पितृपक्ष पूर्णिमा (Pitru Paksha Purnima) से श्राद्ध आरंभ हो चुके हैं. शुद्ध पितृपक्ष की 21, सितबंर मंगलवार यानि आज से शुरु हो चुकी है.
पितृपक्ष के 15 दिनों में पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. इन दिनों में लोग अपने पूर्वजों के लिए शांति की कामना करते हैं.
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरे मन से दान-पुण्य करें. जिस दिन पूर्वजों की तिथि हो उस दिन सोना-चांदी, घी-तेल, नमक, फल, मिठाई, गुड़ का दान करना बहुत अच्छा होता है.
यदि पूर्वजों के निधन की तिथि पता नहीं है या किसी की अकाल मृत्यु हुई है तो सर्व पितृ श्राद्ध के दिन पितरों का पिंडदान या श्राद्ध जरूर करें. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
श्राद्ध में कभी भी कोई शुभ काम न करें. ना ही तामसिक भोजन करें. ऐसा करना पितरों को नाराज कर सकता है.
पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान तिल का प्रयोग भी बहुत जरूरी होता है. क्योंकि तिल की उत्पत्ति भी विष्णु जी से हुई है. कहते हैं कि तिल की उत्पत्ति पसीने से हुई है. ऐसे में पिंडदान के समय तिल का प्रयोग करने से पितर को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
शास्त्रों में कहा गया है कि कुश भगवान विष्णु का अहम हिस्सा है. सनातन धर्म में कुश को सबसे शुद्ध माना गया है. इसलिए श्राद्ध क्रिया के दौरान कुश को शामिल करना बहुत जरूरी है.
पितृपक्ष क्रिया में तुलसी भी महत्वपूर्ण है. ऐसा माना जाता है कि तुलसी कभी बासी या अपवित्र नहीं होती. इसलिए एक दिन चढ़ाई गई तुलसी को दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है.
पितृपक्ष में ब्राह्मण को भोजन कराने की भी परंपरा है. इस दौरान ब्राह्मण के पैर धोना भी शुभ माना जाता है. उनके चरण हमेशा बैठाकर ही छुएं. ध्यान रहे कि ब्राह्मणों के चरण अगर खड़े होकर धोएं जाएं तो पितर नाराज हो जाते हैं.