सलमान खान को इस मंदिर में मत्था टेकने की बात कह चुके हैं लॉरेंस बिश्नोई, जानें यहां की खासियत

Muktidham Mukam Temple: राजस्थान के बीकानेर में एक प्रसिद्ध मंदिर है. एक साक्षात्कार के दौरान, लॉरेंस बिश्नोई ने उल्लेख किया कि यदि सलमान खान बीकानेर के बिश्नोई समाज के मुख्य मंदिर (मुक्तिधाम मुकाम) में जाकर उनके देवता से क्षमा मांगते हैं, तो वह उन्हें माफ कर देंगे. जानें क्यों खास है ये मंदिर

By Shaurya Punj | October 18, 2024 11:21 AM

Muktidham Mukam Temple: एनसीपी नेता और सलमान खान के करीबी मित्र माने जाने वाले बाबा सिद्दीकी का निधन सभी के लिए एक बड़ा सदमा बन गया है. इस घटना के बाद सलमान खान की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. सुपरस्टार की सुरक्षा बढ़ाने की संभावनाओं पर भी चर्चा हो रही है. लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने बाबा सिद्दीकी के हत्या की जिम्मेदारी ली, जिससे हड़कंप मच गया. इस बीच, लॉरेंस बिश्नोई का एक पुराना इंटरव्यू भी सुर्खियों में है, जिसमें उन्होंने सलमान खान से किसी विशेष स्थान पर माफी मांगने की बात की थी.

मुक्तिधाम मुकाम इसलिए है प्रसिद्ध

‘मुक्तिधाम मुकाम’ (Muktidham Mukam Temple) बिश्नोई समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसलिए, इसे बिश्नोई समाज का मंदिर भी कहा जाता है. यह मंदिर नोखा तहसील के मुकाम गांव में स्थित है. यह नोखा से लगभग 16 किलोमीटर और बीकानेर जिला मुख्यालय से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

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मुक्ति धाम मुकाम का इतिहास

यह बिश्नोई समुदाय का एक बड़ा और मुख्य मंदिर है. वे 29 नियमों का भी पालन करते हैं. हमेशा जानवरों और पर्यावरण से प्यार करते हैं. यहां भगवान गुरु जम्बेश्वर की पवित्र समाधि बनी हुई है. कहा जाता है कि गुरुजी 1540-1593 ई. तक यहां रहे और 1542 ई. में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की. गुरुजी इस स्थान की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान थे और हवन करते थे.


इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि गुरु जम्भोजी भगवान ने अपने निधन से पहले समाधि के लिए खेजड़ी के पेड़ का संकेत दिया था, और कहा था कि “खेजड़ी के पास 24 हाथ खोदने पर भगवान शिव का त्रिशूल और धूना मिलेगा, तुम वहीं मेरी समाधि बना देना. “


वह त्रिशूल और बंदूक आज के मुकाम मंदिर में मिली जहां भगवान जांभोजी की समाधि बनी हुई है. और वह खेजड़ी भी आज भी वहीं है. जिसकी बिश्नोई पूजा करते हैं. गंतव्य के पास कुछ दूरी पर समराथल धोरा है जहां भगवान जांभोजी ने लंबे समय तक तपस्या की थी और जीवों के कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त किया था. जो भी भक्त इस स्थान पर जाता है वह समराथल धोरे में जरूर जाता है और वहां स्नान जरूर करता है.


बिश्नोई समाज के पूर्वज बताते हैं कि भगवान जांभोजी के शरीर त्यागने के बाद जब तक त्रिशूल नहीं मिला, तब तक जांभोजी के पार्थिव शरीर को लालासर साथरी कपड़े में बांधकर खेजड़ी के पेड़ के पास जमीन से ऊपर रखा गया था. और तब तक सभी भक्त उनके पास बैठे रहे. और उसके चारों तरफ जंगल है. गुरुजी नेसाबाद 72वें अध्याय में इस स्थान को “हरि कांकेड़ी मंडप मेडी, तहंहामारा वासा” कहकर इंगित किया गया है.

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