इस्लाम में जल संरक्षण

मुसीबत में फंसे हुए किसी जरूरतमंद आदमी की मदद करो और लोगों को तकलीफ न दो : पैगंबर मुहम्मद (स)

By Prabhat Khabar News Desk | April 7, 2022 1:00 PM

डॉ शहाब आर्यन

पवित्र रमजान का महीना शुरू हो चुका है. अप्रैल की शिद्दत भरी गर्मी में दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह के हुक्म के मुताबिक उनकी इबादत में रोजे, नमाजों और तरावीह में लीन है. गर्म हवाओं के थपेड़े एक तरफ मोमिन के सब्र और ईमान का इम्तेहान ले रहा है, तो दूसरी तरफ प्यास की शिद्दत बढ़ा कर पानी का महत्व भी बता रहा है.

इस्लाम में पानी को पाक और पाक करनेवाली चीज माना गया है. नापाकी की हालत में पानी से स्नान अनिवार्य है, वहीं नमाज या कुरआन मजीद की तिलावत से पहले पानी से वजू करना जरूरी माना गया है. पवित्र कुरआन में पानी का उल्लेख अनेकों बार हुआ है। -हमने आसमान से पाक पानी उतारा. (सूरह फुरकान 25:48). दूसरी जगह कहा गया-अल्लाह ने हर जानदार चीज पानी से बनायी. (सूरह अम्बिया-21:30).

जाहिर है पानी समस्त जीव जगत के लिए बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण है. अत: पानी की बर्बादी करना इस्लाम की नजर में घृणित कार्य है. एक बार सहाबी साद बिन अबी वक्कास वजू कर रहे थे, जिसमें वह कुछ ज्यादा पानी का उपयोग कर रहे थे. उन्हें ऐसा करते देख पैगम्बर (स) ने फरमाया- साद, पानी बर्बाद न करो, यहां तक कि अगर तुम बहती हुई नहर के किनारे बैठे हो. वजू जैसे धार्मिक महत्व के काम में भी पानी की बर्बादी को रोकने की हिदायत हमें जल संरक्षण सिखाता है. जल स्त्रोतों को प्रदूषित करना भी पानी की बर्बादी है, क्योंकि प्रदूषित जल जीव-जंतुओं और इंसानों के लिए अनुपयोगी हो जाता है.

आज शुद्ध जल की कमी और प्रदूषित जल स्त्रोत गंभीर वैश्विक समस्या है. पानी के लिए तरसती बड़ी आबादी और पानी के लिए अगले विश्व युद्ध की भविष्यवाणी स्थिति की भयावह रूप को दिखाती है. ऐसे में पवित्र कुरआन और पैगंबर (स) की हिदायतों का अक्षरश: पालन प्रासंगिक है.

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