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इस दिन से शरू होगा पितृपक्ष
इस साल पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहे हैं. अंतिम श्राद्ध यानी अमावस्या श्राद्ध 17 सितंबर को होगा.
ऐसे मिलती है पितृदोष से मुक्ति
ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है. श्राद्ध के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है. श्राद्ध से पितरों को शांति मिलती हैं. वे प्रसन्न रहते हैं और उनका आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है.
श्राद्ध करने से मिलने वाले लाभ
पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके पूजा-पाठ के अलावा दान-धर्म किया जाता है. इन दिनों ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य और पूजा पाठ किए जाते हैं, ताकि हम पर पूर्वजों की कृपा बनी रहे. इन दिनों श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है और पितरगण वंश विस्तार का आशीर्वाद देते हैं. परिवार के धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है. श्राद्ध में किए गए तर्पण से प्रसन्न होकर पूर्वज स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य और सभी सुखों का आशीर्वाद देते हैं. श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता है.
पिंड दान की विधि
श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है. इसमें चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास और सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है. कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए.
पितरों का श्राद्ध कैसे करें?
पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए. श्राद्ध को लेकर कुछ विशेष मान्यताएं भी बताई गईं हैं. जैसे पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन ही किया जाता है. अगर के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है. साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाना चाहिए. जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए.
ऐसा करने से होता है पितृदोष का सामना
जो भी अपने पितरों को तर्पण नहीं करता है उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है. ऐसे दोष की स्थिति में परिजनों को धन, सेहत और अन्य कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है.
ऐसे में अमावस्या में कर सकते हैं श्राद्ध
अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नही है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित होता है.
श्राद्ध का विशेष महत्व होता
पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है. हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है. पितृपक्ष के 15 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण का अधिक महत्व मनाया गया है. इन 15 दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं. पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं.
पितृ पक्ष को लेकर ये है मान्यता
पितृ पक्ष में पितर देव स्वर्गलोक से धरती पर परिजनों से मिलने आते हैं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार तर्पण नहीं किया जाता है उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. पितृपक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है. जो भी अपने पितरों को तर्पण नहीं करता है उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है.
पितृ पक्ष में भूल कर भी न करें ये काम
शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध से पितरों को मुक्ति मिलती है. यही कारण है कि इस दौरान तर्पण और श्राद्ध कार्य विधि पूर्वक और श्रध्दा भाव से करें. हालांकि, कई लोग इस दौरान कई गलतियां करते हैं. आइये जानते हैं क्या गलतियां करने से आपकी श्रद्धा पूरी नहीं होगी.
- अगर आपको अपने पूर्वज की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो कर लें, इसके बिना उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी और आपकी श्रद्धा भी नहीं होगी स्वीकार,
- इस दौरान आपके द्वार पर कोई आये तो उसका अनादर नहीं करें. हालांकि, कोरोना और लॉकडाउन के चलते दूरी जरूर बना कर रखें.
- पितृ पक्ष के अंतिम दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना न भूलें,
- पितृ पक्ष के आखिरी दिन भी तर्पण जरूर कर लें, इसे नजरअंदाज करने की भूल न करें.
- पितृ पक्ष में तर्पण करने वाले हैं उन्हें अपनी दाढ़ी और बाल नहीं बनवानी चाहिए. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो सकते हैं.
गयाधाम में पितृपक्ष पर सन्नाटा
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण केंद्र व राज्य सरकार के गृह विभाग ने गाइडलाइन जारी की है. जिसके अनुसार धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई है. ऐसे में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी में मनाए जाने वाले पितृपक्ष मेले आयोजन पर भी गयाधाम में सन्नाटा पसरा हुआ है.
पितृ पक्ष को लेकर ये है मान्यता
पितृ पक्ष में पितर देव स्वर्गलोक से धरती पर परिजनों से मिलने आते हैं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार तर्पण नहीं किया जाता है उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. पितृपक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है. जो भी अपने पितरों को तर्पण नहीं करता है उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है. ऐसे दोष की स्थिति में परिजनों को धन, सेहत और अन्य कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है.
कोरोना महामारी में ऐसे करें पितृ तर्पण (Pitru Paksha during Corona Era)
कोरोना महामारी के चलते गंगा तट पर न जाकर घर पर ही पितरों को जलदान करें. पंडित केए दुबे पद्मेश का कहना है कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष रहता है. इस बार पितृपक्ष दो सितंबर से 17 सितंबर तक हैं. ज्योतिष सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष आचार्य पवन तिवारी का कहना है कि पितृपक्ष में पितरों का तर्पण करना बहुत ही अच्छा होता है.
पितृ पक्ष के दौरान ये चीजें होती है वर्जित
पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है.
दूध, जौ, चावल और गंगाजल से होता है तर्पण
पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तर्पण किया जाना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.
पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहत जरूरी माना जाता है. माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. वहीं ये भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. ये भी माना जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरो को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं. इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी व नाराज हो जाती है.
