व्यक्ति में रचनात्मकता और सकारात्मकता बढ़ती है. आधुनिक कवि भी मौन के महिमा प्रख्यापन में सदैव मुखर रहे हैं. मौन को सर्वार्थ साधक बताते हुए लिखा है –
आत्मन: गुण दोषेण बंध्यते शुक सारिका।
बका: तत्र न बध्यते मौनं सर्वार्थसाधनम्।।
अर्थात्- वाचाल होने के अपने गुण-दोष के कारण तोता-मैना पिंजरे में कैद हो जाते हैं, किंतु बगुला मौन रहने के कारण स्वच्छंद रहता है. मौन रहने से सब कुछ साधा जा सकता है. विद्वानों की सभा में मूर्खों के लिए मौन किसी आभूषण से कम नहीं होता.
विशेषतः सर्वविदां समाजे।
विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।।
जब आप मौन रहते हैं, तब आपको अपनी कमियों के विश्लेषण का अवसर मिलता है, परमात्मा के चिंतन मनन का अवसर मिलता है.
अंत में श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण के मौन के महत्व के संबंध में अधोलिखित वचन से अपनी बात समाप्त करते हैं –
मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते । 17/6
यहां मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव, मौन ( मननशीलता) मन का निग्रह और भावों की शुद्धि को मानसिक तप कहा गया है. मानसिक तप के बिना मनुष्य इहलोक और परलोक दोनों में अभीष्ट नहीं प्राप्त कर सकता.
मौन व्रत का अभ्यास कैसे करें
मौन व्रत का अभ्यास शनैः शनैः करना चाहिए. पहले कुछ घंटे, फिर एक दिन, दो दिन, तीन दिन…
मौनी अमावस्या के दिन यदि कोई दिन भर मौन न रह सके तो कम से कम स्नान के समय तक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए. मौन के दौरान ईश्वर विषयक चिंतन-मनन करते हुए अपने अंदर सद्गुणों के विकास का प्रयास करना चाहिए. संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि मौन रह कर पवित्र नदियों में स्नान करने से और विशेष रूप से मौनी अमावस्या को और उसमें भी कुंभ महापर्व की मौनी अमावस्या को त्रिवेणी संगम में स्नान करने से आध्यात्मिक विकास, मानसिक शांति और ऐहिक अभ्युदय होता है. इससे व्यक्ति के मानसिक विकार दूर होते हैं और उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचय होता है.