Adhik Maas Sawan Somwar 2023: सावन महीने में शिवजी की पूजा, व्रत, जलाभिषेक का महत्व होता है. खासकर सावन में पड़ने वाले सोमवार के दिन को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इस समय अधिकमास (मलमास) चल रहा है. 24 जुलाई को अधिकमास का पहला सोमवार है. अधिकमास लगने के कारण ही सावन दो महीने का हो गया है, जिसमें कुल 8 सोमवार पड़ेंगे. ऐसे में इस साल सावन में कुल 8 सावन सोमवारी व्रत रखे जाएंगे. इसमें 4 सोमवारी व्रत सावन के होंगे और 4 अधिकमास के होंगे. ऐसे में शिवभक्त असमंजस में हैं कि क्या अधिकमास में पड़ने वाले सावन सोमवारी का व्रत मान्य होगा या नहीं, आइये जानते हैं.
अधिकमास या मलमास में भले ही शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं. लेकिन व्रत, पूजा, उपासना और जप-तप की दृष्टि से इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. वहीं अधिकमास में भगवान विष्णु की पूजा का बहुत ही अधिक महत्व है. अधिकमास में भगवान शिव और विष्णु की पूजा-अर्चना, व्रत और जप से कई गुना अधिक फल मिलता है. ऐसे में इस साल सावन और अधिकमास में पड़ने वाले कुल 8 सोमवार के व्रत पूरे तरीके से मान्य होंगे. आप अपनी श्रद्धा और शक्ति से सभी व्रत रख सकते हैं.
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सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करें.
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मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक करें.
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इसके बाद दीप प्रज्वलित करें.
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सभी देवी-देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें.
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शिवलिंग में गंगा जल और दूध चढ़ाएं.
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भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें.
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भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करें.
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भगवान शिव को अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, दूध, पंचामृत, बेलपत्र, भांग, धतूरा इत्यादि जरूर अर्पित करें.
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पंचामृत से अभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जाप करते रहें.
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भगवान शिव की आरती करें और भोग भी लगाएं.
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इस दिन भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करें.
सावन सोमवार में शिव पूजा के लिए कच्चा दूध, गंगाजल, दही, घी, शहद, भांग, धतूरा, शक्कर, केसर, चंदन, बेलपत्र, अक्षत, भस्म, रुद्राक्ष, शमी पत्र, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, गाय का कच्चा दूध, तुलसी दल, मंदार पुष्प, ईख का रस, फल, कपूर, धूप, दीप, शिव के प्रिय फूल (हरसिंगार, आक, कनेर), इत्र, पंचमेवा, काला तिल, सोमवार व्रत कथा पुस्तक और शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि.
सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय माह है. इस पूरे महीने महादेव अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. वहीं अधिकमास भगवान विष्णु का प्रिय महीना है. सावन में पड़ने वाले सोमवार के दिन जो भक्त सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से व्रत रखकर महादेव की उपासना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है. मान्यता है कि अधिकमास में पड़ने वाले सोमवार का व्रत करने पर इसका विशेष लाभ मिलता है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार, वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियां भी सावन सोमवार व्रत के प्रभाव से दूर हो जाती है. मान्याता है कि जो लोग सावन सोमवार का व्रत रखते हैं, उन्हें 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है.
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥
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शिव चालीसा का पाठ करने के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर लें.
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इसके बाद साफ कपड़े पहनकर पूर्व दिशा में अपना मुख कर बैठ जाएं.
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पाठ शुरू करने से पहले घी का दीपक जलाएं.
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उसके बाद तांबे के लोटे में साफ जल में गंगाजल मिला कर रखें.
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शिव चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले श्री गणेश का श्लोक का जाप करें.
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इसके बाद शिव चालीसा का पाठ शुरू करें.
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