Hanuman Ji Ki Aarti: शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र और स्वर्ग के दण्डाधिकारी माने जाते हैं. शनि देव न्याय के देवता हैं. शनि देव कर्मफलदाता भी हैं. शनि महाराज किए गए कामों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करने वाले माने गए हैं. व्यक्ति पर शनि की अच्छी दृष्टि पड़ने पर उसके दिन सुधर जाते हैं. उसके कामों में तरक्की आती है. समाज में उचित मान-सम्मान और लोगों का विश्वास मिलता है, नौकरी या व्यापार में लाभ की प्राप्ति होती है. शनि देव की सच्चे मन और उचित विधि विधान से पूजा पाठ, चालीसा-आरती करने से शनि दोष से छुटकारा मिल जाता है. मान्यता हैं कि कोई भी पूजा आरती के बिना अधूरी रह जाती है. शनि देव के चालीसा या पाठ करने के बाद उनकी आरती करने से भक्तों को पूजा का पूरा फल मिलता है. आइए जानते हैं शनि देव की आरती क्या है…
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
शनि देव की जय…जय जय शनि देव महाराज…शनि देव की जय!!!
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शनिवार के दिन सुबह स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
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इसके बाद शनिदेव का ध्यान करें और पूजा एवं व्रत का संकल्प लें.
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शनिवार को पीपल के पेड़ (पीपल के पेड़ की परिक्रमा के लाभ) को जल अर्पित करें. शनि मंत्रों का जाप करें.
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काला तिल, सरसों का तेल, काला वस्त्र आदि शनिदेव को चढ़ाएं.
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शनिवार व्रत कथा सुने और शाम के समय शनिदेव की आरती उतारें.
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कुंडली में शुभ शनि व्यक्ति को उच्च पद प्रदान करते हैं. शनि की साढ़े साती और शनि ढ़ैय्या को कष्टकारी बताया गया है. शनि देव को तुला राशि सबसे प्रिय है. तुला राशि में शनि देव उच्च के माने जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब कोई राशि अपनी उच्च राशि में होती है तो अत्यंत शुभ फल प्रदान करती है. तुला राशि के लोगों को साढ़ेसाती और ढ़ैय्या तब तक परेशान नहीं करती जब तक उस व्यक्ति की कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति खराब न हो. शनि देव तुला राशि की बढ़ोतरी में विशेष योगदान देते हैं.