Pradosh Vrat July 2024: हिंदू धर्म में त्रयोदशी तिथि का विशेष महत्व है. पंचांग के अनुसार, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है. इस तिथि को प्रदोष व्रत भगवान शिव की विशेष कृपा पाने के लिए रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है. प्रदोष व्रत का पूजन सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद किया जाता है. प्रदोष व्रत के दौरान प्रदोष व्रत की कथा सुनना भी शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत की पूजा बिना कथा सुने अधूरी रह जाती है.
प्रदोष व्रत की कथा
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी, तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया. वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था और उसकी माता की मृत्यु भी अकाल में हो गई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया. कुछ समय बाद, ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है, वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है, जिनका राज्य शत्रुओं ने हड़प लिया था और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.
एक दिन, दोनों बालक वन में घूम रहे थे, तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया, किन्तु राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक-दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन, जब वह पुनः गंधर्व कन्या से मिलने आया, तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया. इसके बाद, राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था.स्कंद पुराण के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है, उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.
प्रदोष व्रत पूजन तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 जुलाई को सुबह 7:10 बजे शुरू होगी और 4 जुलाई को सुबह 5:54 बजे समाप्त होगी. प्रदोष व्रत 3 जुलाई 2024, बुधवार को मनाया जाएगा. प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है. मान्यता है कि इस समय भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं. प्रदोष काल में की गई पूजा शिवजी को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम समय माना जाता है, जिससे भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
बुध प्रदोष व्रत पूजन विधि
प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें और साफ वस्त्र धारण करें. उसके बाद बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव का पूजन करें. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है. पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफेद रंग का वस्त्र धारण करें. फिर स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. अब गाय का गोबर लें और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें. पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं. भगवान शिव के मंत्र ऊं नम: शिवाय का जाप करें और शिव जी को जल चढ़ाएं.