रवि प्रदोष व्रत से दूर हाेते हैं रोग,जानें तिथि और पौराणिक महत्व

एकादशी की तरह एक वर्ष में 24 प्रदोष होते हैं. जो भी प्रदोष जिस वार को आता है उसका विशेष फल होता है. हर वार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत अलग- अलग महत्व रखता है. इस बार रविवार को प्रदोष आ रहा है. हमारे शास्त्रों में प्रदोष व्रत को काफी महत्व दिया गया है.रविवार को आने वाला यह प्रदोष व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसे रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने वालों की स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर हो जाती हैं .जानिए रविवार को प्रदोष का व्रत रखने के फायदे

By ThakurShaktilochan Sandilya | April 3, 2020 11:29 AM

एकादशी की तरह एक वर्ष में 24 प्रदोष होते हैं. जो भी प्रदोष जिस वार को आता है उसका विशेष फल होता है. हर वार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत अलग- अलग महत्व रखता है. इस बार रविवार को प्रदोष आ रहा है. हमारे शास्त्रों में प्रदोष व्रत को काफी महत्व दिया गया है.रविवार को आने वाला यह प्रदोष व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसे रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने वालों की स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर हो जाती हैं .जानिए रविवार को प्रदोष का व्रत रखने के फायदे –

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रविवार को प्रदोष का व्रत रखने के फायदे :

1. रवि प्रदोष का व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति, यश , निरोग जीवन और लंबी आयु प्राप्त होती है.

2. रवि प्रदोष का संबंध सूर्य से होता है. अत: चंद्रमा के साथ सूर्य भी आपके जीवन में सक्रिय रहता है. इससे चंद्र और सूर्य अच्‍छा फल देने लगते हैं. जिस जातक कुंडली में सुर्य कमजोर हो उसे यह व्रत करने से उसकी सूर्य संबंधी सारी परेशानियां दूर हो जाती है.

3. यह प्रदोष सूर्य से संबंधित है. सुर्य को ग्रहों का स्वामी कहा जाता है. यह नाम, यश और सम्मान भी दिलाता है. अगर आपकी कुंडली में अपयश के योग हो तो यह प्रदोष व्रत जरुर करें.

4. पौराणिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति प्रदोष का व्रत करता रहता है वह संकटों से दूर रहता है और उनके जीवन में धन और यश बना रहता है.

कब है रवि प्रदोष व्रत :

रवि प्रदोष व्रत का दिन – 05 अप्रैल 2020 ( रविवार )

राहुकाल : 05:07 PM से 06:41 PM

रवि प्रदोष व्रत कथा :

एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस सभा में व्यासजी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूतजी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे.सूतजी को आते हुए देखकर शौनकादि 88,000 ऋषि-मुनियों ने खड़े होकर उन्हे दंडवत प्रणाम किया. महाज्ञानी सूतजी ने भक्तिभाव से ऋषियों को हृदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया. विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गए.शौनकादि ऋषि ने पूछा- हे पूज्यवर महामते! कृपया यह बताने का कष्ट करें कि मंगलप्रद, कष्ट निवारक यह व्रत सबसे पहले किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ. श्री सूतजी बोले- आप सभी शिव के परम भक्त हैं, आपकी भक्ति को देखकर मैं व्रती मनुष्यों की कथा कहता हूं। ध्यान से सुनो.एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था.उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी. उसे एक ही पुत्ररत्न था. एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया. दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बता दो. बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं.हमारे पास धन कहां है?तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं.यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे. इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया. बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा. नगर के पास एक बरगद का पेड़ था. वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया. उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए.राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया. ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई. अगले दिन प्रदोष व्रत था. ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी. भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली.उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा. प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया. बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई. सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश देकर उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया.उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे. राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो आपका बालक निर्दोष है. राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें. भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा.

अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत करता है, वह प्रसन्न व निरोग होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है.

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