Sawan 2023: भगवान भोलेनाथ की भक्ति का पवित्र माह श्रावण 4 जुलाई से शुरू होने जा रहा है. खास है कि इस बार सावन दो महीने का होने वाला है. यानी इस बार सावन में मलमास लग रहा है, जिस कारण भोलेनाथ के भक्तों को उनकी उपासना करने के लिए 8 सोमवार मिलेंगे. वस्तुतः सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर सौर मासों एवं चांद्र मासों को संतुलित करने की यह ज्योतिषीय प्रक्रिया है. इसी कारण हमारे पर्व-त्योहार भी अपने मौसम के अनुसार होते हैं. सावन में मलमास का यह संयोग 19 वर्षों बाद बना है, जो अब आगे वर्ष 2050 में देखने को मिलेगा.
इस बार सावन में मलमास लग रहा है. मतलब कि यह महीना दो अमावस्याओं और दो पूर्णिमाओं का होगा. इनमें प्रथम कृष्णपक्ष (4 जुलाई से 17 जुलाई तक) शुद्ध श्रावण तथा अंतिम शुक्लपक्ष (17 अगस्त से 31 अगस्त तक) भी शुद्ध माना जायेगा. इन दोनों के बीच आये श्रावण शुक्लपक्ष तथा श्रावण कृष्णपक्ष (18 जुलाई से 16 अगस्त तक) को ही अधिमास व मलमास कहा जायेगा.
वस्तुतः सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर सौर मासों (मेष, वृष आदि की संक्रांतियों) एवं चंद्र मासों (चैत्र, वैशाख आदि महीनों) को संतुलित करने की यह ज्योतिषीय प्रक्रिया है. इसी कारण हमारे पर्व-त्योहार भी अपने मौसम के अनुसार होते हैं, नहीं तो हमारे होली, दिवाली-जैसे उत्सव कभी बरसात में होते तो कभी जाड़े व गरमी में.
यह अधिमास कोई नयी चीज नहीं. ज्योतिष गणना के अनुसार, यह हर तीसरे साल के भीतर कोई-न-कोई अधिमास आता ही है, या यों कहें कि बत्तीस महीने सोलह दिन तथा चार घड़ी (1 घंटा 36 मिनट) बीतने पर अधिमास आता है. वेदांग ज्योतिष के मतानुसार, एक युगवर्ष (पांच वर्षों का एक मान) में दो मलमास होते हैं. इसकी प्राचीनता भी सिद्ध है- ‘वेदमासो धृतव्रतो द्वादश प्रजावतः। वेदा य उपजायते’।।
तिथियों के घटने-बढ़ने एवं ग्रह-नक्षत्रों के व्यतिक्रम से प्रत्येक पांचवे वर्ष दो अधिमास हो जाते हैं. अब देखिए; गत 2020 ई0 में आश्विन में मलमास लगा था और अब 2023 में सावन में. फिर आगामी 2026 ई0 में जेठ में लगेगा. इस तरह वैदिकयुग से आजतक हमारा गणित अधिमास का समान रूप से सम्मान करता आ रहा है. सावन में मलमास की बात की जाये और अपने स्वातंत्र्य वर्ष से देखा जाये तो वर्ष 1947, 1958, 1966, 1985 तथा 2004 में भी यह रहा. यहां तक कि अधिमासीय श्रावण कृष्ण त्रयोदशी, उपरांत चतुर्दशी गुरुवार/ शुक्रवार को ही अपना देश स्वतंत्र हुआ था. 2023 के बाद अब यह श्रावण मासीय अधिमास 2050 ई0 में आयेगा.
पहले जा कि मलमास के पर्याय हैं- अधिकमास, अधिमास, मलिम्लुच, नपुंसक, संसर्प एवं असंक्रान्त. अधिकमास व अधिमास का अर्थ है- अधिक महीना. जब बारह ही महीनों का साल होता है तो अधिक कैसे और क्यों? मलिम्लुच का अर्थ है- जो मलयुक्त होता है (मली सन् म्लोचति/ गच्छतीति). अब नपुंसक नाम क्यों? तो; नये शुभ कर्मों के सुप्रभाव में यह निष्क्रिय मास होता है. संसर्प क्यों? तो; सर्पिल चाल की तरह होने से अब अंतिम नाम देखें, तो स्पष्ट होता है कि जिस महीने संक्रांति न हो. यही उत्तर है. कहा भी गया है- ‘यस्मिन् मासे नो संक्रान्तिः सोsधिमासो निगद्यते’।
दरअसल; चैत्र से फागुन तक बारह महीनों का वर्ष चंद्रमा से संबंधित होता है. यह चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है. वहीं सूर्य से संबंधित वर्ष मेष से मीन तक के बारह महीने 365 दिन 6 घंटे एवं कुछ सेकेंड का होता है. ऐसे में सूर्य-चंद्र संबंधी वर्ष-निर्माण में जो दिनादि बचे रहते हैं, वे ही इकट्ठे होकर अधिक होने से अधिमास तथा वर्षमल होने से मलमास कहलाते हैं. संक्रांति का तात्पर्य सूर्य का राशि-परिवर्तन. सूर्य लगभग एक महीने में एक राशि से दूसरी राशि पर गमन करते हैं, परंतु; जिस महीने मलमास होता है, उस मलमास में सूर्य की कोई संक्रांति नहीं होती. इस पर भी दर्शद्वय की बात आयी है, यानी एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक सूर्य-संक्रांति का न होना. अब उदाहरण के रूप में देखें तो इस बार श्रावण अमावस्या (शुद्ध), सोमवार, यानी 17 जुलाई को कर्क की संक्रांति अपराह्ण 3.53 में हो रही है. पुनः शुद्ध श्रावण शुक्ल प्रतिपदा-द्वितीया, गुरुवार (17/18 अगस्त) को रात्रि 3.27 बजे सिंह की संक्रांति हो रही है.
मलमास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं. मान्यता है कि गोलोकवासी श्रीकृष्ण ने इसे अपना नाम देकर इसका मान बढ़ाया. इस मास में संयम-पूर्वक प्रातःस्नान, श्रीहरि का आराधन एवं सायं दीपदान विशेष फलदायी बताये गये हैं. लेकिन; यह भी कहा गया है- ‘तत्र मंगल-कार्याणि नैव कुर्यात् कदाचन’। अर्थात्; इसमें कोई मंगल कार्य न करें. अर्थात् अधिमास में दान, व्रत, यज्ञ आदि शुभ कार्य वर्जित हैं- ‘दान-व्रतादि- यज्ञादि- वर्ज्यं तत्राधिमासिके’। लल्ल का मत है कि इसमें विवाह, यज्ञ, उत्सव आदि नहीं करना चाहिए. आचार्यों का मत है कि नित्य कर्मों में संध्या, पूजा आदि दैनिक कृत्य तथा ग्रहण आदि होने पर तत्संबंधी स्नान, दानादि करना-ही-करना है, स्वास्थ्य-संबंधी धार्मिक कृत्य काम्य होने पर भी करना है. हां; जो अनुष्ठान शुद्ध मास से प्रारंभ हैं, वे लगातार अधिमास में भी चल सकते हैं, हां; कुछ लोग कहते हैं कि इस बार दुमास लगा है, तो सालभर कोई नया कार्य नहीं होगा. ऐसा नहीं है. ऐसा होता तो उस साल विवाह, गृहप्रवेश आदि के मुहूर्त होते ही नहीं. केवल अधिमास में ही शुभ कार्य वर्जित हैं, सालभर नहीं.
मार्कण्डेय शारदेय
(ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)