Pitru Paksha 2022: गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान,जानें कारण और महत्व, इस दिन से शुरू होगा श्राद्ध

गया में पिंडदान करने का पौराणिक महत्व है. दुनियाभर के लोग हर साल यहां आकर पिंडदान करते है. ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि गया में पिंडदान का इतना महत्व क्यों है. क्यों यहां लोगों की भीड़ जमा होती है. आज हम आपको इन सभी सवालों के जवाब बताएंगे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2022 3:33 PM

Pitru Paksha 2022: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. पितृ पक्ष में पूर्वजों को याद करके उनके प्रति आभार प्रकट किया जाता है. इस साल 10 सितंबर 2022 दिन शनिवार से पितृ पक्ष शुरू होगा, जो अगले 15 दिनों तक चलेगा. पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का समापन 25 सितंबर 2022 को होगा. माना जाता है कि इस अवधि के दौरान, श्राद्ध अनुष्ठान करने में मदद करने वाले ब्राह्मण पुजारियों को भोजन, कपड़े और दान दिया जाता है. इसके साथ ही गाय, कुत्ते और कौवे को भी भोजन कराया जाता है. गया में पितृपक्ष के दौरान हजारों लोग आते हैं और श्राद्ध करवाते हैं. कहा जाता है कि पिंडदान के बाद हमारे पुर्वज को मुक्ति मिल जाती है.

गया में ही क्यों मनाया जाता है पिंडदान

हिन्दू धर्म में गया का महत्व बहुत अधिक है. मान्यता है कि जिस व्यक्ति का पिंडदान गया में होता है. उसकी आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है. विष्णु पुराण में कहा गया है कि गया में श्राद्ध हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिलती है. कहा ये भी जाता है कि गया के पंचकोसी भूमि पर गयासुर नाम का एक असुर था, जो यज्ञ कर रहा था. उसके यज्ञ से देवतागण विचलित हो गए था, जिसके बाद विष्णु ने अपने चरण से उसे शांत कर उसकी अंतिम इच्छा पूछी. जिसपर गयासुर ने कहा कि मैं जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हुं, वहां हर दिन एक पिंडदान हुआ करे, यहां जो भी व्यक्ति पिंडदान करेगा, वो पापों से मुक्त होकर स्वर्गवास चला जाएगा. विष्णु जी ने उसकी ये बात बात ली और शिला पर जो पैर रखा वह चरण चिह्न बन गया. वह चरण आज भी पूजित है.

राजा दशरथ का गया में ही हुआ था पिंडदान

गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड में गया में होने वाले पिंडदान के बारे में जिक्र किया गया है. मान्यता है कि भगवान राम और सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था. कहा ये भी जाता है कि जिस किसी का भी यहां श्राद्ध होता, है वो सीधे स्वर्ग चला जाता है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसीसे इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.

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पिंडदान का महत्व

अक्षय वट को वरदान दिया कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे और आज से पिंडदान के बाद तुम्हारी पूजा करने के बाद ही सफल होगी. प्रेतशिला के पास यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण कर लेते हैं. जिससे उनको कष्टदायी योनियों में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती. प्रेतशिला के पास कई पत्थर हैं, जिनमें विशेष प्रकार के दरारें और छिद्र हैं. कहा जाता है कि ये दरार और छिद्र लोक और परलोक के बीच कड़ी का काम करती हैं, इनमें से होकर प्रेतत्माएं आती हैं और पिंडदान का ग्रहण करती हैं.

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