Ravidas Jayanti 2025, Sant Ravidas ke Dohe: आज बुधवार, 12 फरवरी को रविदास जयंती मनाई जा रही है. संत रविदास ने अपने लेखन के माध्यम से अनेक आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश प्रस्तुत किए, जो जीवन में प्रेरणा का स्रोत बनते हैं. यदि आप नए वर्ष में संत रविदास के दोहों से मिली शिक्षाओं को अपने जीवन में शामिल करेंगे, तो आप अनेक कठिनाइयों से बच सकेंगे और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझ पाएंगे. यहां प्रस्तुत हैं रविदास के कुछ दोहे
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ: जिस व्यक्ति का मन पवित्र और निर्मल होता है, उसके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य मां गंगा के समान पवित्र होता है.
Ravidas Jayanti 2025 पर यहां से देखें संत रविदास के प्रेरणादायक कोट्स
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
अर्थ: जैसे केले के तने को छिलने पर पत्तों के नीचे और पत्ते मिलते हैं, अंततः कुछ भी नहीं बचता और पूरा पेड़ समाप्त हो जाता है. इसी प्रकार, मनुष्यों को जातियों में विभाजित किया गया है. यदि जातियों के आधार पर मनुष्यों को अलग किया जाए, तो वे भी केले के पत्तों की तरह समाप्त हो जाते हैं, लेकिन जाति का अस्तित्व बना रहता है. रविदास का कहना है कि जब तक जाति का अंत नहीं होगा, तब तक मनुष्य एक-दूसरे से नहीं जुड़ सकते.
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
अर्थ: ईश्वर की आराधना भाग्य के माध्यम से प्राप्त होती है. जो व्यक्ति अभिमान से मुक्त होता है, वह जीवन में अवश्य सफल होता है. ठीक उसी प्रकार, जैसे एक बड़ा हाथी शक्कर के दानों को नहीं उठा सकता, वहीं एक छोटी चींटी उन्हें सरलता से इकट्ठा कर लेती है.
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
अर्थ: किसी व्यक्ति की पूजा केवल इसलिए नहीं की जानी चाहिए क्योंकि उसका जन्म उच्च जाति में हुआ है. यदि व्यक्ति में गुणों की कमी है, तो उसे किसी भी जाति का होने पर भी सम्मान नहीं मिलना चाहिए. इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति गुणवान है, तो उसका सम्मान अवश्य किया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति से संबंधित हो. रविदास इस दोहे के माध्यम से यह स्पष्ट करते हैं कि व्यक्ति के गुण ही उसे पूजनीय बनाते हैं, जाति नहीं.
संत रविदास के 20 प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ नीचे दिए गए हैं:
1. मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ: यदि मन शुद्ध है, तो हर स्थान पवित्र है। बाहरी आडंबर की आवश्यकता नहीं।
2. जात-पात के फेर में, उरझि रहा संसार।
यहि कारण बाम्हन भयो, काहे न भयो सार॥
अर्थ: संसार जात-पात में उलझा हुआ है, लेकिन जाति से नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों से महान बना जाता है।
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय॥
अर्थ: मधुर वचन बोलने से न केवल दूसरों को शांति मिलती है, बल्कि हमें भी सुख मिलता है।
4. अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।
अवधू कौन दिशा को जाऊं॥
अर्थ: जब मैंने राम का नाम स्मरण करना शुरू कर दिया, तो अब इसे छोड़ना असंभव है।
5. रविदास जन्म के कारणे, होत न कोऊ नीच।
नर को नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच॥
अर्थ: कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता, बल्कि उसके गलत कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।
6. काया कोरा कपड़ा, जब लग मैला न होय।
कर्म बिना जो राखिए, पावै सम्मान न कोय॥
अर्थ: जैसे साफ कपड़ा तब तक कीमती रहता है जब तक वह गंदा न हो, वैसे ही बिना कर्म के कोई सम्मान नहीं पा सकता।
7. हरि से संत संत से सब जग, कहि रविदास विचार।
संतों के संग हरि मिले, ज्यों कमल बिनु वारि॥
अर्थ: संतों का संग करने से भगवान की प्राप्ति होती है, जैसे कमल को पानी की जरूरत होती है।
8. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माहीं॥
अर्थ: जब तक अहंकार था, तब तक ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। जब अहंकार मिटा, तब ईश्वर की रोशनी मिल गई।
9. गरीब निवाज गुसाईंया, मोरे दुखिया पर दया करो।
जैसे पतित पावन हरि, पापी को उद्धार करो॥
अर्थ: हे भगवान, जैसे आपने पापियों का उद्धार किया, वैसे ही मुझ पर भी कृपा करें।
10. साधो सहज समाधि भली।
जहाँ न सुरति, न असुरति, न हर्ष न विषाद गली॥
अर्थ: सरल और स्वाभाविक ध्यान सबसे अच्छा है, जहाँ न खुशी है, न दुख, बस शांति है।
11. रामानंद संतन सो कहियो, राम सनेही होय।
अन्य छाड़ि हरि भजिए, तऊ काज सफ़ल होय॥
अर्थ: सच्ची भक्ति में केवल भगवान से प्रेम करना चाहिए, तभी जीवन सफल होगा।
12. मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में॥
अर्थ: भगवान को बाहर मत खोजो, वे तुम्हारे भीतर ही हैं।
13. कह रविदास खलास चमारा, राम भजे सो पार उतारा।
हमरे राम रहीम करीमा, सब संतन के संगी सारा॥
अर्थ: जो भी राम का भजन करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है।
14. जो तू बाम्हन बाम्हनी जाया, तेरो रक्त नीर नाया।
जो मैं शूद्र शूद्रनी जाया, मोरो रक्त नीर नाया॥
अर्थ: ब्राह्मण और शूद्र दोनों का खून और शरीर एक जैसा होता है, फिर भेदभाव क्यों?
15. राम नाम उर में बसा, कहि रविदास विचार।
अब कैसे छूटे रामजी, प्रेम गाढ़ियो सार॥
अर्थ: जब से मैंने भगवान राम का नाम हृदय में बसा लिया, अब उसे छोड़ना असंभव है।
16. परधन परस्त्री की निंदा, नहि भलो मन लेई।
कह रविदास करम की गति, पंडित नहीं कहि देई॥
अर्थ: दूसरों के धन और स्त्री की बुरी बात नहीं करनी चाहिए।
17. जाति-पांति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई॥
अर्थ: भगवान के भक्त के लिए जाति कोई मायने नहीं रखती।
18. जो भरसे राम के, ताके काज सवारी।
पथ में कंकर होई, तो भी नंगे पग जाई॥
अर्थ: जो ईश्वर पर विश्वास करता है, उसके सभी कार्य पूरे होते हैं, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं।
19. संत के संग लहीये, साधु के संग बैठिये।
चोर बेईमान से रहीये, तापस के निकट रहीये॥
अर्थ: सज्जनों का साथ करना चाहिए और बुरे लोगों से दूर रहना चाहिए।
20. जिन हरि का रूप निहारा, तिन की मिटे न माया।
अर्थ: जो लोग भगवान के स्वरूप को देख लेते हैं, उन्हें माया नहीं बांध सकती।
संत रविदास के ये दोहे भक्ति, मानवता और समानता पर आधारित हैं।
क्या आपको इनसे जुड़ा कोई विशेष दोहा चाहिए?