Acharya Vidyasagar Ji Maharaj: जैन धर्म में दिगंबर मुनि एवं महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ब्रह्मलीन हो गए है. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया है. उन्होंने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में 17 फरवरी शनिवार की रात 2 बजकर 35 मिनट पर समाधि ली. जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी पर्वत पर रविवार को पंचतत्व में विलीन हो गए, इस दौरान बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद रहेंगे. बता दें कि श्री विद्यासागर जी महाराज ने आचार्य पद का त्याग कर दिया था और तीन दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था. तीन दिन उपवास के बाद उन्होंने शरीर त्याग दिए. विद्यासागर जी महाराज के देह त्यागने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शोक व्यक्त किया है.
‘स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे विद्यासागर महाराज जी’
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है. लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे. वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा. पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी, तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था. समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा. वहीं X प्लेटफॉर्म पर अपनी पोस्ट में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जैसे महापुरुष का ब्रह्मलीन होना, देश और समाज के लिए अपूरणीय क्षति है. उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक सिर्फ मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी. मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि ऐसे युगमनीषी का मुझे सान्निध्य, स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा. मानवता के सच्चे उपासक आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है’.
‘वज्र के समान कठोर साधक थे विद्यासागर जी महाराज’
वे सृष्टि के हित और हर व्यक्ति के कल्याण के अपने संकल्प के प्रति निःस्वार्थ भाव से संकल्पित रहे. विद्यासागर जी महाराज ने एक आचार्य, योगी, चिंतक, दार्शनिक और समाजसेवी, इन सभी भूमिकाओं में समाज का मार्गदर्शन किया. वे बाहर से सहज, सरल और सौम्य थे, लेकिन अंतर्मन से वज्र के समान कठोर साधक थे. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य व गरीबों के कल्याण के कार्यों से यह दिखाया कि कैसे मानवता की सेवा और सांस्कृतिक जागरण के कार्य एक साथ किये जा सकते हैं. आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन युगों-युगों तक ध्रुवतारे के समान भावी पीढ़ियों का पथ प्रदर्शित करता रहेगा. मैं उनके सभी अनुयायियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं.
कैसी थी आचार्य विद्यासागर महाराज जी की दिनचर्या
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में 1946 में शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्टूबर को हुआ था. आचार्य विद्यासागर महाराज जी के 3 भाई और दो बहनें हैं. तीनों भाई में से 2 भाई आज मुनि हैं और भाई महावीर प्रसाद भी धर्म कार्य में लगे हुए हैं. आचार्य विद्यासागर महाराज की बहने स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था. जानकारी के अनुसार आचार्य विद्यासागर महाराज अबतक 500 से ज्यादा दिक्षा दे चुके हैं. हाल ही में 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया. आचार्य श्री भीषण सर्दी-गर्मी में कपड़ा, कंबल, चटाई, रजाई, पंखा, कूलर, हीटर और एसी आदि का उपयोग नहीं करते थे. लकड़ी के पाटे पर ही बैठकर सुबह से शाम हो जाती थी. वे महज तीन से चार घंटे की अल्प निद्रा लेते थे. शेष समय ध्यान में लीन रहते थे. वे आहार में केवल दाल, रोटी, चावल और पानी लेते थे. छह रसों में केवल घी ग्रहण करते थे.