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मर्यादित व्यक्तित्व में है राम की पूर्णता

भारत भूमि और कई अन्य देशों में राम के नाम और उनकी कथाओं की व्याप्ति प्राचीन काल से रही है. इस व्याप्ति का आधार और आवरण धर्म, आस्था एवं परंपरा से संबद्ध तो रहा ही है, राम की उपस्थिति आध्यात्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक, कलात्मक और सांकृतिक आयामों से भी उतनी ही जुड़ी है. अयोध्या की ऐतिहासिकता और आस्था की पौराणिकता से बृहत विस्तार कर राम ‘कण-कण में व्यापे राम’ होकर असीम और विराट बने हैं. यह विराट रूप निर्गुण और सगुण के पार तथा दैवत्व का अपार है. उनका नाम उच्चारण करना, स्मरण करना तथा उनकी महिमा का बखान करना भिन्न-भिन्न क्रियाएं हैं, पर उनकी प्राप्ति एक ही है- कल्याण. पढें महान समाजवादी डॉ राममनोहर लोहिया का यह विशेष आलेख.

दुनिया के देशों में हिंदुस्तान किंवदंतियों के मामले में सबसे धनी है. हिंदुस्तान की किंवदंतियों ने सदियों से लोगों के दिमाग पर निरंतर असर डाला है. देश के तीन सबसे पौराणिक नाम राम, कृष्ण और शिव हैं. यह सबको मालूम है. राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है. राम विष्णु के मनुष्य रूप हैं, जिनका अवतार धरती पर धर्म का नाश और अधर्म के बढ़ने पर होता है. राम धरती पर त्रेता में आये, जब धर्म का रूप इतना अधिक नष्ट नहीं हुआ था. वह आठ कलाओं से बने थे, इसलिए मर्यादित पुरुष थे.

राम जैसे मर्यादित पुरुष के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी दृष्टि केवल एक महिला तक सीमित रखी. उस निगाह से किसी अन्य महिला की ओर कभी नहीं देखा. यह महिला सीता थीं. उनकी कहानी बहुलांश राम की कहानी है, जिनके काम सीता की शादी, अपहरण व कैद मुक्ति और धरती की गोद में समा जाने के चारों ओर चलते हैं. जब सीता का अपहरण हुआ, तो राम व्याकुल थे. वे रो-रो कर कंकड़, पत्थर और पेड़ों से पूछते थे कि क्या उन्होंने सीता को देखा है? इस बहुमूल्य कहानी में मर्यादित व्यक्तित्व का रूप पूरा उभरा है.

राम के मर्यादित व्यक्तित्व से जुड़ी एक और बहुमूल्य कहानी उनके अधिकार के बारे में है, जो नियम और कानून से बंधे थे, जिनका उल्लंघन उन्होंने कभी नहीं किया और जिनके पूर्ण पालन के कारण उनके जीवन में तीन या चार धब्बे भी आये. राम और सीता अयोध्या वापस आकर राजा और रानी की तरह रह रहे थे. एक धोबी ने कैद में रही सीता के बारे में शिकायत की. शिकायती केवल एक व्यक्ति का था और शिकायत गंदी होने के साथ-साथ बेदम भी थी, लेकिन नियम था कि हर शिकायत के पीछे कोई-न-कोई दुख होता है और उसकी उचित दवा या सजा होनी चाहिए. इस मामले में सीता का निर्वासन ही एकमात्र इलाज था. नियम अविवेकपूर्ण था, सजा क्रूर थी और पूरी घटना एक कलंक थी, जिसने राम को जीवन के शेष दिनों में दुखी बनाया, लेकिन उन्होंने नियम का पालन किया, उसे बदला नहीं. वे पूर्ण मर्यादा पुरुष थे, नियम और कानून से बंधे हुए. अपने बेदाग जीवन में धब्बा लगने पर भी उसका पालन किया.

