Paryushan Parv 2020: देश-विदेश के जैन मंदिरों, चैत्यालयों, आश्रमों में गाजे-बाजे, ढोल नगाड़ों के साथ भक्ति भाव से पूजा-अर्चना जैन साधु-संतों, मुनि संघों के सानिध्य में दस दिनों तक प्रवचन के माध्यम से जैन श्रावकों में एक नई उर्जा का संचार होता है, जिसे तीर्थंकर भगवान महावीर के काल से ही सादगी के साथ ही तप-त्याग और तपस्या के साथ मनाया जाता रहा है, परंतु इस वर्ष कोरोना महामारी को देखते हुए प्रशासनिक पाबंदियों के कारण सभी धर्मावलंबियों ने इसे घर पर रहकर मनाया. आइये जानते हैं बिहार, झारखंड के जैन तीर्थों की विश्व की इकलौती ’अविभाजित बिहार के जैन तीर्थ‘ के रचयिता बीके जैन के अनुसार…
आत्मा कर्म से आबद्ध है और वह इसे अपने नश्वर शरीर से अलग समझते हुए क्रोध, मान, माया, लोभ जैसे अवगुणों के साथ इस भव में भ्रमण करती है. जिस तरह भोजन के पश्चात् जूठे बर्तनों को मांजकर पुनः शुद्ध किया जाता है ,उसी तरह मन, वचन , काय की मलिनता को जैन श्रावक ‘उत्तम क्षमा’, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य जैसे दस गुणों को इन दस दिनों में आत्मसात कर इस नश्वर शरीर को नयी उर्जा दे आत्मा को पुनर्जीवन प्रदान करते हैं .
उपरोक्त दस गुणों के बीच से हम गुजरते तो रोज हैं पर अज्ञानवश जीवन में इसे अपनाने के लिए इसको व्याख्यायित करना जरूरी है .
(1) उत्तम क्षमा
मन के क्रोध को विवेक से विफल कर क्षमा भाव तक अंतर आत्मा के रास्ते ले जाने की क्रिया ही क्षमा-भाव की जन्मदात्री है, जिसे इस महापर्व के पहले दिन आत्मसात करने की कोशिश की जाती है.
(2) उत्तम मार्दव
मनुष्य का स्वभाव है अपने मन की बात को हमेशा ऊपर रखना, अतः इस प्रक्रिया में जाने-अनजाने ही सही वह अपना विवेक खो देता है . श्रावक उत्तम मार्दव जैसे चमत्कारिक गुण पर अमल कर अपने व्यवहार में विनम्रता लाने का प्रयास करता है.
(3) उत्तम आर्जव
व्यवहारिक जीवन में अमूमन कथनी और करनी में छल-कपट और बेईमानी हो जाती है . उत्तम आर्जव हमें इससे दूर रहकर सरल जीवन का निर्वहन सिखाता है.
(4) उत्तम शौच
जैन आगमों के अनुसार शौच का अर्थ सिर्फ शरीर की शुद्धता नहीं वरन् आत्मा की शुद्धता है . उत्तम शौच आत्मा को शुद्ध, मन को निर्मल और दिल को पवित्र बनाने की प्रेरणा देता है.
(5) उत्तम सत्य
सत्य आत्मा का स्वभाविक गुण है,जिसके आचरण के बिना आत्मा की शुद्धि संभव नहीं. जैन शास्त्रों में सत्य को ‘ब्रह्म’ कहा गया है और बिना इसके ‘सम्यक ज्ञान’ असंभव है.
(6) उत्तम संयम
संयम जीवन को संतुलित और विचारों को नियंत्रित करने की क्रिया सिखाता है. इसके अभाव में जीवन में अशांति, अमानवीयता,द्वेष जैसे भावों का संचार होता है, जो जीवन के लिए घातक है.
(7) उत्तम तप
यह एक तरह की अदृश्य ज्वाला है जिसकी साधना मे तपकर नश्वर शरीर खरा बनता है. उत्तम तप को अपना कर मन में एकाग्रता, खुद में जीने की कला और इच्छाओं का निरोध किया जा सकता है. तप से मन के कषाय, क्रोध, मान, माया, लोभ जैसे अवगुणों को जलाकर आत्मशुद्धि की जा सकती है .
(8) उत्तम त्याग
जैन धर्म में आवश्यक संचय को औरों का हक मारना माना गया है, अतः उत्तम त्याग परिग्रह से अपरिग्रह की राह सिखाता है.
(9) उत्तम आकिंचन
न कुछ पाने की खुशी और न त्यागने का गम जैसी अनुभूति ही आकिंचन है. सही अर्थ में जब यह नश्वर शरीर ही अपना नहीं तो आत्मा के लिए कैसा ग्रहन और कैसा त्याग . सांसारिक जीवन में थोड़ा कम पर निर्ग्रंथ मुनियों के जीवन में इसे आसानी से देखा जा सकता है.
(10) उत्तम ब्रह्मचर्य
पंचतत्व और पंच इंद्रियों से बने इस चंचल शरीर पर विजय पाना पारा पकडने के समान है, अतः उसको काबू करते हुए अपनी अंतरात्मा में भ्रमण करना, चंचल इंद्रियों को वश में रखकर आत्मिक सुख का आनंद लेना और प्रसन्न रहना ही ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करना है, जिससे शरीर सुदृढ़ और ज्ञान में वृद्धि होती है.
जैन धर्म है , इसलिए कि इसमें जीवन के जगत के विकास के यानी हर पक्ष के सवाल के जवाब मौजूद हैं. काल की दृष्टि से यह बहुत प्राचीन और तत्वज्ञान की दृष्टि से बहुत विशाल है. जिसमें अरिहंतों और आचार्यों ने छोटी से छोटी सूक्ष्म बातों का संज्ञान ले उसका हल दिया है. प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से आजतक जो भी ज्ञान कहा और रचा गया है वह न केवल असीम अनंत है अपितु आधुनिक और वैज्ञानिक भी है.
News posted by : Radheshyam kushwaha