Shankaracharya Jayanti 2020 : भारत के चाराें कोनों में मठ की स्थापना कर हिंदू धर्म को किया था मजबूत, जानिए आदि शंकराचार्य के बारे में

shankaracharya jayanti 2020 : कल 28 अप्रैल को शंकराचार्य जयंती है.आदि शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में शिव भक्त रहे एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. भारत में आदि शंकराचार्य भरतीय दर्शन अद्वैत वेदांत के प्रचारक के रूप में जाने जाते हैं. इनके द्वारा ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता पर भाष्य लिखा गया. बाल्यावस्था में मात्र 2 वर्ष की आयु में शंकराचार्य ने सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत को कंठस्थ कर लिया था. इन्हें भगवान का अंशावतार माना गया है.

By ThakurShaktilochan Sandilya | April 27, 2020 11:26 AM

shankaracharya jayanti 2020 : कल 28 अप्रैल को शंकराचार्य जयंती है.आदि शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को दक्षिण भारत के राज्य केरल के कालड़ी नामक गांव में शिव भक्त रहे एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. भारत में आदि शंकराचार्य भरतीय दर्शन अद्वैत वेदांत के प्रचारक के रूप में जाने जाते हैं. इनके द्वारा ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता पर भाष्य लिखा गया. बाल्यावस्था में मात्र 2 वर्ष की आयु में शंकराचार्य ने सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत को कंठस्थ कर लिया था. इन्हें भगवान का अंशावतार माना गया है.

भारत में वैदिक धर्मावलम्बी जब कमजोर हो रहे थे और बौद्ध धर्म का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था तब इन्होंने सनातन धर्म को एकजुट व मजबूत करने में काफी बड़ी भूमिका निभाई थी.इन्होंने हिन्दू धर्म व बौद्ध धर्म के बीच अंतर स्पस्ट किया था.और कहा था कि हिन्दू धर्म में “आत्मान (आत्मा,स्वयं) का अस्तित्व है जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार “कोई भी आत्मा,या स्व ” नही होती है. शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण किया और दर्शन का प्रचार कर भारत में सनातन धर्म को मजबुती देने देश के चारो कोनों में 4 मठों की भी स्थापना की थी.

बाल्यावस्था में ही बन गए सन्यासी:

केरल के नम्बूदरी ब्राह्मण परिवार में जन्म लिए शंकराचार्य के सिर से पिता का साया बचपन से ही हट गया था. वे सन्याय के प्रति आकर्षित हुए पर उनकी मां इससे सहमत नहीं थीं लेकिन उन्हें शंकर की जिद के आगे झुकना पड़ा और इस तरह बालक शंकर 7 वर्ष की आयु में ही सन्यासी बन गए.

शंकराचार्य की भक्ति यात्रा :

शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण कर कई यात्राएं की.और हिन्दू दर्शन के कई विद्वानों के साथ सनातन धर्म पर चर्चाएं की.शंकराचार्य ने 4 मठों की भी स्थापना की थी. जो देश के चारो अलग-अलग कोनों में है और हिंदू धर्म में इसकी काफी महत्ता है. आइये जानते हैं इन चार मठों के बारे में :

– श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है.श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है.

– गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है.गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है.

– शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है. यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है.

– ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है.

बदरीनाथ की स्थापना कर वहां केरल के पुजारी को किया नियुक्त,आज भी है परंपरा जारी :

चार धाम तीर्थों में एक धाम बदरीनाथ की स्थापना शंकराचार्य ने ही की थी और आज भी वहां केरल के रावल ही पुजारी होते हैं. ये रावल केरल के नंबूदरी ब्राह्मण ही होते हैं. इन्हें शंकराचार्य का ही वंशज माना जाता है और कहा जाता है कि इस प्रथा की शुरुआत शंकराचार्य ने ही की थी. इसके पीछे उनका उद्देश्य यह था कि उत्तर भारत मे दक्षिण भारतीय पुजारी और उत्तर भारत मे दक्षिण भारतीय पुजारी रहेंगे तो सनातन धर्म में एकजुटता और मजबुती कायम रहेगी. इसी तर्ज पर आज भी दक्षिण भारत के रामेश्वरम मंदिर में उत्तर भारतीय पुजारी ही मुख्य भूमिका में देखे जा सकते है .

ऐसा माना जाता है कि हिमालय के केदारनाथ में 32 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया.

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