Sarva Pitru Amavasya 2022: ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृलोक से पितर सूक्ष्म रूप में धरती पर विचरते हैं और अपने वंशजों से अन्न-पान की आशा लगाये रहते हैं. जो उनके निमित्त दान-पुण्य नहीं करता, वे उससे रूठकर एवं शाप दे निराश हो लौट जाते हैं. इसमें गयाश्राद्ध का अधिक महत्व माना जाता है. आज सर्वपितृ अमावस्या है. जानें गया जी में कैसे शुरू हुआ पित्तरों का पिंडदान, श्राद्ध पूरी कहानी.
बिहार के गया नगर की पितृतीर्थ के रूप में बड़ी ख्याति है. गयातीर्थ का माहात्म्य वायु, अग्नि, वराह, कूर्म, गरुड, भविष्य, वामन, नारद, स्कंद एवं पद्म- इन पुराणों के अतिरिक्त महाभारत में भी वर्णित है. धार्मिक मान्यतानुसार, यह स्थान गय नामक तपस्वी एवं विष्णुभक्त असुर के नाम पर है. वह श्रीहरि की कृपा से इतना पवित्र हो गया था कि उसके दर्शनमात्र से ही लोगों का उद्वार हो जाया करता था. विधाता को अपने विधान में बाधा दिखाई देने लगी. वह देवों के साथ नारायण के पास गये और अपनी समस्या कह सुनायी. तब वासुदेव ने उनसे कहा कि आप उससे यज्ञ करने के लिए उसका विशाल शरीर मांग लें. उसी पर यज्ञ करें.
ब्रह्माजी की मांग पर उसने यज्ञार्थ देहदान करना सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह उत्तर सिर एवं दक्षिण पैर कर लेट गया. सभी देवताओं के साथ यज्ञविधि चलने लगी कि उसकी देह इधर-उधर होने लगी. ऐसे में चिंतित ब्रह्माजी ने भगवान को याद किया. वह उपस्थित हो गयासुर से स्थिर होने को बोले तो उसने दो वर मांगे. प्रथमत: गदाधर विष्णुसहित सभी देवता एवं तीर्थ मुझ पर कृपारूप से निवास करें और दूसरा यह कि यहां जो भी अपने पितरों का श्राद्ध करें, उनके पितर नरक अथवा प्रेतयोनि को प्राप्त न हों. उन्हें उत्तम लोक की प्राप्ति हो तथा श्राद्धकर्ता का भी कल्याण हो.
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भगवान ने उसे मनोवांछित वर देकर उसके शरीररूपी भूभाग को महातीर्थ बना दिया. इसी कारण पुराण-मत से यहां ऐसा एक भी स्थान नहीं, जो तीर्थरूप न हो.
चूंकि श्रीहरि का गयासुर पर विशेष अनुग्रह था, इसीलिए वह यहां के प्रधान देवता हैं. यहां विष्णुपद-मंदिर की विशेष प्रतिष्ठा है, इसलिए कहा गया है –
गयायां पितृरूपेण स्वयमेव जनार्दन:। अर्थात् गया में पितरों के रूप में स्वयं भगवान विष्णु विद्यमान हैं. इसी तरह ‘कूर्म’ पुराण में कहा गया है कि ‘वे धन्य हैं, जो गयाश्राद्ध करके अपने पितृकुल एवं मातृकुल की सात पीढ़ियों का उद्वार कर देते हैं.’
(साभार : सांस्कृतिक तत्वबोध)