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Navratri 2020 : मां दुर्गा के लिए खास है हरसिंगार, अपराजिता और अढ़हूल का फूल, इस बार भागलपुर में कितने लाख का बिकेगा ये फूल…

Navratri 2020 : भागलपुर- मां दुर्गा के लिए हरसिंगार, अपराजिता व अढ़हूल फूल खास है. पुराण व शास्त्रों में इन फूलों का विशेष महत्व है. इन फूलों के रंग का भी अपना महत्व है. मां को लाल फूल अधिक पसंद है. फिर भी अलग-अलग पूजा पर अलग-अलग रंग के फूल चढ़ाने की मान्यता है. श्रद्धालु मौसमी फूल, चीरामीरा, सदाबहार व कनेल फूल भी चढ़ाते हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | October 22, 2020 9:30 AM
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Navratri 2020 : भागलपुर- मां दुर्गा के लिए हरसिंगार, अपराजिता व अढ़हूल फूल खास है. पुराण व शास्त्रों में इन फूलों का विशेष महत्व है. इन फूलों के रंग का भी अपना महत्व है. मां को लाल फूल अधिक पसंद है. फिर भी अलग-अलग पूजा पर अलग-अलग रंग के फूल चढ़ाने की मान्यता है. श्रद्धालु मौसमी फूल, चीरामीरा, सदाबहार व कनेल फूल भी चढ़ाते हैं.

कम हो गये हरसिंगार व अपराजिता के पौधे फूल

विक्रेताओं के अनुसार जिले में नवरात्र में 10 लाख रुपये के फूल का कारोबार होता है. हरसिंगार, अपराजिता फूल की बिक्री नहीं होती है. इसे श्रद्धालु खुद पेड़ व लता से तोड़ कर मां को चढ़ाना शुभ व फलदायी मानते हैं. अब हरसिंगार व अपराजिता फूल के पेड़ व लता कम हो गये, इससे श्रद्धालुओं को आसानी से हरसिंगार व अपराजिता फूल नहीं मिलते.

हरसिंगार का महत्व व इतिहास

हरसिंगार फूल को पारिजात फूल भी कहते हैं. हरसिंगार की उत्पत्ति के विषय में कथा मिलती है कि पारिजात का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था, जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया. पांडवों के अज्ञातवास के समय श्रीकृष्ण ने इसे स्वर्ग से लाकर उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जनपद अंतर्गत रामनगर क्षेत्र के गांव बोरोलिया में लगाया था. यह वृक्ष आज भी वहां देखा जा सकता है. हर सिंगार नाम से इसका संबंध शिव जी से जोड़ा जाता है. हरिवंश पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि माता कुंती हरसिंगार के फूलों से भगवान शिव की उपासना करती थीं. धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी हरसिंगार के पुष्पों का प्रयोग किया जाता है.

शारदीय नवरात्र में ही शुरू होता है खिलना

ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा ने बताया कि पुराणों में कहा गया है कि पारिजात वृक्ष को छूने से नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी. बौद्ध साहित्य में भी इन फूलों का उल्लेख है. इन फूलों को सूखा कर बौद्ध भिक्षुक के लिए भगवा वस्त्र रंगे जाते थे, जो स्वास्थ्य वर्धक होते थे. यही एक मात्र ऐसा पुष्प है जिसे तोड़ने का निषेध किया गया है. पूजा के लिए भी झड़े फूलों का प्रयोग किया जाता है. इस फूल को शरद की सूचना देने वाला फूल भी कहते हैं, क्योंकि यह शारदीय नवरात्र के समय ही खिलना शुरू होता है. नवरात्र की पूजा में भी इसका बहुत महत्व है.

मां की आंख से होती है अपराजिता फूल की तुलना

बैगनी और सफेद रंग के मिश्रण वाला अपराजिता का फूल मां दुर्गा को नवरात्र में खूब भाता है. धर्म ग्रंथों में अपराजिता के फूल की तुलना देवी दुर्गा की आंख से की गयी है. अपराजिता फूल के भी औषधीय गुण हैं. अपराजिता फूल लता में खिलते हैं.

लाल अढ़हूल है शक्ति का प्रतीक

अढ़हूल फूल लाल है. लाल शक्ति का प्रतीक है. दुर्गा के तीन रूपों में महाकाली स्वरूप अढ़हूल फूल को अधिक पसंद करती हैं. लोग शक्ति प्राप्त करने के लिए मां भगवती को यह पूष्प चढ़ाते हैं. शरद व वसंत दो भयंकर दानव अनेक रोगों के कारण हैं. महामारी, ज्वर, शीतल, कफ, खांसी आदि के निवारण के लिए शारदीय व वासंती नवरात्र प्रशस्त है. कलश में डाला जाने वाला आम्र पल्लव, द्रव्य, पदार्थ नौ दिनों के नवरात्र में कलश जल में अमृत हो जाते हैं, जो रोग विनाशक व पाप नाशक है. अपराजिता लता पुष्प, द्रोण पुष्प आदि आयुर्वेदिक अमोघ औषधियां हैं. इसलिए रोग-शोक के नाशक शक्ति के उपासना व विद्या की देवी मां सरस्वती को श्वेत पुष्प अधिक पसंद हैं.

News Posted by: Radheshyam Kushwaha

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