रामराज्य आज भी है आदर्श

श्रीराम आदर्श राजा थे. राजपीठ पर बैठ कर उन्होंने न्यायपूर्ण शासन के सिद्धांत का आधार गढ़ा, जिसमें राज्य के प्रत्येक नागरिक को सम्मान, स्वतंत्रता और साहचर्य के साथ जीने का अधिकार और अवसर मिला. इस न्यायपूर्ण आदर्श शासन के प्रताप से अकाल मृत्यु और नाना प्रकार के भय समाप्त हो गये. रामराज्य में सब अपने-अपने वर्णानुसार धर्म कार्यों में तत्पर रहते थे. इसलिए सब लोग सदा सुप्रसन्न रहते थे. राम दुखी होंगे, इस विचार से प्रजाजन परस्पर एक दूसरे को दुख नहीं देते थे.

By Prabhat Khabar News Desk | August 5, 2020 12:29 PM

श्रीराम आदर्श राजा थे. राजपीठ पर बैठ कर उन्होंने न्यायपूर्ण शासन के सिद्धांत का आधार गढ़ा, जिसमें राज्य के प्रत्येक नागरिक को सम्मान, स्वतंत्रता और साहचर्य के साथ जीने का अधिकार और अवसर मिला. इस न्यायपूर्ण आदर्श शासन के प्रताप से अकाल मृत्यु और नाना प्रकार के भय समाप्त हो गये. रामराज्य में सब अपने-अपने वर्णानुसार धर्म कार्यों में तत्पर रहते थे. इसलिए सब लोग सदा सुप्रसन्न रहते थे. राम दुखी होंगे, इस विचार से प्रजाजन परस्पर एक दूसरे को दुख नहीं देते थे.

निर्दस्युरभवल्लोको नानर्थं कश्चिदस्पृशत्।

न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते।।

(वाल्मीकि रामायण)

अर्थ- राज्यभर में चोरों, डाकुओं और लुटेरों का कहीं नाम तक न था. दूसरे के धन को कोई छूता तक न था. श्रीराम के शासन काल में किसी वृद्ध ने किसी बालक का मृतक संस्कार नहीं किया था अर्थात राजा राम में बाल मृत्यु नहीं होती थी.

तुलसीदास ने भी रामराज्य का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है :

दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥

सब नर करहिं परस्पर प्रीती।

चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

विनम्रता से शांत किया परशुराम का क्रोध

सीता के स्वयंवर में रामजी के शिव धनुष तोड़ने पर परशुराम आगबबूला थे. आते ही गरज कर बोले- किसने मेरे गुरु का धनुष तोड़ा है, आये मेरे सामने, जरा मैं भी देखूं वह कितना वीर है? राम ने बहुत नम्रता से कहा- महाराज! आपके किसी भक्त ने ही तोड़ा होगा और क्या. परशुराम ने फरसा घुमा कर कहा- नहीं, यह मेरे भक्त का काम नहीं. यह किसी शत्रु का काम है. मैं उसका सिर तन से अलग कर दूंगा. लक्ष्मण यह ललकार सुन कर भला कब सहन कर सकते थे. उन्होंने भी परशुराम को कड़ा जवाब दिया. राम ने देखा कि बात बढ़ी जा रही है, तो लक्ष्मण का हाथ पकड़ कर बिठा दिया और परशुराम से हाथ जोड़ कर बोले- महाराज! लक्ष्मण की बातों का आप बुरा न मानें. यह अभी तक आपको नहीं जानता, वरना यूं आपके मुंह न लगता. इसे क्षमा कीजिए, छोटों का कुसूर बड़े माफ किया करते हैं. आपका अपराधी मैं हूं, मुझे जो दंड चाहें, दें. आपके सामने सिर झुका हुआ है. राम की यह आदरपूर्ण बातचीत सुन कर परशुराम नर्म पड़े.

सबसे ऊपर रखी पिता की आज्ञा

अपने लिए वनवास का आदेश सुनकर राम ने राजा दशरथ के चरणों में सिर झुकाया, माता कैकेयी को प्रणाम किया और कमरे से बाहर निकले. राम यहां से कौशल्या के पास पहुंचे. वे उस समय निर्धनों को अन्न और वस्त्र देने का प्रबंध कर रही थीं. राम ने कहा- माता जी, महाराज ने अब भरत को राज देने का निर्णय किया है और मुझे चौदह बरस के बनवास की आज्ञा दी है. मैं आपसे आज्ञा लेने आया हूं, आज ही अयोध्या से चला जाऊंगा. लक्ष्मण भी वहीं खड़े थे. यह सुनते ही उनके त्योरियों पर बल पड़ गये. बोले- यह नहीं हो सकता. आप क्षत्रिय हैं. क्षत्रिय का धर्म है, अपने अधिकार के लिए युद्ध करना. सारी अयोध्या, सारा कोसल आपकी ओर है. राम ने लक्ष्मण की ओर प्रेमपूर्ण नेत्रों से देख कर कहा- भैया, कैसी बातें करते हो! रघुकुल में जन्म लेकर पिता की आज्ञा न मानूं, तो संसार को क्या मुंह दिखाऊंगा.

अद्भुत पराक्रम से किया खर-दूषण वध

लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटने पर उसके भाई खर और दूषण क्रोध से पागल हो गये. चौदह हजार सैनिक राम और लक्ष्मण को दंड देने चले. राम ने जब राक्षसों की यह सेना आते देखी, तो लक्ष्मण को सीताजी की रक्षा के लिए छोड़कर उनका सामना करने के लिए तैयार हो गये. रामचंद्र के अग्निबाणों के सम्मुख राक्षसों के बाण बेकाम हो गये. खर और दूषण ने जब देखा कि चौदह हजार सेना बात की बात में नष्ट हो गयी, तो उन्हें विश्वास हो गया कि राम व लक्ष्मण बड़े वीर हैं. रातभर तैयारी के बाद अगली सुबह फिर हमला बोला. राम-लक्ष्मण एक पहाड़ पर चढ़ कर राक्षसों पर तीर चलाने लगे. अगस्त्य ऋषि के दिये तरकश के तीर कभी समाप्त न होते थे. फल यह हुआ कि राक्षसों के पांव उखड़ गये और खर-दूषण मारे गये.

posted by ashish jha

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