Sawan Somvar Vrat Puja Vidhi, Katha, Muhurat, aarti And Significance: श्रावण मास का महीना शुरू हो चुका है. कल इस महीने का दूसरा सोमवार है. सावन सोमवार व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. क्योंकि सावन और सोमवार दोनों ही भगवान शिव की पूजा के लिए खास होते है. मान्यताओं अनुसार सावन सोमवार व्रत रखने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. आइए जानते है इस व्रत की पूजा विधि, कथा, आरती और इसका महत्व…
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सुबह जल्दी उठें और स्नान कर साफ सुथरे कपड़े धारण करें.
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पूजा स्थल को साफ कर वेदी स्थापित करें.
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इसके बाद व्रत का संकल्प लें
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सुबह शाम भगवान शिव की पूजा करें
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तिल के तेल का दीपक जलाएं और भगवान शिव को फूल अर्पित करें.
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भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें.
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शनि चालीसा का पाठ करें.
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शिवलिंग का जलाभिषेक करें और सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियां चढ़ाएं.
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सावन व्रत कथा का पाठ जरूर करें.
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शिव की आरती उतारें और भोग लगाएं.
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पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें.
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अंत में प्रसाद का वितरण करें.
सावन मास की दूसरी सोमवारी कृतिका नक्षत्र में प्रारंभ हो रही है और इस दिन कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि है. इस दिन बेहद खास संयोग बन रहा है. सोमवार के देवता चंद्र, कृत्तिका नक्षत्र का स्वामी सूर्य व राशि शुक्र है और नवमी तिथि की देवी हैं माता दुर्गा. इस बार का सोमवार शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस दिन सूर्यपूजा का भी महत्व रहेगा.
पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को कैलाशपति भगवान शिव जी ने पी लिया था. विष के प्रभाव से उनका शरीर बहुत ही अधिक गर्म हो गया था, जिससे शिवजी को काफी परेशानी होने लगी थी. भगवान शिव को इस परेशानी से बाहर निकालने के लिए इंद्रदेव ने जमकर वर्षा की. यह घटनाक्रम सावन के महीने में हुआ था. इस प्रकार से शिव जी ने विषपान करके सृष्टि की रक्षा की थी. तभी से यह मान्यता है कि सावन के महीने में शिव जी अपने भक्तों का कष्ट अति शीघ्र दूर कर देते हैं.
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
Posted by: Radheshyam Kushwaha