Pitru Paksh 2023: पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का एक अपना अलग ही महत्व होता है. हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दौरान पितृ पक्ष की शुरुआत होती है. पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितंबर को होगा और इसका समापन पितृ अमावस्या यानि 14 अक्टूबर को होगी. पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किए जाने की परंपरा है. जिस जातक के पूर्वज की मृत्यु हो गई है और उन्हें पितर की मृत्यु का निर्धारित समय पता नहीं है, तो ऐसे में जातक सर्वपितृ अमावस्या के दिन पिंडदान कर सकते है. बता दें कि श्राद्ध पक्ष पितरों के लिए समर्पित होती है. आइए जानते है ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री कि इस साल कब और कैसे तर्पण और पिंडदान करनी चाहिए.
सामान्य शब्दों में कहें तो ‘तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है’ पितरों के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं. ज्योतिषाचार्य के अनुसार तर्पण के 6 प्रकार के होते हैं- 1. देव-तर्पण 2. ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य पितृ तर्पण
जिस दिन श्राद्ध करना है, उस दिन स्नान करने के बाद पूरे घर की साफ-सफाई करें. घर में गंगाजल और गौमूत्र भी छीड़कें. इसके बाद दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर और बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं. इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल और पानी डालें. उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं. इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें.
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– इसके बाद घर के आंगन में रंगोली बनाएं. महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं. ध्यान रखें कि भोजन बनाते समय किसी भी प्रकार की गलती न करें.
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– अब आप किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को न्यौता देकर बुलाएं. ब्राह्मण को भोजन करवाएं और निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोकर कुछ चीजों का दान अवश्य करें. ऐसा करते समय पत्नी आपके दाहिनी तरफ होना चाहिए.
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– आपको इस बात कि विशेष रूप से ध्यान रखने की जरूरत होगी कि ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन परोसतें समय प्रसन्न होकर ही भोजन परोसे. भोजन के उपरांत यथाशक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें.
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– पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अर्पण करें. ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें. मान्यता है कि पितर इन्हीं पांच रूपों में धरती पर आते है और अपने संतान को आशीर्वाद देते है.
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– दक्षिणाभिमुख (दक्षिण दिशा में मुंह रखकर) होकर कुश, जौ, तिल, चावल और जल लेकर संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं. इसके बाद भोजन थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसे.
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– गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक का दान करें. शास्त्र में इसे महादान कहा गया है. इसके बाद निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें. ब्राह्मण को चाहिए कि स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें तथा गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें.
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– पितृ पक्ष के दौरान आपको इन बातों का भी ध्यान रखने की जरुरत होगी की श्राद्ध में सफेद फूलों का ही उपयोग करें. श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े, अभिजित मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से जरूरी है.
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पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय यदि कोई भिक्षुक आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है.
शाम के समय न करें श्राद्ध
शुक्लपक्ष में, रात्रि में और ऐसे दिन जब दो तिथियों का योग एक ही दिन हो रहा हो, तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है. अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए.
पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि हैं. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसा भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें. तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता कौआ, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग जरूर निकालें. इसके बाद हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें.
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पितृपक्ष में कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं. इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं.
ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं. ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं. ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं.