Pitru Paksha 2023: गया को क्यों माना गया है सभी तीर्थस्थलों में श्रेष्ठ, जानें इससे जुड़ी सभी मान्यताएं

Pitru Paksha 2023: गया के तीर्थ स्थल का महत्व आज भी पूरी दुनिया में है. दूसरी तरफ भागमभाग की जिंदगी में अन्य कामों की तरह श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड भी सिमट कर छोटा हो गया है. व्यस्त श्रद्धालु एक दिन में श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड संपन्न कर रहे हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | September 28, 2023 8:54 AM

गयाजी तीर्थ की महत्ता मुक्तिधाम के रूप में वायु व नारद पुराण सहित दूसरे हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी है. गयाजी को सभी तीर्थस्थलों में श्रेष्ठ माना गया है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करनेवाले श्रद्धालुओं के 101 कुलों का उद्धार हो जाता है. पांच कोस क्षेत्र में फैले इस तीर्थस्थल में प्राचीन काल में 365 वेदियां थीं, जहां श्रद्धालु एक वर्ष रहकर पिंडदान का कर्मकांड संपन्न कर पितरों के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कराते थे. समय बीतने के साथ-साथ वेदियां सिमट कर अब केवल 54 ही रह गयी हैं.

इसके बावजूद इस तीर्थ स्थल का महत्व आज भी पूरी दुनिया में है. दूसरी तरफ भागमभाग की जिंदगी में अन्य कामों की तरह श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड भी सिमट कर छोटा हो गया है. व्यस्त श्रद्धालु एक दिन में श्राद्ध व पिंडदान का कर्मकांड संपन्न कर रहे हैं. वहीं जिनके पास समय व संसाधन है, वे तीन दिन, पांच दिन, सात दिन या 17 दिन तक रहकर यहां सभी 54 वेदियों पर पिंडदान का कर्मकांड संपन्न करते हैं.

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पंडा-पुरोहितों के अनुसार एक दिन का पिंडदान करने के लिए आनेवाले लोग फल्गु नदी, विष्णुपद व अक्षयवट पर पिंडदान श्राद्ध व तर्पण का कर्मकांड कर अपने पितरों को जन्म-मरण के जीवन चक्र से मुक्ति दिलाते हैं.

तीन दिनी पिंडदान के विधान के तहत फल्गु नदी, विष्णुपद, अक्षयवट, प्रेतशिला,

सीता कुंड, बोधगया व वैतरणी सरोवर में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड कर तीर्थयात्री पितृ ऋण से मुक्त होते हैं.

पांच दिन के कर्मकांड में नौ वेदी स्थलों पर तीर्थयात्रियों को पिंडदान करना होता है. तीर्थ पुरोहितों के अनुसार पांच दिनों में फल्गु नदी, विष्णुपद, अक्षयवट, प्रेतशिला, सीताकुंड, बोधगया, वैतरणी सरोवर, सूर्यकुंड व पिता महेश्वर (उत्तर मानस) सरोवर में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड करना अनिवार्य बतलाया गया है.

सात दिवसीय कर्मकांड के लिए 14 वेदी स्थलों पर पिंडदान का विधान है. मुक्तिधाम गयाजी में तीर्थ यात्रियों को सात दिनों तक रहना होता है. इस दौरान तीर्थयात्री यहां 14 वेदी स्थलों पर श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड संपन्न कराते हैं. तीर्थ-पुरोहितों के अनुसार सात दिवसीय कर्मकांड के तहत फल्गु नदी, विष्णुपद, अक्षयवट, प्रेतशिला, सीता कुंड, बोधगया, वैतरणी सरोवर, सूर्यकुंड, पिता महेश्वर (उत्तर मानस) सरोवर, मुंड पृष्ठा, आदि गया, धौत पद, गया सिर व गया कूप वेदी स्थलों पर तीर्थयात्रियों को कर्मकांड संपन्न करना होता है.

पुरोहितों द्वारा 17 दिवसीय कर्मकांड में 54 वेदी स्थलों पर पिंडदान करने का विधान तीर्थ बताया गया

है. इस दौरान मोक्षधाम में स्थित सभी वेदियों पर तीर्थयात्रियों के द्वारा पिंडदान किया जाता है.

इस बार तिथिवार पिंडदान का कार्यक्रम

28 सितंबर (भाद्रपद चतुर्दशी)

पुनपुन पांवपूजा या गोदावरी श्राद्ध.

29 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा)

फल्गु स्नान श्राद्ध एवं पूजा खीर का पिंड.

30 सितंबर (आश्विन कृष्ण

पक्ष प्रतिपदा तिथि)

प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबली.

01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि)

उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिव्हालोल व गदाधर जी का पंचामृत स्नान.

02 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि)

सरस्वती स्नान व पंचरत्न दान, तर्पण, धर्मारण्य, मातंगवापी, व बौद्ध दर्शन.

03 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि)

ब्रह्मसरोवर श्राद्ध, काकबलि श्राद्ध, तारक ब्रह्म का दर्शन व आम्रसिंचन.

04 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि)

विष्णुपद स्थित 16 वेदी में रूद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध व पांव पूजा.

05 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि)

16 वेदी में कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गाहर्पत्यागनी पद व आहवनयाग्नि पद.

06 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण

पक्ष सप्तमी तिथि)

16 वेदी में सूर्यपद, चंद्र पद, गणेश पद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्नि पद व दघिची पद.

07 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि)

16 वेदी में मतंग पद, क्रौंच पद, इंद्र पद अगस्त्य पद कश्यप पद, गजकर्ण पद, दूध तर्पण व अन्नदान.

08 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण

पक्ष नवमी तिथि)

राम गया श्राद्ध, सीताकुंड (बालू का पिंड)

सौभाग्य दान व पांव पूजा.

09 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी तिथि)

गया सिर, गया कूप (त्रिपिंडी श्राद्ध),

पितृ व प्रेत दोष निवारण श्राद्ध.

10 अक्तूबर (आश्विन

कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि)

मुंड पृष्ठ श्राद्ध (आदि गया) धौतपद

श्राद्ध व चांदी दान.

11 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण

पक्ष द्वादशी तिथि)

भीम गया, गौ प्रचार व गदा लोल श्राद्ध.

12 अक्तूबर (आश्विन

कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि)

विष्णु भगवान का पंचामृत स्नान, पूजन,

फल्गु में दूध तर्पण व दीपदान.

13 अक्तूबर (आश्विन

कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि)

वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान.

14 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण

पक्ष अमावस्या तिथि)

अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या

दान, सुफल व पितृ विसर्जन.

15 अक्तूबर (आश्विन शुक्ल

पक्ष प्रतिपदा तिथि)

गायत्री घाट पर दही चावल

का पिंड, आचार्य की दक्षिणा व पितृ

विदाई.

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