मर्यादा पुरुष होते हुए भी एक दूसरा रास्ता उनके लिए खुला था. सिंहासन त्याग कर वे सीता के साथ फिर प्रवास कर सकते थे. शायद उन्होंने यह सुझाव रखा भी हो, लेकिन उनकी प्रजा अनिच्छुक थी. उन्हें अपने आग्रह पर कायम रहना चाहिए था. प्रजा शायद नियम में ढिलाई करती या उसे खत्म कर देती, लेकिन कोई मर्यादित पुरुष नियमों का खत्म किया जाना पसंद नहीं करेगा, जो विशेष काल में या किसी संकट से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है. विशेषकर जब स्वयं उस व्यक्ति का उससे कुछ न कुछ संबंध हो. राम ने क्या किया था, क्या कर सकते थे, यह एक मामूली अटकलबाजी है. इस बात की अपेक्षा कि उन्होंने नियम का यथावत पालन किया, जो मर्यादित पुरुष की एक बड़ी निशानी है. राम मर्यादित पुरुष थे, जैसे कि वास्तविक वैधानिक प्रजातंत्र. राम सचमुच एक नियंत्रित व्यक्ति, एक मर्यादित पुरुष थे और नियम के दायरे में चलते थे.

रावण के आखिरी क्षणों के बारे में एक कहानी कही जाती है. रावण अपने जमाने का नि:संदेह सर्वश्रेष्ठ विद्वान था. हालांकि उसने अपनी विद्या का गलत प्रयोग किया, फिर भी बुरे उद्देश्य परे रख कर मनुष्य जाति के लिए उस विद्या का संचय आवश्यक था. इसलिए राम ने लक्ष्मण को रावण के पास अंतिम शिक्षा मांगने के लिए भेजा. रावण मौन रहा. लक्ष्मण वापस आये. जो हुआ था, उसका पूरा ब्योरा राम ने उनसे पूछा. तब पता लगा कि लक्ष्मण रावण के सिरहाने खड़े थे. लक्ष्मण पुनः भेजे गये कि रावण के पैताने खड़े होकर निवेदन करें. फिर रावण ने राजनीति की शिक्षा दी. शिष्टाचार की यह सुंदर कहानी अद्वितीय और अब तक की कहानियों में सर्वश्रेष्ठ है. शिष्टाचार की श्रेष्ठतम कहानी के रचयिता राम हैं.

राम अक्सर श्रोता रहते थे. न केवल उस व्यक्ति के साथ, जिससे वे बातचीत करते थे, जैसा हर बड़ा आदमी करता है, बल्कि दूसरे लोगों की बातचीत के समय भी. अपने लोगों और उनके दुश्मनों के बीच होनेवाले वाद-विवाद में वे प्रायः एक दिलचस्पी लेनेवाले श्रोता के रूप में रहते थे. यह एक चतुर नीति भी कही जा सकती है, लेकिन निश्चय ही यह मर्यादित व्यक्ति की भी निशानी है, जो अपनी बारी आये बिना नहीं बोलता और परिस्थिति के अनुसार दूसरों को बातचीत का अधिक से अधिक मौका देता है. राम मर्यादा पुरुष थे. इसलिए अपनी चुप्पी और वाणी दोनों के लिए समान रूप से याद किये जाते हैं. राम का जीवन बिना हड़पे हुए फलने की एक कहानी है. उनका निर्वासन देश को एक शक्तिकेंद्र के अंदर बांधने का एक मौका था.

अपने प्रवास में राम अयोध्या से दूर लंका की ओर गये. रास्ते में अनेक राज्य और राजधानियां पड़ीं. मर्यादित पुरुष की नीति-निपुणता की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति तब हुई जब राम ने रावण के राज्यों में से एक बड़े राज्य को जीता. उसका राजा बालि था. राम ने पहली जीत को शालीनता और मर्यादित पुरुष की तरह निभाया. राज्य हड़पा नहीं, जैसे का तैसा रहने दिया. राम ने कोई चमत्कार नहीं किया. यहां तक कि भारत और लंका के बीच का पुल भी एक-एक पत्थर जोड़ कर बनाया. मर्यादा के सर्वोच्च पुरुष, मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तो राजनीतिक चमत्कार हासिल किया.

(अंग्रेजी मासिक ‘मैनकाइंड’ में अगस्त 1955 में छपे लेख के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के ‘हिंदी समय’ पर प्रकाशित अनुवाद का संपादित अंश)

posted be ashish jha

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