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Rangbhari Ekadashi 2024: पंच ज्ञानेंद्रियों को सकारात्मकता के रंग से रंगने का अवसर है रंगभरी एकादशी, जानें इसका धार्मिक महत्व

Rangbhari Ekadashi 2024: धर्मग्रंथों में पंचमुखी महादेव तथा पंचमुखी हनुमान जी की पूजा का भी विधान है. यह पूजा मनुष्य की इन्हीं पंचज्ञानेंद्रियों को सकारात्मक बनाने का संदेश है, क्योंकि पंचज्ञानेंद्रियां यदि पंच पांडवों की तरह रहेंगी.

By Radheshyam Kushwaha | March 18, 2024 8:55 PM

सलिल पांडेय
Rangbhari Ekadashi 2024: होली के पांच दिनों पूर्व की तिथि रंगभरी एकादशी की तिथि होती है, जिसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं, जो इस वर्ष मंगलवार, 19 मार्च को है. इस तिथि के लिए प्रयुक्त दोनों शब्दों का जीवन से गहरा संबंध है. रंगभरी एकादशी शब्द का अर्थ ‘रंगों से भर देना’ झलकता है. इसका निहितार्थ है कि जीवन उल्लास, उमंग तथा उत्साह के रंग से भरा रहे.

पंच ज्ञानेंद्रियों को सकारात्मक के रंग से भरने का अवसर

जिस प्रकार बाग-बगीचे में या प्रातःकाल एवं संध्याकाल के सूर्य की किरणों से आकाश में अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं, उसी प्रकार जीवन में सद्भाव, प्रेम, करुणा, दया तथा सकारात्मकता का आंतरिक रंग भरा रहे, तो जीवन खुशियों के रंग से भर जाता है, क्योंकि नकारात्मकता का रंग जीवन को अधोगति की ओर ले जाता है. पांच दिन पूर्व का यह पर्व मनुष्य की पंच ज्ञानेंद्रियों को सकारात्मक रंग भरने के कदम की ओर संकेत देता है. दृश्य, श्रवण, श्वांस, स्वाद तथा स्पर्श का रंग अनुकूल रहने पर ही जीवन आह्लादित हो सकता है. इसी तरह पंचमहाभूतों- ‘क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर’ भी अनुकूल स्थिति में जब रहते हैं तभी तन-मन स्वस्थ रहता है.

विपरीत स्थिति में धृतराष्ट्र की तरह अंधा हो जाता है मन

धर्मग्रंथों में पंचमुखी महादेव तथा पंचमुखी हनुमान जी की पूजा का भी विधान है. यह पूजा मनुष्य की इन्हीं पंचज्ञानेंद्रियों को सकारात्मक बनाने का संदेश है, क्योंकि पंचज्ञानेंद्रियां यदि पंच पांडवों की तरह रहेंगी, तो विवेक रूपी श्रीकृष्ण स्वतः मन-मस्तिष्क में प्रकट हो जायेंगे, जबकि विपरीत स्थिति में धृतराष्ट्र की तरह मन अंधा हो जायेगा तथा भ्रम, भय और स्वार्थ के अनेकानेक भाव हाथ-पांव पसारने लग जायेंगे. फिर तो युद्ध होना ही है और इस युद्ध में धृतराष्ट्रीय परिवार का अंत भी होना सुनिश्चित है.

सनातन संस्कृति में मां तथा जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ स्थान

रंगभरी एकादशी का दूसरा नाम महर्षियों ने आमलकी एकादशी कहा. आमलकी धात्री-फल को कहते हैं. धात्री का अर्थ ‘मां’ कहा गया है. सनातन संस्कृति में तो मां का दर्जा भगवान से भी ऊपर रखा गया है. ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ श्लोक में जन्म देने वाली मां तथा जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ कहा गया है. जन्मभूमि को अंत:करण भी मानना चाहिए, क्योंकि जीवन में जो भी मनुष्य कार्य करता है, उसका प्रथम भाव मन में ही जन्म लेता है.

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सदाचार तथा सत्कार्यों के अनुकूल रंग-गुलाल का करें प्रयोग

आमलकी फल में आंवला, श्रीफल तथा अन्य लाभप्रद फलों को शामिल किया गया है. फल प्राप्ति के पहले वृक्ष का रोपण और सिंचन किया जाता है, इसलिए आमलकी एकादशी का आशय यह भी है कि यदि जीवन को स्नेह-प्रेम आदि के अनुकूल रंगों से भरना है, तो उसके लिए सदाचार तथा सत्कार्यों के अनुकूल रंग-गुलाल, अबीर का प्रयोग करना चाहिए. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के ‘कर्म’ के सिद्धांतों को आत्मसात कर अपने हाथों को पिचकारी बनाना चाहिए, फिर तो नकारात्मकता की होलिका जल जायेगी तथा खुशियों का प्रह्लाद जीवन भर ही नहीं, पीढ़ी-दर-पीढ़ी आह्लाद प्रदान करता रहेगा.

महादेव और शक्ति माता पार्वती ने एक-दूसरे पर डाला था रंग

धार्मिक कथाओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी को कैलाश पर्वत पर देवों के देव महादेव और उनकी अर्धांगिनी पार्वती ने आपस में एक-दूसरे पर रंग डाला था. इस कथा का निहतार्थ यही है कि कर्मपक्ष के समाधि के देवता महादेव और उनकी उनकी आह्लादिनी शक्ति माता पार्वती ने एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर दिया. इससे यही प्रतीत होता है कि अंतर्जगत की वाह्य आकर्षणों से विरत होकर जब मनुष्य अंतर्जगत की ओर उन्मुख होकर शांत-चित्त भाव में होता है तब आह्लाद और उमंग की शक्ति स्वतः मिलने लगती है. दस इंद्रियों में पंच ज्ञानेंद्रियां एवं पंच कर्मेंद्रियां जब एकादश इंद्रिय मन की ओर यात्रा करती हैं, तो जीवन में रंगों की बहार आ ही जाती है.
प्रस्तुति : रजनीकांत पांडेय

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