पितृपक्ष के दौरान क्या करें
जब भी श्राद्ध पक्ष में अपने परिजनों का पिंडदान या तर्पण जैसा अनुष्ठान किया जाता तब इसमें परिवार के किसी बड़े सदस्यों को करना चाहिए
श्राद्ध पक्ष के दौरान हर दिन सुबह जल्दी स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर पितरों को श्राद्ध दे
पितरों का तर्पण करते समय हाथ में कुश घास से बनी अंगूठी पहनना चाहिए
पितृ पक्ष में न करें ये काम
शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए गए तर्पण और श्राद्ध से पितरों को मुक्ति मिलती है इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध का कार्य विधि पूर्वक और श्रध्दा के साथ करना चाहिए. अगर आपको अपने पूर्वज की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो भी पितृ पक्ष के आखिरी दिन तर्पण कर सकते हैं और ब्राह्मणों को भोजन करा सकते हैं.
क्यों किया जाता है श्राद्ध
श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसके साथ ही इस दिन दान देने की भी परंपरा है. श्राद्ध करने से पितृदोष समाप्त होते हैं. आपकी कुंडली में पितृदोष है तो यह दोष समाप्त होता है. जिससे रोग, धन संकट, कार्य में समस्याएं दूर होती हैं. श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है. घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है. इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए.
पिंड दान की तरीका
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी बेहद महत्व होता है, इसमें लोग चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित करते हैं. इसके साथ ही काला तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है.
जानें क्या होता है पितृदोष
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है. श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है. श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं. उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व का प्रमाण मिलता है- देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम अर्थात् देवता और पितरों के कार्यों में आलस्य मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए.
इस मंत्र का जाप कर पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दें
ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:।
आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।
जल देते समय इस मंत्र को जरूर पढ़ें
ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।
वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।
अपने पूर्वजों को ऐसे करें श्राद्ध
पितृपक्ष में पितृतर्पण एवं श्राद्ध करने का विधान है. श्राद्ध करने के दौरान सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें. इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” इसके बाद पितरों का आह्वान इस मंत्र से करना चाहिए.
ऐसे करने पर पितरों का मिलता है आशीर्वाद
श्राद्ध की 15 दिनों तक गाय, कुत्ते और कौवे को लगातार भोजन जरूर दें. आप गाय को हरा चारा, कुत्ते को दूध और कौवे को रोटी दे सकते हैं. ऐसा करने से भी पितरों का आशीर्वाद आपको मिलेगा.
कैसे किया जाता है पितृ तर्पण
जिस तिथि को आपके पितृ देव का श्राद्ध हो उस दिन बिना साबुन लगाए स्नान करें, फिर बिना प्याज-लहसुन डाले अपने पितृ देव का पसंदीदा भोजन या आलू, पुड़ी और हलवा बनाकर एक थाल में रखें. इसके साथ पानी भी रखें. इसके बाद हाथ में पानी लेकर तीन बार उस थाली पर घूमाएं. पितरों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें. साथ में दक्षिणा रखकर किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान दें. इस दिन तेल लगाना, नाखुन काटना, बाल कटवाना और मांस-मदिरा का सेवन करना मना होता है.
पिंड दान की विधि
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी महत्व है. श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है. मान्यता के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है. कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए.
जानें कब-कब है श्राद्ध तिथि
पहला श्राद्ध (पूर्णिमा श्राद्ध) -1 सितंबर 2020
दूसरा श्राद्ध - 2 सितंबर
तीसरा श्राद्ध - 3 सितंबर
चौथा श्राद्ध - 4 सितंबर
पांचवा श्राद्ध - 5 सितंबर
छठा श्राद्ध - 6 सितंबर
सांतवा श्राद्ध - 7 सितंबर
आंठवा श्राद्ध - 8 सितंबर
नवां श्राद्ध - 9 सितंबर
दसवां श्राद्ध - 10 सितंबर
ग्यारहवां श्राद्ध - 11 सितंबर
बारहवां श्राद्ध - 12 सितंबर
तेरहवां श्राद्ध - 13 सितंबर
चौदहवां श्राद्ध - 14 सितंबर
पंद्रहवां श्राद्ध - 15 सितंबर
सौलवां श्राद्ध - 16 सितंबर
सत्रहवां श्राद्ध - 17 सितंबर (सर्वपितृ अमावस्या)
पितृ पक्ष में श्राद्ध कैसे करें
वैदिक धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए. मान्यता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करना श्रेष्ठ है. वहीं यदि अकाल मृत्यु होने पर श्राद्ध चतुर्दशी के दिन श्राद्ध किया जाना चाहिए. साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है. इसके अतिरिक्त जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए.
श्राद्ध कर्म क्यों किया जाता है
श्राद्ध कर्म करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है. पितृ पक्ष में दान देने की भी परंपरा है. श्राद्ध करने से दोष समाप्त होते हैं. यदि जन्म कुंडली में पितृदोष है तो यह दोष समाप्त होता है. जिससे रोग, धन संकट, कार्य में बाधा आदि समस्याएं दूर होती हैं. श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है. घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है. पितृ पक्ष के दौरान धैर्य और चित्त को शांत रखते हुए कार्य करने चाहिए. बुराई, मास- मदिरा और गलत कार्यों से बचना चाहिए. इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए.