Muharram 2020: आज देशभर में मनाया जा रहा है मोहर्रम, जानिए इस दिन क्यों निकाली जाती है ताजिया का जूलूस

Muharram 2020 Date in India: मुसलमानों के लिए मुहर्रम का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस्लामिक कैलेंडर में मुहर्रम पहला महीना होता है. मुहर्रम के महीने को मुस्लिम समुदाय में ग़म के महीने के रूप में मनाया जाता है. मोहर्रम माह का चांद निकलने के बाद पहले ही दिन से ताजिया रखने शुरू होता है. मोहर्रम के 10वें दिन ताजिया का जुलूस इमामबाड़े से प्रारंभ होता है और कर्बला पर जाकर खत्म हो जाता है. बता दें कि इस दिन को पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत के याद में मनाया जाता है. आइए जानते है पूर्व विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान रांची विवि के डॉ शाहिद हसन के अनुसार कैसे और क्यों मनाया जाता है मुहर्रम...

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 29, 2020 11:40 AM
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Muharram 2020 Date in India: मुसलमानों के लिए मुहर्रम का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस्लामिक कैलेंडर में मुहर्रम पहला महीना होता है. मुहर्रम के महीने को मुस्लिम समुदाय में ग़म के महीने के रूप में मनाया जाता है. मोहर्रम माह का चांद निकलने के बाद पहले ही दिन से ताजिया रखने शुरू होता है. मोहर्रम के 10वें दिन ताजिया का जुलूस इमामबाड़े से प्रारंभ होता है और कर्बला पर जाकर खत्म हो जाता है. बता दें कि इस दिन को पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत के याद में मनाया जाता है. आइए जानते है पूर्व विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान रांची विवि के डॉ शाहिद हसन के अनुसार कैसे और क्यों मनाया जाता है मुहर्रम…

प वित्र कुरान (9:36) में अल्लाह ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि हमने बारह महीनों को निर्धारित कर दिया है. इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम के महीने से होती है और इस महीने का विशेष महत्व है.इस माह की दसवीं तारीख को ‘यौमे आशुरा’ कहते हैं. यौम एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ दिन होता है और आशुरा का अर्थ दस अंक से जुड़ा है, अर्थात मुहर्रम का दसवां दिन.

हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी (रह. अलैह) की पुस्तक ‘गुनियातुल तालिबीन’ में कहा गया है कि यह दसवां दिन अल्लाह द्वारा बख्शे गये दिनों में सबसे महत्वपूर्ण है. पवित्र कुरान और हदीस के प्रसिद्ध विद्वान, इतिहासकार सह अनुसंधानकर्ता हजरत शेख अब्दुल रहमान सफूरी (रजि.) ने पवित्र कुरान के 114 अध्याय तथा हदीसों में वर्णित वृतांतों के आधार पर ‘नुजहतुल मजालीस (वोल्यूम-1, पेज-181)’ में यौमे आशुरा के दिन इस्लामी इतिहास की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया है. यह पुस्तक इस्लामी बुद्धिजीवियों के बीच मुख्य रूप से अविवादित रही है.

हजरत हुसैन (रजि.) की शहादत के गम में ताजिया (शोक) और कर्बला में हजरत हुसैन की शहादत का वर्णन इस्लाम के इस नियम की याद दिलाता है कि असत्य पर सत्य की जीत हमेशा से होती रही है. कर्बला ने दुनिया को संदेश दिया कि जालिम हुकूमत की उम्र कम होती है और उसका अंत बड़ा दुखदायी होता है. इस्लाम शासन पद्धति में वंशवाद को पूरी तरह से खारिज करता है और प्रजातांत्रिक मूल्यों की वकालत करता है, जिसका प्रमाण मोहम्मद (सल.) की निधन के बाद के चार खलीफाओं के चयन से मिलता है, जिन्हें वहां की जनता ने सर्वसम्मति से चुना था जबकि यजीद स्वयंभू तानाशाह शासक बन बैठा था. मगर जब तक दुनिया कायम रहेगी यजीद की बर्बरता पर लोग लानत भेजते रहेंगे और हजरत हुसैन (रजि.) और उनके परिवार के लिए दुआएं करते नहीं थकेंगे.

यौमे आशुरा के दिन की कुछ प्रमुख घटनाएं

अल्लाह ने आकाश, धरती, समुद्र और परलोक की रचना की. अल्लाह ने इसी दिन आसमान से जमीन पर सबसे पहले बारिश की. हजरत आदम (अलै.) और मां हौवा को पैदा किया. इसी तारीख को अराफात के मैदान में अल्लाह ने आदम (अलै.) और मां हौवा को मिलवाया. स्वर्ग वाटिका में प्रतिबंधित फल खाने के बाद यौमे आशुरा के दिन ही अल्लाह ने आदम (अलै.) की तौबा कुबूल की. इसी दिन हजरत नूह (अलै.) की नाव जल प्रलय से मुक्त हुई.

हजरत इब्राहीम (अलै.) को यौमे आशुरा के दिन खलीलुल्लाह (अल्लाह के दोस्त) की उपाधि अल्लाह ने दी थी. इब्राहीम (अलै.) को अल्लाह ने नमरूद के लोगों की आग से बचाया था. यौमे आशुरा को ही इब्राहीम (अलै.) को पुत्र सुख प्राप्त हुआ था, जिनका नाम हजरत इसमाईल (अलै.) रखा गया और उनका संबंध मक्का से जुड़ गया. इसी दिन हजरत याकूब (अलै.) अपने पुत्र हजरत युसूफ (अलै.) से 40 वर्षों बाद मिले थे. हजरत इदरीस (अलै.) को इसी दिन अल्लाह ने जिंदा उठा लिया. (सूर : मरियम आयत 56-57).

हजरत युनुस (अलै.) को जब व्हेल मछली ने निगल लिया तब उन्होंने एक दुआ पढ़ी. ‘ऐ अल्लाह आपके सिवा कोई दूसरा इबादत के लायक नहीं है. आप महानतम हैं और सर्वशक्तिमान हैं, और खतावार हैं…’ इस दुआ के बाद मछली ने युनुस (अलै.) को अपने पेट से उगल दिया. हजरत दाऊद (अलै.) को अल्लाह ने इसी तारीख को क्षमा की थी.

इसी तारीख को अल्लाह ने हजरत मूसा (अलै.) के माध्यम से फिरौन की सेना को लाल सागर में पूरी तरह डूबो दिया और इस्रायल के लोगों को फिरौन के आतंक से मुक्त किया था. यौमे आशुरा के दिन ही अल्लाह ने हजरत ईसा (अलै.) को जिंदा पृथ्वी से जन्नत में उठा लिया. यौमे आशुरा के दिन 680 ई. में बगदाद शहर के दक्षिण 100 किलोमीटर दूर कर्बला के मैदान में मोहम्मद (सल.) के नवासे और हजरत अली (रजि.)-फातिमा के पुत्र हजरत हुसैन (रजि.) की शहादत ने सारे मुसलमानों के जीवनशैली को प्रभावित कर दिया.

News Posted by: Radheshyam kushwaha

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