Prabhat Khabar Special: सर्वोच्च सत्ता को पाने का एकमात्र मार्ग है निष्काम भक्ति

परमात्मा सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है, बिना किसी अपवाद के. कुछ लोग शिकायत करते हैं कि परमात्मा उन्हें भूल गये हैं, लेकिन यह कहना या सोचना मूर्खता है, क्योंकि कोई भी जीव ब्रह्म चक्र से बाहर नहीं है

By Prabhat Khabar News Desk | July 22, 2023 9:52 AM

मानसिक संघर्ष के कारण होने वाली भक्ति प्रकृति में परिवर्तनशील है. दरअसल, मानसिक संघर्ष से पैदा हुई भक्ति और नैतिक सिद्धांतों के पालन से पैदा हुई भक्ति के बीच बहुत कम अंतर है. ऐसे नैतिकतावादी भक्त भावुक भक्ति की मिठास को महसूस नहीं कर सकते, क्योंकि उनका मन सर्वोच्च सत्ता के विचारों से भरा नहीं है. उनका मन क्षुद्र विचारों से भरा हुआ है. उनका दृष्टिकोण किसी व्यापारी की तरह लेनदेन के बारे में सोचता है. सर्वोच्च सत्ता के विचार ही वास्तविक आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है.

महान का आकर्षण ही सच्ची भक्ति है. परमात्मा सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है, बिना किसी अपवाद के. कुछ लोग शिकायत करते हैं कि परमात्मा उन्हें भूल गये हैं, लेकिन यह कहना या सोचना मूर्खता है, क्योंकि कोई भी जीव ब्रह्म चक्र से बाहर नहीं है. ईश्वर अपने प्रेम के मधुर बंधन से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है. यह प्रेम कभी दर्द देने वाला लगता है, तो कभी सुख देने वाला. वह आपको दर्द या सुख के दायरे से बाहर नहीं करता है. यदि आप कभी देखते हैं कि ऐसा हुआ है, तो आप जानेंगे कि आपने अपनी पहचान खो दी है.

इसलिए जब एक सच्चे आध्यात्मिक साधक को खुशी का अनुभव होता है, तो वह कहेगा- ‘‘हे भगवान, आप कितने महान हैं कि आपने मेरे जैसे तुच्छ व्यक्ति को याद किया है. ” और जब वह दर्द का अनुभव करता है, तो कहता है- “हे भगवान, आप कितने महान हैं कि आप दुख के रूप में मेरे पास आये हैं, भले ही दूसरे मुझे अनदेखा कर दें.” एक निर्दोष व्यक्ति जिसे अदालती मामले में बरी कर दिया जाता है, उसे कहना चाहिए- ‘‘हे भगवान, आप कितने महान हैं! आपने न्याय को बनाये रखकर मेरा उद्धार किया है.”

और दोषी को यह कहना चाहिए- “हे प्रभु, तू कितना महान है! तुमने मुझे शारीरिक और मानसिक पीड़ा देकर मेरी गलतियों का एहसास कराया है.” और न्यायाधीश को कहना चाहिए- “हे भगवान, आपने मुझे न्याय का दाता बनाकर मेरा सम्मान किया है.”

यदि सूक्ष्म जगत पूरी तरह से विद्या के प्रति समर्पण कर देता है, तो वह निश्चित रूप से किसी दिन ब्रह्म को प्राप्त करेगा और यदि सूक्ष्म जगत, साधना के माध्यम से विद्या के प्रवाह को तेज कर सकता है, तो आपका परिणामी विद्या बल ब्रह्म के परिणामी विद्या बल में विलीन हो जायेगा. व्यक्तिगत जीवन में विद्या की यह सगुण खोज सर्वोच्च सत्ता की साधना है. लेकिन अगर कोई गलत तरीके से अविद्या के मार्ग का अनुसरण करता है, तो वह ब्रह्म की परिणामी विद्या शक्ति के विपरीत जाता है.

ब्रह्मांडीय इच्छा के विरुद्ध इस आंदोलन का परिणाम कभी अच्छा नहीं हो सकता. दार्शनिक रूप से इसे विनाश के रूप में जाना जाता है. इसलिए सगुण ब्रह्म की साधना करते समय विद्या बल को बढ़ाना होगा. ‘सा विद्या या विमुक्तये’ – विद्या वह है, जो मुक्ति दिलाती है. अब सवाल यह है कि सूक्ष्म जगत कितनी ताकत से आगे बढ़ सकता है? जब तक मनुष्य सर्वोच्च सत्ता के परिणामी विद्या बल के कारण आगे बढ़ते हैं, उन्हें भावपूर्ण भक्ति के साधक के रूप में माना जाता है.

उस चरण के दौरान परिणामी शक्ति की लहर भावपूर्ण भक्ति की लहर होती है. इस दौरान भक्त के मन में केवल एक ही इच्छा होती है- मुक्ति की इच्छा. इसके लिए जब वह स्वयं की अशुद्धियों को दूर कर लेता है, तो उसे रागात्मिका भक्ति कहा जाता है. अपितु साधना के उस चरण में वह मुक्ति की इच्छा भी नहीं रखता, बल्कि केवल परम पुरुष के लिए तरसता है. भक्ति केवल कठोर तपस्या के माध्यम से और जीवन भर के परिश्रम से अर्जित ज्ञान के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है. यहां तक कि अनपढ़ लोग भी अपनी भक्ति यात्रा को सार्थक कर सकते हैं.

शास्त्रों में पारंगत कोई महान विद्वान जब एक आम मनुष्य में भक्ति की ऊंचाई को देखता है, तो वह मूर्ख के समान नजर आता है. जब कोई आध्यात्मिक साधक भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो वह रागानुगा नामक भक्ति के एक चरण को प्राप्त करता है. यही मानसिक संघर्ष मुख्य रूप से बौद्धिक प्रगति की ओर ले जाता है. महान का आकर्षण मुख्य रूप से आध्यात्मिक प्रगति के मार्ग में होता है. महान के आकर्षण का अनुभव करने वाले व्यक्ति की साधना भावना पूर्ण समर्पण है. जो कोई निष्काम भाव से अपना सब कुछ समर्पित कर देता है, वही सर्वोच्च सत्ता को या तारक ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है.

प्रस्तुति : दिव्यचेतनानंद अवधूत

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