Pitru Paksha 2020, pitru paksha 2020 shradh ke niyam, pind daan kaise karen: गया में श्राद्ध से सात कुलो का तारण होता है. गयासुर की छाती पर जब भगवान विष्णु का अवतरण हुआ, तो अपने उद्धार के बाद उसने भगवान विष्णु से वरदान मांगा- ‘जिनके कोई भी सपिंड (पुत्र, पौत्र, गोत्र, कलत्र, दौहित्रादि) गया में आकर पिंडदान करें, उन्हें ब्रह्मलोक की प्राप्ति हो’ इतिहास-पुराण साक्षी हैं भारत के महान पुण्यात्मा चरित्रधन लोकनायको ने गयाधाम में आकर अपने पूर्वजों का तीर्थ श्राद्ध किया.
त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, अपनी पत्नी माता सीता व भाई लक्ष्मण ने गयाधाम में आकर अपने पिता दशरथादि पितरों का पिंडदान किया. द्वापर में भीष्म पितामह ने अपने पिता राजा शांतनु सहित कुल के पितरों के उद्धार व महाराज युधिष्ठिर ने भी गया में पिंडदान किया. अपने पितरों व बंधु-बांधवों को जीवन के आवागमन से मुक्ति दिला कर स्वर्गलोक को प्राप्त कराया. ‘महाजनों येन गत: सपन्था’ इस उक्ति का अनुसरण करते हुए अपने राष्ट्र के महान पुरुषों से प्रेरणा लेते हुए गया श्राद्ध समाचरणीय है. इससे मानव का महापातक भी नष्ट हो जाता है. पिंडदाता के पितरों की शाश्वत तृप्ति होती है. गया क्षेत्र की परिधि के संबंध में गुरुड़पुराण आदि पुराणों में बतलाया गया है.
जीवितों वाक्य करणात् क्षयाहे भूरि भोजनात्. गयायां पिंडदानाच्च त्रिभि: पुत्रस्य पुत्रता.. (देवी भागवत) मुक्ति की प्राप्ति भगवान जनार्दन से होती. भगवान जनार्दन गयाधाम में पितृ रूप में विराजित हैं. पुराणों में बतलाया गया है. पूरी पृथ्वी में गया सर्वश्रेष्ठ एवं पावन है. गयाजी में गया सिर श्रेष्ठ है तथा उससे भी श्रेष्ठ फल्गु नदी तीर्थ है. इसे देवताओं के मुख के रूप में जाना जाता है. चूंकि गया क्षेत्र में पितर भी विष्णु रूप में विराजमान होते हैं.
अत: फल्गु में दिया गया पिंड व जल सीधे उनके मुख में प्राप्त होता है. पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति की कामना से इस नदी में स्नान, तर्पण व पिंडदान करें. वायु पुराण में गया महात्म्य के अंतर्गत बतलाया गया है कि गयाधाम के अक्षयवट क्षेत्र में (वेदी) व्यक्ति अन्न से श्राद्ध कर वटवटेश्वर का दर्शन पूजन करे, तो पितरों को सनातन व अक्षय ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. गयाधाम में सशरीर आकर पिंडदान, तर्पण आदि श्राद्ध कार्य करने का विधान है. यहां के ब्रह्मकल्पित गयावाल पंडाजी से पिंडदान के लिए आज्ञा लेनी पड़ती है. अंत में पंडाजी सुफल देते हैं.
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक 16 दिनों की अवधि में पितृलोक से श्राद्ध पिंड ग्रहण करने के लिए भूलोक पर छोड़ा जाता है. गया में विभिन्न वेदियों पर पिंड समर्पण करके इन्हें मुक्त किया जाता है. इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण गया में पिंडदान नहीं किया जा सकता. किंतु, पितृ आत्मा आकाश में भ्रमण करती हुई पुत्र के घर पर आशा में रहेंगी.
इस स्थिति में श्राद्ध पिता की मृत्यु तिथि पर घर में अवश्य करें. श्राद्ध के बाद पिंड को बहते हुए जल में अथवा गौ को दें. इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही गृह लक्ष्मी की स्थिरता, पुष्ट वृत्ति, रोग व कलह से मुक्ति प्राप्त होती है. इस स्थिति में आरंभ में गया तीर्थ का स्मरण कर एवं गदाधर विष्णु का ध्यान कर श्राद्ध करने से पितृ शांति हो जायेगी. ब्राह्मण भोजन भी श्राद्ध का अंग है. इससे पितृ तृप्त हो जाते हैं. इसके बाद अगले वर्ष गया में श्राद्ध करके पितरों को बैठा देने का संकल्प मन में ले लें.
पितरों की मृत्यु तिथि के हिसाब से उनका श्राद्ध या तर्पण किया जाना चाहिए. यदि आपको पितरों की मृत्यु तिथि के बारे में जानकारी नहीं है, तो आप पितृपक्ष के पहले दिन और अंतिम दिन यानी अमावस्या पर तर्पण कर सकते हैं. श्राद्ध के 15 दिनों की अवधि में गाय, कुत्ते और कौवे को लगातार भोजन जरूर दें. आप गाय को हरा चारा, कुत्ते को दूध और कौवे को रोटी दे सकते हैं. ऐसा करने से भी पितरों का आशीर्वाद आपको मिलेगा. पितृपक्ष में दान का भी बड़ा महत्व होता है. इस वक्त दान करने से पुण्य की प्राप्ति हो सकती है. कुंडली में पितृदोष होने पर आपको जरूर दान करना चाहिए.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha