Maa Kalratri Puja Vidhi: हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के सातवें दिन यानी महासप्तमी पर मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. इस बार मां कालरात्रि की पूजा 21 अक्टूबर 2023 यानी आज की जाएगी. मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्त सभी तरह के भय से दूर हो जाते हैं. मां कालरात्रि का स्वरूप उनके नाम की तरह की घने अंधकार सा काला है. इनके तीन नेत्र हैं, जोकि ब्रह्मांड की तरह गोल हैं. मां के इस रूप की सवारी गर्दभ यानी गधा है. उनका ऊपर उठा दाहिना हाथ वर मुद्रा में है, इस तरफ के नीचे वाले हाथ में अभय मुद्रा है. बाईं ओर ऊपर वाले हाथ में कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है. इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है. मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा कैसे करें और उन्हें किस चीज का भोग लगाया जाता है. आइए जानते है ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री से…
सबसे पहले प्रात:स्नान के बाद व्रत और मां कालरात्रि के पूजन का संकल्प लें. उसके बाद मां कालरात्रि को जल, फूल, अक्षत, धूप, दीप, गंध, फल, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करते हुए पूजन करें. कलश पूजन करने के बाद दीपक जलाए. मां को लाल पुष्प बहुत प्रिय है इसलिए पूजन में गुड़हल अर्पित करने से माता अति प्रसन्न हो जाती है. इसके बाद मां काली का ध्यान व मंत्र का उच्चारण करें, उसके बाद मां को गुड़ का भोग लगाएं. फिर दुर्गा चालीसा, मां कालरात्रि की कथा आदि का पाठ करें. फिर पूजा का समापन मां कालरात्रि की आरती से करें. पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना करें और जो भी मनोकामना हो, उसे मातारानी से कह दें.
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी ॥
वामपादोल्लसलोह लताकण्टकभूषणा ।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
बीज मंत्र : क्ली ऐ श्री कालिकायै नमः ।
मां का वाहन गर्दभ अर्थात गधा है, जो समस्त जीव-जन्तुओं में सबसे अधिक परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण करता है. देवी का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है. मां हमेशा भक्तों की सारी समस्याएं दूर करती है और उनके जीवन में डर व भय को दूर करती है.
देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं और चार हाथ हैं, जिनमें एक में खडग अर्थात तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरा हाथ अभयमुद्रा में है और चौथा वरमुद्रा में है. कहा जाता है नवरात्रि के सातवें दिन जो भी साधक मां की पूजा- अर्चना करते है तो उनके सभी दुःख दूर हो जाते है.
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मां कालरात्रि की पूजा करके आप अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. कहा जाता है कि जिन लोगों को सबसे ज्यादा गुस्सा आता है. वह नवरात्रि के सप्तमी के दिन मां की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से उनके जीवन से क्रोध का नाश हो जाता है. कालरात्रि माता को काली का रूप भी माना जाता है. इनकी उत्पत्ति देवी पार्वती से हुई है. सप्तमी की पूजा सुबह अन्य दिनों की तरह ही होती है परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है.
देवी भागवत पुराण के अनुसार, माता कालरात्रि की पूजा करने वालों के लिए इस जगत में मौजूद कोई भी चीज दुर्लभ नहीं होता है. माता अपने भक्तो की हर मुराद पूरी करती है. आदिशक्ति मां अपने भक्तो के कष्ट का अतिशीघ्र निवारण भी कर देती हैं. मान्यता है कि मां कालरात्रि सबसे जल्दी अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाती है और उनके सभी मुराद पूर्ण करती है.
सप्तमी तिथि की देवी मां कालरात्रि को भोग में गुड़ के नैवेद्य अर्पित करें. पूजा के बाद गुड़ को ब्राह्मण को दान कर दें और गुड़ के बने प्रसाद को वितरित कर दें. इससे लंबे समय से चले आ रहे शोक मिट जाते हैं और जीवन में खुशियां आती है. इसके साथ ही इस दिन अगर आप किसी असहाय व्यक्ति की मदद करते है तो आपके ऊपर माता का आशीर्वाद सदेव बनी रहती है.